नई शिक्षा नीति में छोटे बाबा की सुगंध

● श्याम सुंदर भाटिया
बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति-2020 में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की सलाह को सर्वोच्च प्राथमिकता के तौर पर शामिल किया गया है। जैन धर्म के इन सबसे बड़े गुरु को उनके अनुयायी छोटे बाबा के नाम से भी जानते हैं। मौजूदा समय में आचार्य शिरोमणि श्री 108 विद्यासागर जी महाराज को लाखों दिगंबर जैन अनुयायी आधुनिक भगवान महावीर मानते हैं। नई शिक्षा नीति-एनईपी में मातृभाषा/क्षेत्रीय भाषा की खुशबू, व्यावसायिक शिक्षा, अंग्रेजी भाषा को वैकल्पिक भाषा, शिक्षा रोजगारपरक होने की तमाम खूबियों में छोटे बाबा की दूरदृष्टि सामाहित है। इसके पीछे बड़ा दिलचस्प और प्रेरणादायी किस्सा है। पदम विभूषण, इसरो के पूर्व अध्यक्ष एवं एनईपी कमेटी के चेयरमैन डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन नई शिक्षा नीति के मसौदे के सिलसिले में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मिले तो उन्होंने चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन को सलाह दी कि उन्हें एक बार आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से जरुर मिलना चाहिए और उनकी बेशकीमती राय जाननी चाहिए। राष्ट्रपति की नेक सलाह पर चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन अपनी कमेटी के और सदस्यों-प्रो.टीवी कट्टीमनी, डॉ. विनयचन्द्र बीके, डॉ. पीके जैन इत्यादि के संग 21 दिसम्बर, 2017 को दर्शनार्थ और चर्चार्थ छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में विराजित आचार्यश्री से मिले। करीब 53 मिनट के इस बहुमूल्य संवाद और आशीर्वचन की झलक नई शिक्षा नीति में साफ-साफ दिखाई देती है। गुरु संकेतों को बिल्कुल स्पष्ट समझा और पढ़ा जा सकता है। नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट दस्तावेज के पेज नं0-455 पर इसका स्पष्ट उल्लेख है। आचार्यश्री से पहले भारत रत्न एवं मशहूर रसायन विज्ञानी सीएनआर राव का भी नाम दर्ज है।

सारगर्भित इस संवाद में मातृभाषा को लेकर बड़ी सूक्ष्म बातें कही गई थीं। नौ सदस्यीय टीम ने गुरु संकेतों का पालन करके शिक्षा नीति में बड़े बदलाव किए हैं। एनईपी के चेयरमैन ने आचार्यश्री से पूछा-गुरुवर, नई शिक्षा नीति कैसी होनी चाहिए? आचार्य श्रेष्ठ बोले, ऐसी नीति बनाइए-जिसका उपयोग और विनिमय की वस्तु न हो। करीब-करीब एक घंटे के बहुआयामी और सार्थक संवाद में आचार्यश्री बोले, वर्तमान शिक्षा नीति अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। शिक्षा धन से जुड़ गई है।आज की शिक्षा के साथ-साथ अनुभव नहीं है। डिग्री तो मिल जाती है,लेकिन सारी पढ़ाई-लिखाई करने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती है। यह सब हमारे देश में पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव है। आज इतिहास को स्कूलों में लीपा-पोती करके पढ़ाया जाता है, हमारा पुराना इतिहास उठा कर देखो। आचार्यश्री ने कहा, मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूँ लेकिन अंग्रेजी भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखना चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों। अंग्रेजों ने भारत की परंपरा के साथ चालाकी करके ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना दिया है। भारत के साथ हमारी संस्कृति और इतिहास जुड़ा है, लेकिन इंडिया ने भारत की भारतीयता, जीवन पद्धति, नैतिकता, रहन-सहन और खान-पीन सब कुछ छीन लिया है। अब शिक्षा भारतीय गणित, इतिहास, ज्ञान और परिवेश आधारित होनी चाहिए। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषाओं में ही हो। इस संपूर्ण भारतीय भाषा ही हो। ऐसा होने से भारत की एकता मजबूत होगी। साथ ही आचार्य शिरोमणि ने सलाह दी, शिक्षा में शोधार्थी की रूचि, किसमें है, इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोधकर्ता हैं। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है। शिक्षा रोजगार पैदा करने वाली हो, बेरोजगारी बढ़ाने वाली नहीं हो, शिक्षा कोरी किताब नहीं हो। कौशल से जुड़ी हो। घोषित इस नई शिक्षा नीति में मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा, व्यावसायिक शिक्षा, अंग्रेजी वैकल्पिक भाषा, शिक्षा रोजपरक होने का समावेश साफ-साफ परिलक्षित हो रहा है।

