साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बहाने भारत को घेरने की साजिश

लेखक : डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

चर्च और अमेरिका दोनों ही भारत को घेरने की साजिश में जुटे हुए हैं। चर्च का उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। वेटिकन के राष्ट्र्पति पोप के अनुसार इस शताब्दी में उन्हें भारत का काम निपटाना है। क्योंकि पिछली दो सहस्राब्दियों में चर्च ने पूरे यूरोप और अफ्रीका के इतिहास, विरासत और संस्कृति को नष्ट करके वहाँ ईसाई मत को स्थापित कर दिया है। एशिया के अधिकांश हिस्से पर भी चर्च ने अपना मजहबी आधिपत्य जमा लिया है। शुरू में तो यूरोप ने ईसाइकरण का विरोघ किया लेकिन कालांतर में वही यूरोप अफी्रका और एशिया में मजहबी साम्राज्यवाद का हरावल दस्ता बना। जिन लोगों ने चर्च के इन अभियानों का विरोध किया उन्हें निर्दयता पूर्वक कुचल दिया गया। चर्च के दुर्भाग्य से भारत उसके इस विश्वव्यापी अभियान के रास्ते में रोड़ा बनकर खड़ा हो गया। अपनी इस सम्राज्यवादी लिप्सा में बींसवी शताब्दी में ही चर्च और अमेरिका एक जुट हो गये थे। इसलिए बचे-खुचे देशों में ईसाई मजहब को स्थापित करने में अमेरिका अग्रणी भूमिका में उपस्थित हो गया है। परन्तु अमेरिका को इस प्रकार के देशों में दखलअंदाजी के लिए कोई न कोई तार्किक बहाना चाहिए। कोई ऐसा बहाना जिस पर लोग सहज ही विश्वास कर लें। अमेरिका ने इसके लिए आतंकवाद को बहाना भी बनाया और हथियार भी। अमेरिका का ऐसा कहना है कि दुनिया इस्लामी आतंकवाद का प्रहार झेल रही है और अमेरिका क्योंकि नवविचार और नवचेतना का देश है इसलिए वह इस्लामी आतंकवाद को समाप्त करना अपना कर्तव्य समझता है। चाहे इसमें उसके अपने सैनिक भी मर रहे हैं परन्तु इसके बावजूद अमेरिका मानवता के हित में इस्लामी आतंकवाद से लड़ रहा है। केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में। वैसे केवल रिकार्ड के लिए अमेरिका को विश्व का सबसे पहला आतंकवादी देश कहा जा सकता है। सी0आई0ए0 ने कितने लोगों की हत्या करवाई और कितने ही देशों की सरकारों को उल्टा पुल्टा किया इसका लेखा जोखा उसकी पुरानी फाईलों में से निकल आयेगा। आज जिस इस्लामी आतंकवाद को लेकर इतना हल्ला मचा हुआ है उसको जन्म भी अमेरिका ने, अफगानिस्तान में रूस को उत्तर देने के लिए, दिया था। बाद में इसी आतंकवाद के बहाने अमेरिका अपने आर्थिक हितों के लिए इराक में घुसा, फिर अफगानिस्तान में और अब उसकी सेनाएं आतंकवाद की खोज करते-करते अपनी इच्छा से पाकिस्तान में भी चली जाती हैं। लेकिन चर्च और अमेरिका का निशाना तो भारत है। पर इस्लामी आतंकवाद के बहाने अमेरिका भारत में नहीं घुस सकता क्योंकि भारत इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित देश है।

