रोहित सरदाना राष्ट्रवादी सोच के शिखर थे

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 ललित गर्ग 

मशहूर न्यूज एंकर, टीवी पत्रकारिता के एक महान् पुरोधा पुरुष, मजबूत राष्ट्रवादी सोच एवं निर्भीक वैचारिक क्रांति के सूत्रधार, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी के धनी रोहित सरदाना की असामयिक मौत अंचभित कर रही है। एक संभावनाओं भरी टीवी पत्रकारिता का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल पत्रकारिता के लिये बल्कि भारत की राष्ट्रवादी सोच के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। भले ही कोरोना संक्रमण और दिल का दौरा पड़ने से वह दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन एक दिन पहले तक वह लोगों की मदद के लिए सक्रिय थे। कोरोना का शिकार हुए लोगों के इलाज के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन, ऑक्सीजन, बेड आदि तक की व्यवस्था के लिए वह लगातार सोशल मीडिया पर एक्टिव थे और लोगों से सहयोग की अपील कर रहे थे। उन्होंने लोगों से प्लाज्मा डोनेट करने की भी अपील की थी।
लंबे समय तक जी न्यूज में एंकर रहे रोहित सरदाना इन दिनों आज तक न्यूज चैनल में एंकर के तौर पर काम कर रहे थे। कोरोना वायरस ने देश की अनेक प्रतिभाओं को काल का ग्रास बनाया है, लेकिन सरदाना को उठा ले जाएगा, ये कल्पना नहीं की थी। लंबे समय से टीवी मीडिया का चमकता-दमकता, साहसी एवं बेवाक वैचारिकी का चेहरा रहे रोहित सरदाना इन दिनों ‘आज तक’ न्यूज चैनल पर प्रसारित होने वाले शो ‘दंगल’ की एंकरिंग करते थे। उन्होंने सशक्त एवं प्रभावी टीवी पत्रकारिता से नये मानक गढ़े। भले ही उनकी तेज एवं तीखी पत्रकारिता से एक वर्ग-विशेष खफा था, पत्रकारिता जगत में भी कुछ लोग उनसे विचार-भेद रखते थे। लेकिन इसके बावजूद वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई जैसे लोगों को भी रोहित सरदाना की मौत ने विचलित किया, उन्होंने ट्विटर पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘दोस्तों बेहद दुखद खबर है। रोहित मेरे बीच राजनीतिक मतभेद थे, लेकिन हमने हमेशा बहस को एंजॉय किया।


