सच हमेशा परेशान रहता

—विनय कुमार विनायक
सच हमेशा परेशान रहता,
सच हमेशा इम्तहान देता!

कहने को तो कहा गया है
कि झूठ के पांव नहीं होते!

पर झूठ की पहुंच लम्बी होती,
झूठ की जाल बेमिसाल होती!

एक सत्य के खिलाफ अनेकबार,
झूठ बोले जाते बार-बार,लगातार
कि झूठ मानता नहीं कभी हार!

कहने को तो झूठ को पर नहीं होते,
किन्तु झूठ बिना पर के उड़ सकते!

सच हमेशा से निरीह होता दबा हुआ,
कि सच उड़ नहीं पाता झूठ की तरह,
क्योंकि सच के पास होता नहीं है पर
कि सच के पास हमेशा से होता डर!

सच कभी खड़ा नहीं हो पाता झूठ के पास,
सच हमेशा लड़खड़ा जाता झूठ के खिलाफ!

कि सच में सच के पांव नहीं होते,
सच को सचमुच काफी घाव होता,
कि बिना पांव सिर्फ घाव के साथ,
सत्य हमेशा-हमेशा से नंगा होता!

सच के पास में मुखौटा नहीं होता,
सच सदा से बड़ा ही कड़ुआ होता!
सच को न मुंह, न मुखौटा होता है,
बिना मुंह का सच बोला नहीं जाता,
सत्य किसी तरह बुदबुदा भर लेता!

कि सच नंगा और कड़ुआ भी,
इतना कि सच बोलना मना है,
स्मृति काल से ‘सत्यं ब्रूयात्प्रियं
ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्!’

अस्तु अप्रिय नग्न सत्य कभी
नहीं बोलना चाहिए/मत बोलिए!

कि तुम्हारे सच बोलने भर से ही,
अनेक झूठ की कलई खुल जाएगी
फिर झूठ की सेना हमलावर हो उठेगी,
झूठ बोलने के लिए अनेक विकल्प है!

जबकि सच को सच के सिवा,
कभी कोई विकल्प नहीं होता!

सच बोलने के पहले याद करो,
मनुस्मृति का हिदायती श्लोक
कि सच बोलो,प्रिय बोलो मगर,
अप्रिय सत्य कदापि मत बोलो!

कि सच हमेशा से परेशान होता,
कि सच हमेशा से इम्तहान देता!,

यह कहना कि सच परेशान होता,
मगर पराजित नहीं, कुछ हद तक
सच नहीं,बहुत सा सच दब जाता!
—विनय कुमार विनायक

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