भारत में घुसने के लिए अमेरिका को हिन्दू आतंकवाद की जरूरत ह,ै इस्लामी आतंकवाद की नहीं। जब तक भारत में कांग्रेस की निर्बाध सत्ता रही तब तक न ज्यादा अमेरिका को चिंता थी न ही चर्च को क्योंकि भारत को मतांतरित करने की चर्च की योजनाओं में कांग्रेस सरकार सहायक रही, बाधक नहीं। परन्तु पिछले तीन दशकों से भारत का राजनैतिक घटना क्रम तेजी से परिवर्तित हुआ है। कांग्रेस केन्द्रीय सत्ता से पदच्युत हो गई है। यदि नहीं भी हुई है तो उसकी सत्ता में बने रहने की निरंतरता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इसी अर्से में राष्ट्रवादी शक्तियाँ भारतीय राजनीति के केन्द्र में पहुँच गई हैं। अमेरिका और चर्च दोनों को लगता है यदि देर-सवेर राष्ट्रवादी ताकतें भारत की सत्ता के केन्द्र में स्थापित हो गई तो भारत के ईसाईकरण में निश्चय ही बाधा उपस्थित हो जायेगी। इसका सामना करने के लिए विदेशी मूल की सोनिया गाँधी को कांग्रेस के केन्द्र में स्थापित करने की रणनीति बुनी गई। यह ताकतें अपनी इस रणनीति में तो कामयाब हो गई लेकिन इनके दुर्भाग्य से कांग्रेस स्वयं ही सत्ता के केन्द्र से च्युत होने की स्थति में पहँच रही है। यदि कल चर्च और अमेरिका के आगे ऐसा संकट उपस्थित हो जाता है तो उनके आगे भारत में दखलंदाजी का कौन सा रास्ता बचता है ? यह रास्ता भारत की राष्ट्रवादी शक्तियों को आतंकवादी घोषित करने का ही है। भविष्य में यदि राष्ट्रवादी शक्तियाँ भारत का शासन सूत्र संभाल लेती हैं तो अमेरिका को यह कहने का अवसर मिल जायेगा कि भारत में आतंकवादी शक्तियों ने कब्जा कर लिया है। यह अमेरिका ने स्वयं ही घोषित किया हुआ है कि दुनिया में जहां भी आतंकवादी शक्तियाँ होंगी अमेरिका उनका पीछा करते हुए वहां तक जायेगा। और वैसे भी सोनियॉ गांधी और चर्च को अमेरिका के आगे यह गुहार लगाते हुऐ कितनी देर लगेगी कि अमेरिका आगे बढ़ कर भारत को आतंकवादी शक्तियों के चगुंल से मुक्त करे।

राष्ट्रवादी शक्तियों को और प्रकारान्तर से हिन्दु संगठनों को आतंकवादी के रूप में चित्रित करने की कड़ी में ही कांची कामकोटी मठ के शंकराचार्य को दीपावली की रात्रि को गिरफ्तार कर लिया गया था। दुनिया भर के मीडिया ने अमेरिका और इंग्लैंड की न्यूज एजेंसियों के माध्यम से हल्ला मचाया कि हिन्दु साधु संत और राष्ट्रवादी शक्तियाँ हत्यारे और गुंडे हैं। उसके बाद चर्च ने राष्ट्ीय संत वेदान्त केसरी स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की जन्माष्टमी के दिन पूर्व घोषणा करके हत्या कर दी। लक्ष्मणानन्द सरस्वती चर्च के मतांतरण आंदोंलन में बाधा थे। यह एक प्रकार से राष्ट्र्वादी शक्तियों को चर्च की चेतावनी थी कि जो उसके रास्ते में आयेगा उसका यही हश्र होगा। हत्या से पूर्व चर्च की रणनीति और योजना इतनी छिद्र रहित थी कि हत्या के बाद भी मीडिया मैनेजमेंट के माध्यम से दुनिया भर में यह प्रचारित किया गया कि संघ परिवार मतांतरित इसाईयों को आतंकित कर रहा है। मोमबत्ती ब्रिगेड के एक नख दंत हीन सदस्य कुलदीप नैयर ने तो लक्ष्मणानन्द सरस्वती को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने का घटिया प्रयास किया। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी इसी पूरे घटनाक्रम की एक कड़ी के रूप में देखी जानी चाहिए। साध्वी के खिलाफ सरकार के पास अभी तक कोई सबूत नहीं है। इसलिए उनका बार बार नारको टैस्ट और दुसरे टेस्ट करवाये जा रहे हैं। लेकिन सरकार को न सबूतों से कुछ लेना देना है और न ही सत्यता से। उसे किसी एक साधु को पकड़ कर उस पर राष्ट्रवादी शक्तियों को आतंकवादी ठहराने का पूरा तानाबाना बुनना है। साध्वी भूमिगत नहीं है। वह अफजल गुरू भी नहीं है। वह कश्मीर के उन मुस्लिम आतंकवादियों में से भी नहीं है जो छिप कर नहीं बल्कि खुलकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। वह जाकिर हुसेन कालेज की प्रो0 गिलानी भी नहीं है जो मोमबत्ती ब्रिगेड के कंधों पर बैठकर भारत को बांटने की वकालत करते हैं। उनके हाथ में पाकिस्तान का झंडा भी नहीं है जिसे असम में फहराते हुए देखकर भी तरूण गोगोई ईद का झंडा बताते हैं।

