देश के गृहमंत्री पी. चिदंबरम को सोनिया गांधी का वरदहस्त प्राप्त है। इसलिए किसकी मजाल है कि उनके खिलाफ कोई भी कांग्रेसी मुंह खोले। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी देश के संभावित नये राष्ट्रपति हो सकते हैं-इसकी संभावनाएं जितनी प्रबल होती जा रही हैं उतने ही स्तर पर कई कांग्रेसी लोगों ने इस बात का रोना रोया है कि आपके बिना तो सरकार ही नहीं चल पाएगी। हम यह बात यहां इसलिए कह रहे हैं कि कांग्रेसी जमीर की आवाज को सुनते तो हैं परंतु बोलते नहीं हैं। अब भी वह अद्र्घसत्य का सहारा ले रहे हैं। उन्हें सही बोलने का साहस करना चाहिए और कहना चाहिए कि प्रणव देश के राष्ट्रपति नहीं अपितु प्रधानमंत्री होने चाहिएं। लेकिन कोई भी कांग्रेसी मैडम को नाराज करने की कीमत पर सच नहीं बोल पा रहा। यही स्थिति गृहमंत्री पी. चिदंबरम के विषय में है। जिन्होंने देश में हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद के अप्रासंगिक और अतार्किक जुमले गढे और उन्हें अपनी ओर से चलाया। जाहिर है कि इन जुमलों से सीधा लाभ चर्च को हो रहा है। जिन्हें सोनिया की अनुकंपा प्राप्त है। इसलिए तमाम कांग्रेसियों को भली प्रकार यह जानकारी है कि देश में हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद नाम की कोई चीज है ही नहीं, पर फिर भी वह पी. चिदंबरम की आवाज में आवाज मिलाना ही उचित मानते हैं-ताकि मैडम खुश रहें।
आर.एस.एस. की यह चिंता सही है कि पी.चिदंबरम भारत में चर्च के षडयंत्रों को साकार कर रहे हैं। भारत में मदर टेरेसा को भारत रत्न तब ही मिल पाया था जब सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की पत्नी के रूप में सत्ता में दखल देने की स्थिति में आ गयी थीं। हिंदुत्व करूणा, उदारता, मानवता, सत्य, अहिंसा, प्रेम बंधुत्व आदि सर्वोच्च मानवीय मूल्यों पर आधृत जीवन प्रणाली है। लेकिन चर्च में मिलने वाली करूणा और प्रेम को हिंदुत्व के सार्वभौम जीवन मूल्यों से कहीं अधिक उत्प्रेरक मानवीय और मानव समाज के लिए मार्गदर्शक के रूप में हमारे यहां परोसा जाता है। इससे भारत में लोगों का ध्यान धर्मांतरण की ओर बढ़ रहा है। पी.चिदंबरम जैसे लोग इस स्थिति को और भी बढावा दे रहे हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के आरोपों में आकण्ठ डूबे पी.चिदंबरम को सोनिया बचा रही हैं। विपक्ष उन्हें हटाने की मांग कर रहा है लेकिन सोनिया उनकी ढाल बनकर खड़ीं हैं। देश में हिंदूवादी संगठनों को गाली देना धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बन गया है। पैरों के नीचे चलरहे धर्मांतरण के खतरनाक खेल की उपेक्षा करना तथा हिंदुओं को धर्मांतरित करके नये नये गिरजाघरों की स्थापना करना भी धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बन गया है। पी. चिदंबरम इसी घटिया राजनीति के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
आरएसएस का मानना है कि सोनिया के इशारों पर चर्च के षडयंत्रों को भारत में साकार करने के लिए चिदंबरम आतंकवाद का ठीकरा राष्ट्रभक्त हिंदू संगठनों पर फोडऩे के लिए हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद जैसे जुमले गढ़ते रहते हैं। नैतिक आदर्श और जनता को सही रूप में मागदर्शन देकर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना को बलवती करना आज की राजनीति में से कपूर की तरह उड़ा देने की कोशिश चिदंबरम जैसे राष्ट्रभक्त कांग्रेसियों की ही देन है। हम इस दिशा में आगे बढ़ते जा रहे हैं और हमसे राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की भावना कहीं पीछे ही विलुप्त होती जा रही है। आर.एस.एस. के चिंतन में इन तीनों तत्वों का अद्भुत संगम है और वह इन्हीं तीनों तत्वों के आधार पर एक गौरवमयी भारत के निर्माण का सपना संजोता है। लड़ाई आर.एस.एस. के इस गौरव और चिदंबरम के गुड़-गोबर के बीच में है। चिदंबरम गुड़-गोबर हुए भारत को भविष्य का उज्ज्वल भारत मानकर चल रहे हैं तो आर.एस.एस. उस भारत की आत्मा से हीन भारत का कंकाल मात्र मान रही है।
बात भी सही है। हम अपने इतिहास बोध से संस्कृति बोध से, राष्ट्रबोध से, धर्मबोध से और आत्मबोध से यदि मारे गये और हमें उन परिस्थितियों में यदि कुछ मिला भी तो वह हमारे सर्वनाश के अतिरिक्त कुछ नही होगा। इसलिए पी.चिदंबरम को बहुत पीछे हटना होगा और आर.एस.एस. के चिंतन के आईने से भारत के भविष्य को देखने की क्षमता पैदा करनी होगी।
राकेश जी आपने एक-एक तथ्य को बड़ी अच्छी तरह सूत्रबद्ध रूप में प्रस्तुत किया है. सोनिया-चिदंबरम आदि ये सब तो उन अदृश्य शक्तियों की कठपुतलियाँ हैं जो भारत से बाहर बैठ कर भारत के रक्त की एक-एक बूंद चूसने में लगी हुई हैं. उन पिस्सुओं का अस्तित्व तभी तक सुरक्षित है जब तक वे भारत का शोषण करते रहते हैं और १२१ करोड़ भारतीयों को इधर-उधर की समस्याओं में उलझाए रखते हैं. इन पश्चिमी लुटेरों के पास केवल उत्पादन और भोगने की पशु प्रवृत्ति है. हमारे संसाधन, संपत्ति, ज़मीनें, बाज़ार चाहिए इन्हें. अन्यथा इनका विलासितापूर्ण जीवन असंभव हो जाएगा. जिस दिन भारत के लोग इस लीला को समझ जायेंगे, उसी दिन से इनके अवसान की उलटी गिनती शुरू हो जायेगी. # संघ जैसी देशभक्त हिन्दू संस्थाएं और हिन्दू समाज इनके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा हैं. अतः उनपर प्रत्यक्ष, परोक्ष आक्रमणों में ये अपनी पूरी ताकत लगायेगे ही. इनकी नीयत को उजागर करदेने में ही देशभक्त शक्तियों की विजय है. उपरोक्त लेख इस दिशा में एक सबल, सार्थक प्रयास है. साधुवाद !
संगठन गन्दा नहीं होता जनाब लोग गंदे होते है
संघ कभी किसी नेता को हटाने का प्रयत्न नहीं करता है वो व्यक्ति निर्माण का कार्य करता है
लेखक महोदय चिदम्बरम जायेंगे तो दिग्विजय सिंह आयेंगे और जिस कारण संघ उन्हें हटाने के लिए तूफान मचाये है वह तो पूरा नहीं होने वाला