सुरक्षित भोजन और सुनहरा भविष्य

डॉ.शंकर सुवन सिंह

विश्व भर में,हर वर्ष 60 करोड़ लोग अस्वच्छ और असुरक्षित भोजन के सेवन से बीमारी का शिकार होते हैं और चार लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। स्वच्छ एवँ सुरक्षित भोजन,बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और भुखमरी का अन्त करने के लिये अहम है। हम जो भोजन चुनते हैं और जिस तरह से हम उसका सेवन करते हैं,वह हमारे स्वास्थ्य और हमारे ग्रह के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। कृषि-खाद्य प्रणालियों के काम करने के तरीके पर इसका प्रभाव पड़ता है। जीवन जीने के लिए खाद्य पदार्थों की मूलभूत आवश्यकता होती है। वर्ष 2021 विश्व खाद्य दिवस की थीम है-“स्वस्थ कल के लिए अब सुरक्षित भोजन”(सेफ फ़ूड नाउ फॉर ए हेल्थी टुमारो। आहार शुद्ध और पौष्टिक होना चाहिए। सुरक्षा का तात्पर्य है खतरे की चिंता से मुक्ति। खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य है-खाद्य की कमी के खतरे की चिंता से मुक्ति। खाद्य सुरक्षा का मतलब है समाज के सभी नागरिकों के लिए जीवन चक्र में पूरे समय पर्याप्त मात्रा में ऐसे विविधतापूर्ण भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित होना,यह भोजन सांस्कृतिक तौर पर सभी को मान्य हो और उन्हें हासिल करने के समुचित माध्यम गरिमामय हों। खाद्य सुरक्षा की इकाई देश भी हो सकता है,राज्य भी और गाँव भी। खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है। महत्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो। किसी क्या खूब कहा है-भूखे भजन न होए गोपाला! पहले अपनी कंठी माला। भूखे पेट तो ईश्वर का भजन भी नहीं होता है। फिर विकास की बात सोचना अपने को अंधेरे में रखने के सामान है। इसका एक पक्ष यह भी है कि आने वाले समय की अनिश्चितता को देखते हुए हमारे भण्डारों में पर्याप्त मात्रा में अनाज सुरक्षित हों, जिसे जरूरत पड़ने पर तत्काल जरूरतमंद लोगों तक सुव्यवस्थित तरीके से पहुचाया जाये। भोजन का अधिकार एक व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है। केवल अनाज से हमारी थाली पूरी नहीं बनती है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें विविधतापूर्ण भोजन(अनाज,दालें,खाने का तेल,सब्जियां,फल,अंडे,दूध,फलियाँ,गुड़ और कंदमूलों)की हर रोज़ जरूरत होती है ताकि कार्बोहायड्रेट,वसा,प्रोटीन आदि पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा किया जा सके। भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने में सरकार की सीधी भूमिका है क्योंकि अधिकारों का संरक्षण नीति बना कर ही किया जाता है और सरकार ही नीति बनाने की जिम्मेदारी निभाती है। यदि यह विविधता न हो तो हमारा पेट तो भर सकता है,परन्तु पोषण की जरूरत पूरी न हो पाएगी। सामान्यतः केवल गरीबी ही भोजन के अधिकार को सीमित नहीं करती है;लैंगिक भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार के कारण भी लोगों के भोजन के अधिकार का हनन हो सकता है। पीने के साफ़ पानी,स्वच्छता और सम्मान भी भोजन के अधिकार के हिस्से हैं। हाल के अनुभवों ने सिखाया है कि राज्य के अनाज गोदाम इसलिये भरे हुए नहीं होना चाहिए कि लोग उसे खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं। इसका अर्थ है कि सामाजिक सुरक्षा के नजरिये से अनाज आपूर्ति की सुनियोजित व्यवस्था होना चाहिए। यदि समाज की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी तो लोग अन्य रचनात्मक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका निभा पायेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार का दायित्व है कि बेहतर उत्पादन का वातावरण बनाये और खाद्यान्न के बाजार मूल्यों को समुदाय के हितों के अनुरूप बनाये रखे। खाद्य सुरक्षा रूपी मकान के चार प्रमुख स्तम्भ हैं-1.भोजन की उपलब्धता,2.भोजन की पहुँच,3.भोजन का सदुपयोग,4.भोजन की स्थिरता। यह स्तम्भ खाद्य सुरक्षा को गति और सही दिशा देते हैं | मकान और स्तम्भ दोनों का आधार पोषण है। कहने का तात्पर्य बिना पोषण के खाद्य सुरक्षा का कोई मतलब नहीं  है। पोषण की सुरक्षा एक ऐसी स्थिति है जब सभी लोग हर समय पर्याप्त और जरूरी मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन का वास्तव में उपभोग कर पाते हों। जीवन को सक्रीय और स्वस्थ रूप से जीने के लिए जरूरी इस भोजन में विभिन्नता,विविधता,पोषण तत्वों मौजूदगी और सुरक्षा भी निहित हो। खाद्य सुरक्षा के व्यावहारिक पहलू निम्नवत हैं-उत्पादन- यह माना जाता है कि खाद्य आत्मनिर्भरता के लिए उत्पादन में वृद्धि  करने के निरन्तर प्रयास होते रहना चाहिए। इसके अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अनुरूप नई तकनीकों का उपयोग करने के साथ-साथ सरकार को कृषि व्यवस्था की बेहतरी के लिये पुनर्निर्माण  की नीति अपनाना चाहिए। वितरण- उत्पादन की जो भी स्थिति हो राज्य के समाज के सभी वर्गों को उनकी जरूरत के अनुरूप अनाज का अधिकार मिलना चाहिए। जो सक्षम है उसकी क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध होना चाहिए और जो वंचित एवं उपेक्षित समुदाय हैं(जैसे- विकलांग,वृद्ध,विधवा महिलायें,पिछड़ी हुई आदिम जनजातियां आदि)उन्हें सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा करवाना राज्य का आधिकार है। आपाताकालीन व्यवस्था में खाद्य सुरक्षा समय की अनिश्चितता उसके चरित्र का सबसे महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक आपदायें समाज के अस्तित्व के सामने अक्सर चुनौतियां खड़ी करती हैं। ऐसे में राज्य यह व्यवस्था करता है कि आपात कालीन अवस्था (जैसे- सूखा,बाढ़ या चक्रवात)में प्रभावित लोगों को भुखमरी का सामना न करना पड़े। खाद्य सुरक्षा के तत्व-उपलब्धता-प्राकृतिक संसाधनों से खाद्य पदार्थ हासिल करना- सुसंगठित वितरण व्यवस्था,पोषण आवश्यकता को पूरा करना,पारम्परिक खाद्य व्यवहार के अनुरूप होना,सुरक्षित होना,उसकी गुणवत्ता का मानक स्तर का होना।