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने देशहित के लिए अपने सामान्य सुख को त्यागा ह,ै लेकिन महाराष्ट्र् की कांग्रेसी सरकार की ए0टी0एस0 साध्वी के मोबाईल फोन के नम्बरों को लेकर इस प्रकार चिल्ला रही है जैसे उसे आतंकवादियों की पूरी-पूरी सूची ही मिल गई हो। साध्वी ने जिसे भी फोन किया है महाराष्ट् सरकार की दृष्टि में वही आतंकवादी हो गया है। ताज्जुब है कि सरकार योगी आदित्य नाथ और यहाँ तक की स्वामी असीमानन्द को भी आतंकवादियों की सूची में रख रही है। स्वामी असीमानन्द के पीछे पड़ना तो सोनिया गांधी के चेलों के लिए और भी जरूरी था क्योंकि जिस प्रकार स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती उड़ीसा में चर्च के मतांतरण आंदोंलन में बाधा बने हुए थे। स्वामी असीमानन्द उसी प्रकार गुजरात में चर्च के मतांतरण आंदोलन का विरोध कर रहे थे। न जाने क्यूं अभी तक चर्च ने उन्हें भी स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की तरह गोली नहीं मारी। पर चर्च ने शायद इसकी जरूरत नहीं समझी हागी। क्योंकि उसे पता था कि सरकार जल्दी ही असीमानन्द को आतंकवादी घोषित करके उनके पीछे पड़ जायेगी। आश्चर्य न होगा यदि कल ए0टी0एस0 के लोग स्वामी असीमानन्द को गोली मार कर कह दें कि वे मुठभेड़ में मारे गये और मोमबत्ती ब्रिगेड के लोग इंडिया गेट पर भंगड़ा डालना शुरू कर दें।

यदि कल राष्ट्रवादी शक्तियों की सरकार बनती है तो सोनियॉ गांधी, कांग्रेस और चर्च तीनों को कहते देर नहीं लगेगी कि आतंकवादी शक्तियाँ सत्ता पर काबिज हो गयी हैं। महाराष्ट् की कांग्रेसी सरकार इसी लिए अभी से अशोक सिंहल से लेकर भाजपा नेताओं को आतंकवादी प्रचारित करने के काम में लग गई है। सोनियाँ गांधी ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करके उसकी भारत में दखलअंदाजी का रास्ता पहले ही खोल दिया है। राष्ट्र्वादी शक्तियों के सत्ता में आ जाने से अमेरिका यह भी कह सकता है कि गैर जिम्मेदार लोगों के हाथ में भारत के परमाणु अस्त्र आ गये हैं।ये लोग गैर जिम्मेदार हैं इसकी एक रिर्हसल अमेरिका नरेन्द्र मोदी को वीजा न देकर कर ही चुका है। जो आरोप अमेरिका ने मोदी पर लगाये थे वे कमोबेश राष्ट्रवादी शक्तियों को आतंकवाद के आस पास ठहराने जैसे ही थे। अब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को घेरे में लेकर कुछ शक्तियाँ हिन्दु आतंकवाद का काल्पनिक राक्षस खड़ा करना चाहती हैं ताकि उस राक्षस को मारने के लिए अमेरिका या खुद चला आये या फिर उसे बुलाया जा सके। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के किस्से को देखते हुए जरूरी हो गया है कि सोनिया गांधी और वेटिकन के रिश्तों की गहराई से जांच की जाये ताकि उन ताकतों का पर्दा फाश हो सके जो राष्ट्रवादी शक्तियों को आतंकवादी घोषित करके अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगी हुई है। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

1 COMMENT

  1. प्यारे भाई, हिन्दुस्तान और इराक में बहुत फर्क है. अमेरिका को हिन्दुस्तान को दुश्मन नहीं दोस्त के तौर पर जरुरत है क्योंकि चीन ने उसकी हवा टाइट कर रखी है, और पूरे ऐशिया महाद्वीप में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जो चीन के सामने ताल ठोंक कर खड़ा हो सकता है. ये तो हमारे जाहिल, और कमीने नेता लोगों ने भारत की वाट लगा दी वरना अपना देश चीन से बढ़कर ही होता.

    बहरहाल, किसी अमेरिका के बूते में इतना दम नहीं कि हिन्दुस्तान को इराक या अफगनिस्तान समझ ले. अभी तो यह लोग खुद ही भिखमंगई की कगार पर खड़े हैं, मन्दी ने इनकी सारी अकड़ फूं कर रखी है

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