संकट भरे सत्र में कैसा हो पक्ष-विपक्ष

बिहार चुनाव के नतीजो ने तो भाजपा के लिये आत्मचिन्तन की स्थिती उत्पन्न कर दी हैं ,साथ ही नई मुसिबतो का उद्घोष भी कर दिया हैं ।ये नई मुसीबत शीतकालीन सत्र के रूप मे सरकार का स्वागत कर रही हैं।26 नवम्बर से 23 दिसम्बर तक चलने वाले इस सत्र मे सरकार को कई महत्वपूर्ण विधेयक जैसे जीएसटी ,भूमी अधिग्रहण कानून मे संशोधन ,रीयल इस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट और निगोशिएबल इंस्ट्रमेंट एंड आब्रिट्रेशन विधेयक को पारित करना हैं लेकिन बिहार चुनाव के नतीजो के बाद से जिस तरह विपक्षी दलों के सुरो से ही आक्रमकता छलक रही हैं वह सरकार के लिये चिन्ता का विषय हैं।सरकार इस विपक्षी एकता का नमूना दिल्ली चुनाव के बाद वाले संसद के दो सत्रो मे देख चुकी हैं कि किस तरह विपक्षी दलों ने सङक से लेकर संसद तक सरकार की घेराबन्दी की थी और राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला था ,इसीलिए सरकार की चिन्ता लाजमी हैं ।जहाँ इन विधेयको को पारित कराकर सरकार आर्थिक सुधार की गति पर बल देना चाहती हैं ,वहीँ दूसरी तरफ राज्यसभा मे बहुत की चिन्ता सरकार के पसीनें छुटाने का काम कर रहीं हैं।प्रमुख विपक्षी दल काग्रेंस के नेताओ के बयान ने हीं सरकार को शायद कम चिन्ता मे डाला था इसीलिए लालू यादव भी अपने पंख फैलाये मोदी सरकार से दो-दो हाथ का ऐलान कर रहें हैं।
इस समय विपक्ष की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं ,जिस तरह मानसून सत्र मे सुषमा स्वराज ,वसुन्धरा राजे ,शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद का पूरा सत्र बाधित किया गया पर बाद मे हुआ क्या न तो सरकार ने इस्तीफा मांगा और न ही इन लोगो ने इस्तीफा दिया और इस बेवजह की लङाई और मुद्दे से परे इस हंगामे मे जनता के मेहनत के पैसे को राजनीतिक दलों ने सह्रदयपूर्ण हंगामे की भेंट चढा दिया । सत्र की समाप्ति के बाद विपक्षी तो यह मुद्दा भूल ही गया और सरकार भी इस तरफ से निश्चिन्त हो गयी । जिस तरह सामप्रदायिक्ता का मुद्दा हर चुनाव से पहले अपने चरम पर पहुँच जाता हैं और नतीजे के बाद एकाएक गायब सा हो जाता हैं।
इस शीतकालीन सत्र मे विपक्षी दलों को कुछ महत्वपूर्ण बातों को समझना होगा कि जनता ने जिन्हे बहुमत देकर जिताया हैं ,उनकी गलत नींतियो का विरोध करने के लिये जनता ने विपक्ष को भी चुनकर भेजा हैं लेकिन सरकार को गलत करने से रोकने के लिये न कि जनता के पैसे और संसद के सत्र को हंगामे की भेंट चठाने के लिये ।विपक्ष को विरोध करने का पूरा हक हैं लेकिन वह विरोध अच्छा तब होगा जब उस विरोध का कुछ निष्कर्ष आएगा और यह निष्कर्ष बहस के माध्यम से ही निकल सकता हैं ,इसीलिए विपक्ष को विपक्ष की भूमिका समझनी होगी । इस समय के वातावरण मे अगर सारा दोष विपक्ष पर ही लगा दे तो यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिये ठीक नहीं होगा। संसद का सत्र चलाने के लिये विपक्ष से ज्यादा सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं और इस समय सरकार के एकबार फिर आत्मचिन्तन करना होगा । माना कि वे बहुमत की सरकार हैं लेकिन बहुमत ने सरकार को मनमानी करने की छूट नहीं दी हैं। अगर सरकार यह बात अभी नहीं समझती तो दिल्ली ,बिहार जैसी स्थिती कहीं अन्य राज्य मे उत्तपन्न न हो जाये ।संसद के सत्र मे अगर विपक्ष किसी मुद्दे को उठाता है तो सरकार को उस मुद्दे को भी महत्व देना चाहिये और बहस के लिये उचित माहौल बनाना चाहिये ।संसद मे हंगामे के लिये केवल विपक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिये क्योकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती हैं। सरकार को संसद मे अनुशासन बनाने के लिये और सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिये सभी दलों का सहयोग लेना चाहिये और जनता के हित के लिये अगर कभी झुकना पङे तो सरकार को झुकना भी चाहिये ।सर्वदलीय बैठके करने से भी अगर बात न बने तो प्रत्येक दल से अलग –अलग मिलकर बात करनी चाहिया ।
पक्ष व विपक्ष दोनो को समझना होगा कि राजनीति अपनी जगह ठीक हैं लेकिन जब उस राजनीति से देश की जनता का हित होने के स्थान पर अहित हो रहा हो तो लोकतन्त्र मे ऐसी राजनीति का कोई स्थान नहीं हैं ।संसद का सत्र सुचारू रूप से चलाने के लिये पक्ष व विपक्ष दोनो की सहभागिता आवश्यक हैं क्योकि जनता ने दोनो को अपना बहुमूल्य वोट दिया हैं और सबसे पहले वह जनप्रतिनीधि बाद मे पक्ष या न विपक्ष हैं।

Author : Supriya

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