1.आर्थिक पहुंच- यह सुनिश्चत होना चाहिए कि खाद्यान्न की कीमत इतनी अधिक न हो कि व्यक्ति या परिवार अपनी जरूरत के अनुरूप मात्रा एवं पोषण पदार्थ का उपभोग न कर सके। स्वाभाविक है कि समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के जरिये खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराई जाना चाहिए। 2.भौतिक पहुंच- इसका अर्थ यह है कि पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न हर व्यक्ति के लिये उसकी पहुंच में उपलब्ध होना चाहिए। इस सम्बन्ध में शारीरिक-मानसिक विकालांगों एवं निराश्रित लोगों के लिए पहुंच को सुगम बनाना जरूरी है। मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा(1948)का अनुच्छेद 25(1)कहता है कि हर व्यक्ति को अपने और अपने परिवार को बेहतर जीवन स्तर बनाने, स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने का अधिकार है जिसमें भोजन,कपड़े और आवास की सुरक्षा शामिल है। खाद्य एवं कृषि संगठन(एफ.ए.ओ.)ने 1965 में अपने संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की कि मानवीय समाज की भूख से मुक्ति सुनिश्चित करना उनके बुनियादी उद्देश्यों में से एक है। समानता और सम्मानजनक व्यवहार एक बुनियादी शर्त है। जब रिश्ते बेहतर होते हैं तो समस्याओं को हल करना बहुत आसान हो जाता है।

 खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून,नियम एवं संगठन कुछ इस प्रकार हैं –

