शीतलकुमार अक्षय
इतिहासकारों के अनुसार वैसे तो इस उज्जैन में पूर्वोत्तर समय के दौरान कई राजा-महाराजाओं का अधिपत्य स्थापित रहा है, लेकिन सर्वाधिक रूप में यह नगरी सम्राट विक्रमादित्य की नगरी के रूप में स्थापित रही है। सम्राट विक्रमादित्य को न्यायप्रिय सम्राट माना जाता है और उनके बारे में कई किवदंतिया प्रचलित है। इतिहासकारों ने बताया कि सम्राट विक्रमादित्य का शासनकाल ई. पूर्व 57 माना जाता है।
वे न्यायप्रिय तो थे ही, साहित्य, संस्कृति और ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। उनके राज्य में नव रत्न थे, जो विभिन्न कलाओं में दक्ष माने जाते रहे। इन नव रत्नों के नाम धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररूचि उल्लेखित है। इनकी कला दक्षता के संदंर्भ में कई कहानियां प्रचलित है। आईये जानते है इनके संबंध में जानकारी संक्षेप में-
सिंहस्थ स्मृति नामक पुस्तक में इन सभी नव रत्नों के संदंर्भ में जानकारी दी गई है। यथा अनुसार धन्वन्तरि जहां आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान थे वहीं वे आयुर्वेद के ग्रंथों के रचियता भी रहे। पुस्तक में उल्लेखित है कि क्षीरस्वामी कृत अमर कोष टीका के वनौषधि वर्ग के पचास वें श्लोक की व्याख्या में ज्ञात होता है कि धन्वन्तरि का बनाया एक कोष था, किन्तु आज केवल घन्वन्तरि निघण्टु नामक ग्रंथ ही प्रसिद्ध है। दूसरे नव रत्नों में क्षपणक का नाम समक्ष में आता है। इनके बारे में बताया गया है कि क्षपणक का अर्थ जैन यति होने से उन्हें प्रसिद्ध जैनाचार्य सिद्धसेन माना जाता है। प्राचीन रूप से उनका नाम कुमुदचंद्र भी उल्लेखित मिलता है। क्षपणक ने न्यायावतार, दर्शनशुद्धि, सम्मति तर्कसूत्र तथा प्रमेय रत्नकोष जैसे ग्रंथों की रचना की थी। इसी तरह अमरसिंह एक महान कोशकार के रूप में प्रसिद्ध थे। वे श्रेष्ठ कवि भी थे और उनका अमर कोष एवं एकाक्षर नाममाला नामक प्रसिद्ध ग्रंथ है। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में शंकु भी है, ये शिक्षाचार्य के रूप में प्रसिद्ध थे, जबकि बेतालभट्ट की प्रसिद्धि तांत्रिक के रूप में थी। इतिहासकारों के अनुसार इन्होंने नीति प्रदीप नामक ग्रंथ की रचना की थी। घटकर्पर नामक नवरत्न कवि, विद्वान होने के साथ ही गुप्त धन शास्त्रज्ञ के रूप में प्रसिद्ध थे। महाकवि कालिदास अन्य सभी नवरत्नों में महत्वपूर्ण स्थान रखते है। उन्होंने शाकुंतल, रघुवंश, मेघदूत, मालकाग्निमित्रं, ऋतुसंहार, विक्रमोवर्शीयम जैसे महान और अमूल्य रचनाओं को रचा। इन सभी से उनकी ख्याति अक्षुण्ण बनी हुई है। वराहमिहिर का नाम ज्योतिष शास्त्र के उद्भट विद्वान के रूप में लिया जाता है। जानकारों के मुताबिक वराहमिहिर का जन्म उज्जैन के समीपस्थ कायथा ग्राम में हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य के एक अन्य नवरत्न थे, जिनका नाम वररूचि है। वे ख्यात वैयाकरण के रूप में जाने जाते है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि वररूचि ने प्राकृत प्रकाश, पत्रकौमुदी, शब्द लक्षण जैसे ग्रंथों की रचना की।
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