अजब बाबाओं का गजब धर्मयुद्ध

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डॉ. शशि तिवारी

भारत प्रारंभ से ही साधु-संत फकीर, ऋषि मुनियों की भूमि रहा है! अध्यात्म-ज्ञान के क्षेत्र में भारत का पूरे विश्व में एक अलग ही स्थान है, फिर बात चाहे भगवान राम, कृष्ण महावीर ही क्यो न हो, पूरे विश्व में हर एक शांति की खोज में लगा हुआ है! निःसंदेह आत्मिक शांति भारत की ही भूमि पर है! धर्म-आध्यात्म की विज्ञान एवं ज्ञान से मुठभेड़ हमेशा से होती आई है। भारत की जनता बड़ी धर्म भीरू है! आस्था के इस देश में बड़े ही अजब-गजब लोग पाए जाते हैं! हकीकत में देखा जाए तो आदमी की अधिकतम आकांक्षा ईश्वर हो जाना ही होती है। इसीलिये आज जिसे भी देखिये आस्था के नाम पर स्वयं को भगवान तुल्य घोषित कर पुजवाने का कार्य भी बढ़-चढ़ कर कर रहा है। आस्था, श्रद्धा, विश्वास के नाम पर जितना पाखंड, धोखे का खेल पोंगापंथियों ने किया शायद ही किसी ने किया हो। हकीकत में विश्वास अज्ञान को बचाने का आधार है। सत्य को सिखाया नहीं जा सकता, सत्य अंदर से आता है और विश्वास से उपजा ज्ञान धर्म हो नहीं सकता? धर्म की कोई शिक्षा नही हो सकती, हाँ धर्म की साधना जरूर हो सकती है! वास्तव में धर्म का जन्म अंदर से होता है जबकि शिक्षा बाहर से दी जाती है। अनुभव से उपजा ज्ञान ही धर्म है, लेकिन आज कुछ ढोंगी बाबा मजमा शीर्षासन कर मजमा लगा अपनी-अपनी दुकान और दरबार में से मस्त हैं। इस तरह से तो केवल दासता ही आ सकती है, बंधन से मुक्त नहीं हो सकते। धर्म के नाम पर आज हर कोई केवल गुलामों की फौज ही तैयार कर रहा है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भक्ति और ज्ञान एक साथ नहीं रह सकते या यूं कहें भक्ति के उदय उदय होते ही ज्ञान का क्षय हो जाता है।

आज इतने बाबाओं की फौज खड़ी हो गई है कि भक्त भी भ्रमित है कहां जाए, कहां रूके? इस स्थिति में वह केवल एक ही काम कर सकता है वह है श्रृद्धा! श्रृद्धा कर सकता है, श्रृद्धा दिखा सकता और इसका प्रदर्शन भी वह जी जान से करता भी है। हकीकत में श्रृद्धा है ही सांसरिक अर्थात् जिससे हमने कुछ भी सीखा उसके प्रति श्रृद्धा होना स्वाभाविक ही है आखिर चोर, पापी भी अपने गुरू के प्रति श्रृ़द्धा तो रखते ही हैं।

कर्म, ज्ञान, भक्ति का पाठ पढ़ाने वालों को ही आप ज्यादा सांसरिक झमेले में पड़ा पायेंगे। एक बार अज्ञानी को तो भगवान मिल सकता हैं, लेकिन ज्ञानी को नहीं? क्योंकि भगवान के मिलन में सबसे बड़ी अड़चन ही उसका सीखा ज्ञान है।

खुद को पुजवाते तथाकथित ये बाबा केवल व्यापारी है? चाहे फिर वो अपने बोलने की कीमत वसूले या पूजन सामग्री बैचे या कुछ और ? फिर बात चाहे आसाराम की हो, नित्यानंद की हो, भीमानंद उर्फ इच्दाधारी की हो या निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा या ऐसे अन्य, सभी के दामन दागदार है। सारे प्रतिस्पर्धी बाबाओं में खलबली या चिंता धर्म को लेकर नही निर्मल बाबा की 235 करोड़ संपत्ति के साथ अप्रत्याशित लगातार बढ़ती आय को लेकर हुई है। फिर क्या सभी अपने-अपने झण्डों को ले धर्मयुद्ध में कूंद पड़े, जगदगुरू स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कहते हैं कि अगर गुरू का कथन वेद शास्त्रानुमोदित नहीं है तो वह स्वीकार्य नहीं है ओर ऐसा गुरू हेय है, त्याज्य है। ऐसे आडम्बरी बाबाओें-साधुओं की संपत्ति जप्त कर कड़ी कार्यवाही करना चाहिये।

हकीकत में देखे तो हम पाते है कि देश में नकलीपन इस कदर हावी हो गया है कि वस्तुओं की जगह अब नकली शंकराचार्य, गद्दीपती, पीठ एवं आश्रम जन्म ले रहे हैं, जिनका एक मात्र उद्देश्य जनता को भरमाकर या ईश्वरीय प्रकोप का भय दिखा पैसे ऐंठने-वसूलने के ही केन्द्र मात्र बन कर रह गए है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि जगद गुरू भी अपना दायित्व ठीक से नहीं निभा पा रहे? उन्हें भी मान-अपमान, अभिमान ने अभी तक छोड़ा नहीं है? वो भी केवल अपने मठ के अंदर तक ही सिमट कर रह गए हैं? आखिर सत्य से परिचय कौन कराएगा?