1.अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम(आई.एच.आर,2005), 2.इन्फोसान– यह एफएओ और डब्लूएचओ द्वारा सूचना विनिमय और सहयोग के लिए संयुक्त रूप से बनाया गया खाद्य सुरक्षा अधिकारियों का अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा नेटवर्क है।, 3.कोडेक्स अलीमेंटरियस कमीशन(सी.ए.सी.)– यह स्वास्थ्य संबंधी और पौष्टिक भोजन की गुणवत्ता(डब्ल्यू.एच.ओ और एफ.ए.ओ संयुक्त कार्यक्रम)से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर स्थापित वैश्विक मानक है।, 4.हजार्ड एनालिसिस एंड क्रिटिकल कंट्रोल पॉइंट सिस्टम(एच.ए.सी.सी.पी.)– यह एक प्रोसेस कंट्रोल सिस्टम है जो खाद्य उत्पादन प्रक्रिया में संभावित खतरों को पहचानता हैं और खतरों को होने से रोकने के लिए हरसंभव विकल्प बतलाता हैं।, 5.गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज/अच्छा निर्माण अभ्यास(जी.एम.पी.)- यह सुरक्षित और पौष्टिक भोजन का उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम सेनेटरी और प्रसंस्करण आवश्यकताओं को दर्शाता है।, 6.फ़ूड रिकॉल- फ़ूड रिकॉल को आपूर्ति श्रृंखला से खाद्य पदार्थों(जो उपभोक्ताओं के लिए बिक्री,वितरण या उपभोग के दोरान सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकते है)को हटाने के लिए की गई कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह खाद्य श्रृंखला के किसी भी स्तर पर बाजार से खाद्य पदार्थों को हटा सकता है,भले ही खाद्य पदार्थ उपभोक्ताओं तक पहुच चूका हो। शब्द “वापसी” का उपयोग व्यापक रूप से ‘फ़ूड रिकॉल’ के संबंध में किया जाता है।, 7.यूज़ बाय डेट/उपयोग-दर-दिनांक(सुझाई गई अंतिम उपभोग की तारीख या समाप्ति की तिथि)– यह वह अनुमानित अवधि है जिसके उपरांत उत्पाद की गुणवत्ता या तो नष्ट हो जाती है या काफी कम हो जाती है। इसका मतलब यह है कि उत्पाद की गुणवत्ता एवं उपभोक्ता के लिए उसकी उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए ‘यूज़ बाय डेट’ से पहले-पहले उत्पाद को प्रयोग में ले आना चाहिए।

8.एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण एवं खाद्य सुरक्षा/ वन हेल्थ एंड फ़ूड  सेफ्टी: खाद्य सुरक्षा के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण अपनाकर मानव और पशु चिकित्सा सहित वन्यजीव और जलीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी समुदायों के साथ पौधे रोग विज्ञान समुदायों सहित कई स्वास्थ्य संबंधी क्षेत्रों से विशेषज्ञो और संसाधनों को एकीकृत कर उनके विचारो का समावेश करना एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण एवं खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत आता है(आई ओ एम,2012।, 9.एफ.एस.एस.ए.आई : भारत में खाद्य पदार्थों की सुरक्षाऔर मानकों का निरीक्षण करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.)को 2006 में खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के तहत स्थापित किया गया था। 10.आई.एस.ओ.22000: आई.एस.ओ.22000 एक मानक है जिसे खाद्य सुरक्षा के मानकीकरण के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा विकसित किया गया है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपाय इस प्रकार हैं –

अ) नीति निर्माताओं द्वारा अनुसरण किये जाने वाले प्रयास-i)पर्याप्त भोजन प्रणाली और बुनियादी ढांचे का निर्माण और रखरखाव,ii)बहु-क्षेत्रीय सहयोग एवं सह्कार्यता (विशेष रूप से पशुपालन और कृषि क्षेत्रों में),iii)खाद्य सुरक्षा को व्यापक खाद्य नीतियों और कार्यक्रमों में एकीकृत करना (विशेष रूप से पोषण और खाद्य सुरक्षा),iv)विश्व स्तर पर सोचें एवं स्थानीय रूप से कार्य करें- घरेलू स्तर पर निर्मित भोजन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा को सुनिश्चित करना।

