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सबसे लम्बी रात का सुपना नया… - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अरुण तिवारी सबसे लम्बी रात का सुपना नया देह अनुपम बन उजाला कर गया। रम गया, रचता गया रमते-रमते रच गया वह कंडीलों को दूर ठिठकी दृष्टि थी जो पता उसका लिख गया सबसे लम्बी रात का सुपना नया… रमता जोगी, बहता पानी रच गया कुछ पूर्णिमा सी कुछ हिमालय…