छोटे बाबा का मातृभाषा प्रेम, देशभक्ति, हिंदी के प्रति आगाथ आस्था जग जाहिर है। वह हमेशा गर्व से कहते हैं- हिंदी में लिखो, हिंदी बोलो, इंडिया नहीं, भारत बोलो , शिक्षा के साथ संस्कार पाओ, हथकरघा के वस्त्र अपनाओ, स्वदेशी पहनो, स्वावलंबन लाओ, भारतीय संस्कृति बचाओ। वह युवाओं को अपने आशीर्वचन में अक्सर कहते हैं, उन्हें अंग्रेजी मिटानी नहीं है बल्कि अंग्रेजी को हटाना है, क्योंकि इसके पीछे बहुत से कारण हैं। विश्व के कई देशों में अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। वे देश विकास की बुलंदियों पर हैं। फिर हमारा देश हिंदी को अपनाने में पीछे क्यों है। सर्वोच्च और उच्च न्यायलयों में करोड़ों वाद लंबित है। इसके मूल में भी कहीं न कहीं भाषा ही है। अपनी भाषा राष्ट्र भाषा से ही देश का विकास, जन-जन से जुड़ाव और ज्ञान का प्रकाश फैलाना संभव है। व्यापर की भाषा, बोलचाल की भाषा, प्रशासनिक भाषा, राष्ट्र भाषा या प्रादेशिक भाषा होनी चाहिए। छोटे बाबा मानते हैं, कुछ लोगों को लगता है अंग्रेजी का विरोध होने से हम बाकि देशों की भाषा से कट जाएंगे। अंग्रेजी के बिना तो कुछ भी नहीं है, यह केवल भ्रम है। आचार्यश्री युवाओं को नामचीन जर्नलिस्ट डॉ. वेद प्रताप वैदिक की पुस्तक- अंग्रेजी हटाओ क्यों और कैसे? को पढ़ने की सलाह देते हैं, चूँकि उन्होंने भी इस पुस्तक का अध्ययन किया है। यह ही नहीं, डॉ. वैदिक रामटेक हो या नागपुर, वह समय-समय पर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर के दर्शनार्थ आते रहे हैं। उन्होंने छोटे बाबा से स्वभाषा- स्थानीय भाषा और हिंदी भाषा के भविष्य पर चर्चा की। आचार्यश्री लम्बे समय से शिक्षा पद्धति पर बहुत ध्यान देते रहे हैं। नतीजन नई शिक्षा नीति समिति के सदस्यों को दिए गए गुरु संकेत सबके सामने हैं।

20वीं-21वीं शताब्दी के साहित्य जगत में एक नए उदीयमान नक्षत्र के रुप में जाने-पहचाने जाने वाले शब्दों के शिल्पकार, अपराजेय साधक, तपस्या की कसौटी, आदर्श योगी, ध्यान ध्याता-ध्येय के पर्याय, कुशल काव्य शिल्पी, प्रवचन प्रभाकर, अनुपम मेधावी, नवनवोन्मेषी प्रतिभा के धनी, सिद्धांतागम के पारगामी, वाग्मी, ज्ञानसागर के विद्याहंस, प्रभु महावीर के प्रतिबिंब, महाकवि, दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी की आध्यात्मिक छवि के कालजयी दर्शन आनंद से भर देते है। सम्प्रदाय मुक्त भक्त हो या दर्शक, पाठक हो या विचारक, अबाल-वृद्ध, नर-नारी उनके बहुमुखी चुम्बकीय व्यक्तित्व-कृतित्व को आदर्श मानकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने आपको धन्य मानते हैं। आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रेरणादायक युगप्रवर्तक महाकाव्य ‘मूकमाटी’ का सर्जन कर साहित्य जगत में चमत्कार कर दिया है। इसे साहित्यकार ‘फ्यूचर पोयट्री’ एवं श्रेष्ठ दिग्दर्शक के रूप में मानते हैं। विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र को सपाट बयानी, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का शब्द विन्यास, महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की छान्दसिक छटा, छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पन्त का प्रकृति व्यवहार, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता महादेवी वर्मा की मसृष्ण गीतात्मकता, बाबा नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह’मूकमाटी’ में देखी जा सकती है।

22 साल की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ पड़ते हैं। उनके प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और ऐसे सूत्र ज्यादा होते हैं, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को सफल बना सकते हैं। वे अकेले ऐसे संत है, जिनके जीवत रहते हुए उन पर अब तक 55 से अधिक पीएचडी हो चुकी हैं। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, कन्नड़, मराठी आदि भाषाओं के जानकार विद्यासागरजी का बचपन भी आम बच्चों की तरह बीता। गिल्ली-डंडा, शतरंज आदि खेलना, चित्रकारी स्वीमिंग आदि का इन्हें भी बहुत शौक रहा, लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए आचार्यश्री का आध्यात्म की ओर रुझान बढ़ता गया। आचार्यश्री का बाल्यकाल का नाम विद्याधर था। कर्नाटक, बेलगांव के ग्राम सदलगा में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा को जन्मे आचार्यश्री ने कन्नड़ के माध्यम से हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे वैराग्य की दिशा में आगे बढ़े और 30 जून 1968 को मुनि दीक्षा ली। आचार्य का पद उन्हें 22 नवंबर 1972 को मिला। जैन संत आचार्य विद्यासागर पर फीचर फिल्म अन्तर्यात्री महापुरुष बनाई जा रही है। यह फिल्म मार्च 2021 में भारत सहित दुनिया के 65 देशों में एक साथ रिलीज होगी। छोटे बाबा की ज्ञान गंगा के सम्मुख करोड़ों-करोड़ लोग नतमस्तक हैं। इनमें तमाम हस्तियां भी शामिल हैं। 1999 पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, 2016 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, 2018 में अमेरिकी राजदूत श्री केनेथ जस्टर, फ्रांसीसी राजनयिक श्री अलेक्जेंड्रे जिग्लर, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन करीब एक दशक पूर्व रामटेक में उनका आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं। आचार्यश्री ने 28 जुलाई,2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष आमंत्रण पर मध्यप्रदेश विधान सभा में अपना प्रवचन दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने आचार्यश्री को राज्य अतिथि देने की घोषणा की हुई है। यूपी सरकार प्रोटोकॉल भी जारी कर चुकी है।

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