रोहित सरदाना एक जुनूनी एंकर पत्रकार थे। उनके टीवी शो को देखने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है और अपने निर्भीक एवं साहसी राष्ट्रवादी सोच से वे काफी लोगों के चहेते थे। तमाम उग्रपंथी ताकतों की तरफ से लगातार धमकियां मिलने के बावजूद उन्होंने अपनी टीवी पत्रकारिता की धार को कम नहीं होने दिया। विडम्बना है कि कट्टरवादी शक्तियां उनकी मौत पर भी खुशियां मना रही है, यह कैसा जहर वातावरण में घुला है। जबकि रोहित ने पत्रकारिता में उच्चतम मानक स्थापित किये। वे न केवल अपने शो के जरिये राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुति देते रहे बल्कि गरीबों, अभावग्रस्तों, पीडितों और मजलूमों की आवाज बनते रहे और उनकी बेखौफ सोच एवं वाणी के सामने सत्ताएं हिल जाती थी। अपनी कलम, विचार एवं प्रस्तुति के जरिये उन्होंने लोकतंत्र के चैथे स्तंभ को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शो एवं टीवी कार्यक्रमों ने लाखों लोगों की समस्याओं को सरकारों और प्रशासन के सामने रखा और भारतीय लोकतंत्र में लोगों की आस्था को और मजबूत बनाने में योगदान दिया।
रोहित सरदाना एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार, एंकर, स्तंभकार, संपादक ही नहीं थे, बल्कि वे एक संवेदनशील राष्ट्रवादी व्यक्तित्व थे। उनको हम भारतीयता, पत्रकारिता एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें पत्रकार जगत का एक यशस्वी योद्धा माना जाता है। उन्होंने आमजन के बीच, हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। लाखों-लाखों की भीड़ में कोई-कोई रोहित सरदाना जैसा विलक्षण एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति जीवन-विकास की प्रयोगशाला मेें विभिन्न प्रशिक्षणों-परीक्षणों से गुजरकर महानता का वरन करता है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होता है और अपनी मौलिक सोच, कर्मठता, कलम, जिजीविषा, पुरुषार्थ एवं राष्ट्र-भावना से समाज एवं राष्ट्र को अभिप्रेरित करता है। देश और देशवासियों के लिये कुछ खास करने का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था।
रोहित सरदाना का जन्म 22 सिंतंबर, 1979 को कुरुक्षेत्र, हरियाणा में हुआ था। रोहित ने वहीं से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए वह हिसार चले गए और उन्होंने गुरु जम्बेश्वर विश्वविद्यालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में दाखिला लिया। उन्होंने वहां से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की है और उसी यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। रोहित सरदाना शादीशुदा हैं और उनकी दो बेटियां भी हैं। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भी दाखिला लिया था क्योंकि वह हमेशा से अभिनेता बनना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया, यही समय था जब उन्होंने पत्रकार बनने का फैसला किया। 2004 में, सहारा के लिए उन्हें सहायक निर्माता के रूप में काम करने का मौका मिला और जी न्यूज में कार्यकारी संपादक के रूप में शामिल होने से पहले उन्होंने सहारा में दो साल तक काम किया। वर्तमान में, वह एक शो कर रहे है जहाँ वह संसद सदस्यों के लिए एक रिपोर्ट कार्ड बनाते थे, जिसमें उनके संसदीय क्षेत्र में उनके काम का सारा विवरण होता है। इसके अलावा, उनके शो मतदाताओं को अपना नेता तय करने में मदद करते हैं। जी न्यूज में एक डिबेट शो “ताल-ठोक” के किया करते थे, जिसमे वे समकालीन और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते थे। इस शौ से उन्होंने काफी नाम कमाया। 2017 में, उन्होंने जी न्यूज को छोड़, आजतक में ज्वाइन कर लिया और इनदिनों वे डिबेट शो दंगल की मेजबानी करते थे। रोहित सरदाना को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है और उन पुरस्कारों में संसुई बेस्ट न्यूज प्रोग्राम अवार्ड, माधव ज्योति सम्मान और सर्वश्रेष्ठ समाचार एंकर अवार्ड शामिल हैं जो दिल्ली एजुकेशन सोसाइटी द्वारा प्रायोजित किया गया था। 2018 में ही रोहित सरदाना को गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से नवाजा गया था।
रोहित सरदाना एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। रोहितजी के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि किस तरह से दूषित राजनीतिक, साम्प्रदायिक परिवेश एवं आधुनिक युग के संकुचित दृष्टिकोण वाले समाज में जमीन से जुड़कर आदर्श जीवन जिया जा सकता है, आदर्श स्थापित किया जा सकता है। और उन आदर्शों के माध्यम से देश की पत्रकारिता, राजनीति, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएँ उद्घाटित की जा सकती हैं। उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हंै, मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता, समाजसेवा एवं राष्ट्रवादी सोच को समर्पित एक लोककर्मी का जीवनवृत्त है। उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, पत्रकारिता एवं राजनीति को राष्ट्र प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी। उनके जीवन से जुड़ी राष्ट्रवादी धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितने उच्च नैतिक-चारित्रिक पत्रकार थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे। उनके निधन को सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की पत्रकारिता की समाप्ति समझा जा सकता है। वे समर्पित-भाव से पत्रकारिता-धर्म के लिये प्रतिबद्ध थे। आपके जीवन की खिड़कियाँ समाज एवं राष्ट्र को नई राष्ट्रवादी दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व थे। बेशक रोहितजी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल पत्रकार जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय पत्रकारिता के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे।

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