हकीकमत में देखा जाए तो अचानक आई बाबाओं की बाढ़ इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया की ही देन है जिसमें कथाकार, व्याख्याकार, तांत्रिक, जादू टोना करने वाले पता नहीं कब से स्वयं भू-भगवान बन जनता पर आर्शीवाद एवं कृपा बरसाने लगे है?

आशाराम बापू मूलतः कथा वाचक है लेकिन मीडिया में कभी सामानों की बिक्री, कभी आश्रम में हुई बच्चें की मौत, कभी आश्रम के नाम पर ज़मीन हड़पने का, भक्त राजू चांडोक पर हमला कराने, आसाराम के पुत्र पर लड़कियों के शोषण, बिना लायसेंस के दवाओं के निर्माण का हो हमेशा मीडिया में समय-समय पर छाए रहते हैं।

दूसरे बाबा तमिलनाडू के राजेश्वर उर्फ स्वामी नित्यानंद का भांडा 2010 में एक दक्षिण भारतीय अभिनेत्री के साथ आपत्तिजनक मुद्रा वाला वीडिया टेप मार्केट में आ गया खुद की गलती को ढ़कने के लिये अपने को ही नपुंसक बता डाला, मोक्ष के नाम पर सेक्स के आरोप लगे। तीसरे चर्चित बाबा भीमानंद उर्फ इच्छाधारी बाबा साधू के भेष में हाई प्रोफाइल सेक्स रेकेट चलाने का भंडाफोड़ हुआ। इनके पास से जप्त डायरी से 125 करोड़ के कमीशन का राज खुला।

चैथे बाबा निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा जो ईंट के भट्टे से लेकर खनन, कपड़े की दुकान तक के व्यापार में खुद का भट्टा बिठा कर अब कृपा के नाम पर लोगों की समस्याओं के निदान का दावा करने वाले निर्मल बाबा हाईटेक एवं मीडिया प्रबंधन के माध्यम से थर्ड आई आॅफ निर्मल बाबा के समागम का खेल और ज्यादा आगे चलता विज्ञापन को ले रायता फैला दिया और फिर शुरू हुआ निर्मल बाबा के कारनामों का पोस्टमार्टम। अन्य लोगों की तरह कुछ मीडिया हाउस को भी बाबा का 235 करोड़ का टर्न ओवर खटकने लगा। यहां देखा जाए तो मीडिया को पहले भी फायदा पहुंचा था उनकी टी.आर.पी. में आई उछाल के कारण वही निर्मल बाबा की छीछालेदर करने में भी इलेक्ट्राॅनिक मीडिया ने अपनी टी.आर.पी. बढ़ाई। इस तरह बाबा को बनाने एवं मिटाने में मालामाल हुआ तो केवल मीडिया। यहां इलेक्ट्रिाॅनिक मीडिया पर भी प्रश्न चिन्ह लगा? यहां इलेक्ट्रिाॅनिक मीडिया अपनी जवाबदेही से किसी भी तरह से बच नहीं सकता भले ही कोई व्यक्ति विज्ञापन बतौर कोई सामाग्री जनता को परोस रहा था, सही गलत के साथ यहां मीडिया का भी दायित्व था पहले परीक्षण कर केवल सही एवं सकरात्मक सामग्री को ही दिखाया जाना चाहिये था? जो नहीं हुआ।

अब वक्त आ गया है केन्द्र का सूचना प्रसारण मंत्रालय अपनी कुंभकर्णीय नींद को तोड़ अपनी जवाबदेही को निभाए। मंत्रालय सफेद हाथी की तरह न रहे? चेनलों पर प्रसारित हो होने वाली सामग्री किसी कड़े नियमों एवं कायदों के बाद ही प्रसारित हो यदि नियमों में केाई लूप होल है तो उन्हें भी बंद करो।

निर्मल बाबा के कारनामों से यहां कुछ यक्ष प्रश्न उठ खड़े हो गए है मसलन यदि उन्हें देव कृपा थी भी तो इसे व्यापार क्यों बनाया? क्या यह ईश्वरीय शक्तियों का दुरूपयोग नहीं है? भक्ति क्या धंध है? गोरख धंधियों को लाखों-करोड़ों की धार्मिक भावनाओं से खेलने की इन्हें किसने अनुमति दी? बाबा भोलेनाथ को घर से बाहर निकालने के पीछे क्या मंशा या षड़यंत्र था? भक्तों को बेवकूफ बना उनके पैसों से निजि व्यवसाय कहां तक उचित है? इसी के साथ संबंधित मंत्रालय मूक क्यों बना रहा? 1952 ड्रग एण्ड मैजिक एक्ट का क्या हुआ? दोषी मंत्री, अधिकारी एवं चैनलों के विरूद्ध देश के मुखिया अर्थात् प्रधानमंत्री क्या कार्यवाही कर रहे हैं। कहीं मंत्रालय एवं चेनलों के मध्य कोई गठजोड़ तो नहीं है? ऐसे अन्य बाबाओं द्वारा भक्तों के धनों पर डाका डालने वालों के विरूद्ध संबंधित मंत्रालय एवं विभाग की क्या भविष्य की रणनीति होगी? दोषी कब तक खुले घूमते रहेंगे? आदि-आदि।

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  1. डाक्टर शशि तिवारी जी, आप तो सीधा सीधा मीडिया पर सेंसरशिप की बात कर रहीं हैं.क्या यह उचित है?

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