ब. खाद्य संचालकों और उपभोक्ताओं द्वारा अनुसरण किये जाने वाले प्रयास-i)भोजन की पर्याप्त जानकारी एवं ख़राब भोजन द्वारा होने वाली आम बीमारियों की पर्याप्त सुचना रखें,ii)डब्ल्यूएचओ द्वारा दी गयी पांच कुंजीयों  का अभ्यास करते हुए भोजन को सुरक्षित बनाएं,iii)उपभोक्ता खरीद हुई  सामग्री की जानकारी प्राप्त करने के लिए सामग्री के साथ लगे हुए लेबल को पढ़ें।

स)विश्व खाद्य संगठन(डब्लू.एच.ओ)द्वारा सुरक्षित भोजन के लिए दी गयी पांच कुंजियां (डब्ल्यू.एच.ओ.,2015)- 1.खाद्य सामग्री की सफाई: i)नल के पानी के साथ कच्चे फल और सब्जियां पूरी तरह धो लें,ii)हमेशा अपने हाथो एवं रसोई को साफ़ रखे,सब्जी काटने के लिए सब्जी काटने वाले बोर्ड का प्रयोग करे।, 2.पके हुए और कच्चे भोजन को अलग रखना : i)कच्चे भोजन और खाने-पीने के लिए तैयार भोजन को मिलाये ना,ii)कच्चे मांस, मछली और कच्ची सब्जियां को भी साथ में न रखें।, 3.अच्छी तरह से पकाना : i)मांस,मुर्गी, झींगा और समुद्री भोजन को अच्छी तरह से पकाए,ii)जब तक भोजन से गरम भाप ना आये भोजन को पाकते रहे।, 4.सुरक्षित तापमान पर भोजन रखें: i)पके हुए भोजन को दो घंटे के अंदर फ्रिज में रख दे,ii)जमे हुए भोजन को डीफ्रास्ट करने के लिए कमरे के तापमान पर न रखे बल्कि रेफ्रिजरेटर या माइक्रोवेव का उपयोग करे। 5.सुरक्षित पानी और कच्चे खाद्य प्रदाथ का प्रयोग करें: i)भोजन की तैयारी के लिए सुरक्षित पेयजल का उपयोग करें,ii)पैक किए गए भोजन को खरीदने के दौरान‘यूज़ बाय डेट’/’उपयोग-दर-दिनांक’और लेबल की जांच करें।

समाज का एक हिस्सा अपनी जरूरत का खाद्यान्न बाजार से नहीं खरीदता था। वह या तो पैदा करता था या संग्रहित करता था। परन्तु अब हर कोई बाजार के हवाले है। आर्थिक लाभ कमाने के लिये छोटे-छोटे किसानों ने भी खाद्यान्न की फसलों को छोड़कर नकद आर्थिक लाभ देने वाली फसलों पर ध्यान केन्द्रित किया और विपरीत परिस्थितियों में बमुश्किल अपना अस्तित्व बचा पाये। क्या एक बार फिर खाद्य सुरक्षा की पारम्परिक व्यवस्था पुर्नजीवित हो पायेगी। खाद्य सुरक्षा से खाद्यान में कमी नहीं होगी तो राष्ट्र के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा होगा। वैश्विक महामारी से विश्व में आपात काल जैसी अवस्था हो जाती है। आपात काल की स्थिति में रोजमर्रा की वस्तुओं में कमी आने लगती है। खाद्यान में कमी का होना आपात काल की सबसे बड़ी बीमारी है। भोजन की कमी के कारण मानव त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगता है। खाद्यान में कमी को पूरा करने का सबसे अच्छा और कारगर उपाए है “खाद्य सुरक्षा”। भारत को खाद्य सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना होगा। जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है,उनको पोषण की आवश्यकता है। शारीरिक रूप से कमजोर लोग ही कोरोना जैसी बीमारी का सामना नहीं कर पाते। शरीर पोषण से मजबूत बनता है| यह कहने में आश्चर्य नहीं होगा की समुदाय का स्वास्थ्य ही राष्ट्र की सम्पदा है। अतएव हम कह सकते हैं कि सुरक्षित भोजन के बिना स्वस्थ्य भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती।

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