राष्ट्रिय स्वतंत्रता आंदोलन में रा.स्व.सं. की भूमिका

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rss राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १९२५ में डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार
द्वारा नागपुर में की गयी थी.इससे पूर्व डॉ.हेडगेवार डाक्टरी की पढ़ाई के
दौरान कोलकाता में क्रन्तिकारी संगठनों युगांतर और अनुशीलन समिति के
संपर्क में रह चुके थे तथा प्रसिद्द विप्लबी डॉ.पांडुरंग खोनखोजे,श्री
अरविन्द, वारीन्द्र घोष,त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती आदि के साथ काम कर चुके
थे.वस्तुतः उन्हें कोलकाता में पढ़ने के लिए उस समय के हिन्दू महासभा के
अध्यक्ष डॉ. मूंजे ने ही भेजा था.
संघ की आलोचना करने वालों के द्वारा अक्सर एक प्रश्न उठाया जाता है की
संघ ने देश की आज़ादी की लड़ाई में कोई काम नहीं किया.लेकिन ये एक भारी
त्रुटि है.जैसा की ऊपर बताया है की अपने विद्यार्थीकाल में ही उनका
संपर्क अनेकों क्रांतिकारी संगठनों और विप्लबियों के साथ रहा था.नागपुर
लौट कर उन्होंने चिकित्सा को व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया.वरन उस समय
स्वतंत्रता आंदोलन का सञ्चालन कर रही कांग्रेस के साथ ही स्वतंत्रता के
संग्राम में भाग लिया.
१९२० के नागपुर कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने कांग्रेस स्वयंसेवक दल
के उपप्रमुख के नाते पूरी व्यवस्था को संभाला हुआ था.वास्तव में उस समय
महाराष्ट्र स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभा रहा था.डॉ.हेडगेवार
के जन्म के केवल छ वर्षों केबाद ही (१८९५) उस समय के मराठी के अग्रणी
लेखक/उपन्यासकार हरिनारायण आप्टे द्वारा मराठी में एक उपन्यास ‘मी’ नाम
से प्रकाशित हुआ था.जिसके नायक का जीवन चरित बहुत कुछ डॉ.हेडगेवार के
जीवन से मिलता है.
१९२५ में विजयदशमी के दिन रा.स्व.सं. की स्थापना के समय डॉ. हेडगेवार जी
का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वाधीनता ही था.संघ के स्वयंसेवकों को जो शपथ
दिलाई जाती थी उसमे राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन मन धन
पूर्वक आजन्म और प्रमाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प होता था.संघ
स्थापना के तुरंत बाद से ही स्वयंसेवक स्वतंत्रता संग्राम में अपनी
भूमिका निभाने लगे थे.
क्रांतिकारी स्वयंसेवक:
संघ का वातावरण देशभक्ति पूर्ण था.१९२६-२७ में जब संघ नागपुर और आसपास तक
पहुंचा था तभी प्रसिद्द क्रांतिकारी राजगुरु नागपुर की भोंसले वेद्शाला
में पढ़ते समय स्वयंसेवक बने थे.इसी समय भगत सिंह ने भी नागपुर में डॉ
हेडगेवार से भेंट की थी.दिसंबर १९२८ में वे क्रांतिकारी पुलिस उपकप्तान
सांडर्स का वध करके, लाला लाजपतराय जी की हत्या का बदला लेकर,लाहोर से
सुरक्षित नागपुर आ गए थे.डॉ.हेडगेवार ने राजगुरु को उमरेड में भैय्याजी
दाणी ९जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने) के फार्महाउस पर छिपने की
व्यवस्था की थी.
१९२८ में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्कार
हुआ.नागपुर में हड़ताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्वयंसेवक अग्रिम
पंक्ति में थे.
महापुरुषों का समर्थ:
१९२८ में विजयदशमी उत्सव पर भारत की असेम्ब्ली के प्रथम अध्यक्ष और सरदार
पटेल के बड़े भाई श्री विट्ठल भाई पटेल उपस्थित थे.अगले वर्ष १९२९ में
महामना मदनमोहन मालवीय जी ने उत्सव में उपस्थित होकर अपना आशीर्वाद दिया
था.स्वतंत्रता संग्राम की अनेक विभूतियां संघ के साथ स्नेह सम्बन्ध रखती
थीं.

शाखाओं पर स्वतंत्रता दिवस:
३१ दिसंबर १९२९ को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य घोषित किया और २६ जनवरी १९३० को देशभर में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाना निश्चित किया गया.दस वर्ष पूर्व कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में १९२० में डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा था परन्तु उस समय ये पास नहीं हो पाया था.१९२९ में कांग्रेस द्वारा ये प्रस्ताव पारित होने पर डॉ हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं को परिपत्र भेजकर रविवार २६ जनवरी १९३० को सायं ६ बजे राष्ट्र ध्वज वंदन करने और स्वतंत्रता की कल्पना और आवश्यकता विषय पर व्याख्यान की सूचना करवाई.अतः संघ की समस्त शाखाओं पर तदनुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया.
क्रमश:

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