संकीर्ण कौन?

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आज के समाचार पत्र में दो घटनाओं ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जिस पर मत व्यक्त करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ! प्रथम, कांग्रेस अपने नए कार्यालय भवन में शीघ्र ही स्थानांतरित होगी! अब इसमें विशेष बात क्या है? २४ अकबर रोड पर पिछले कई दशकों से कांग्रेस का मुख्यालय चला आ रहा था! लेकिन सम्बंधित सरकारी विभाग द्वारा पिछले काफी समय से इसे खाली करने के लिए कहा जा रहा था और अब अंतिम रूप से अक्टूबर माह के अंत तक इसे खाली करने की समय सीमा दी गयी है! कांग्रेस ने अपने स्थापना दिवस २८ दिसंबर को इसमें “गृह प्रवेश” की घोषणा की है! ( कांग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज अफसर ए ओ ह्यूम द्वारा २८ दिसंबर १८८५ को की गयी थी)!कांग्रेस ने अपने कार्यालय का नया पता ९ ए कोटला रोड घोषित किया है! यह भूखंड पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित है और इसी पते से यह आबंटित भी किया गया था! लेकिन कांग्रेस ने इसका मुख्य द्वार इसके पिछवाड़े में पड़ रहे कोटला रोड पर रखा है और उसी के अनुसार इसका पता भी घोषित किया है! उनकी इच्छा ! लेकिन इससे स्वयं को ‘विशाल हृदया’ बताने वाली कांग्रेस की संकीर्ण मानसिकता ही उजागर होती है! जब उसी मार्ग पर स्थित अन्य सभी संगठनों ने अपना पता पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग ही घोषित किया है तो कांग्रेस ने ९ ए कोटला मार्ग क्यों घोषित किया? क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आजीवन प्रचारक रहे तथा भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ‘अजातशत्रु’ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी से कांग्रेस नफरत करती है और उनके नाम पर मौजूद देश की राजधानी की सड़क के नाम का उपयोग भी उसे स्वीकार्य नहीं है!

ये है कांग्रेस की तथाकथित विशाल हृदयता ! अब इसके उलट रा.स्व.स. का व्यव्हार देखें! १९५७ में मथुरा से निर्वाचन में महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप जी ने भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी रहे अटल बिहारी वाजपेयी जी को पराजित किया था! स्वाभाविक होता यदि संघ, जनसंघ के लोगों के मनों में राजा महेंद्र प्रताप जी के प्रति असम्मान होता! लेकिन ऐसा नहीं था! स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने वाले प्रत्येक सेनानी और देश हित में कार्य करने वाले सभी लोगों के प्रति संघ के कार्यकर्ताओं के मनों में स्वाभाविक तौर पर आदर और श्रद्धा का भाव रहता है! १९६८ में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित आज़ाद हिन्द सरकार की रजत जयंती मनाई जा रही थी! देहरादून में भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा इस अवसर पर घंटाघर स्थित पार्क में एक चित्र प्रदर्शनी और सभा का आयोजन किया गया था! और संघ के स्थानीय नेतृत्व के परामर्श से कार्यक्रम का मुख्य अतिथि और वक्ता राजा महेंद्र प्रताप जी को बनाया गया और कार्यक्रम की अध्यक्षता आज़ाद हिन्द फ़ौज के कर्नल प्रीतम से कराई गयी! किसी के भी मन में ये संकुचित विचार नहीं आया कि राजा साहब ने अटल जी को हराया था तो उनसे दूरी बनाकर रखें! और राजा साहब ने भी हम सबको बहुत स्नेह दिया और अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक “माई लाइफ स्टोरी ऑफ़ ५५ इयर्स ” अपनी शुभकामनाओं और हस्ताक्षरों सहित भेंट जो आज तक मेरे बहुमूल्य संग्रहण में है! इसी प्रकार से एक उदहारण स्वर्गीय महावीर त्यागी जी का है! त्यागी जी कांग्रेस की प्रथम पंक्ति के नेता थे और स्वाभिमानी और स्पष्टवादी थे!एक बार आनद भवन में एक बैठक में नेहरू जी नाराज होकर कह दिया था कि घोड़े मर गए गधों को राज मिल गया! प्रसंगवश उनके दो उदहारण देना उचित होगा! जब संसद में अक्साईचीन पर चीन के कब्ज़े के बारे में चर्चा चल रही थी तो आलोचनाओं का जवाब देते हुए तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तमक कर कहा कि तो क्या हो गया! वहां घास का एक तिनका भी पैदा नहीं होता है! इस पर श्री महावीर त्यागीजी ने खड़े होकर अपने सर से अपनी टोपी हटाई और गंजे सर पर हाथ फेरते हुए कहा कि मेरी खोपड़ी पर भी कुछ नहीं उगता तो कोई भी इस पर चढ़ बैठेगा?नेहरू जी निरुत्तर हो गए!

दूसरा प्रसंग ताशकंद समझौते के बाद का है! ताशकंद समझौते के तत्काल बाद प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री जी कि मृत्यु/हत्या हो गयी! देश शोक में डूबा था! लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य श्री महावीर त्यागी जी ने १९६५ के युद्ध में पाकिस्तान से जीती गयी भूमि को ताशकंद समझौते में वापिस लौटाने का विरोध करते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया!ये था उनका राष्ट्रवादी चरित्र!

१९७३-७४ में रा.स्व.स. के अखिल भारतीय अधिकारी श्री मोरोपंत पिंगले जी देहरादून आये थे! उनकी शाम की चाय का कार्यक्रम तत्कालीन अभाविप जिला अध्यक्ष प्रोफ. डॉ. आर सी अग्रवाल जी के घर पर था! वरिष्ठ संघ प्रचारक श्री कौशल किशोर जी, सूर्यकृष्ण जी और मैं उस चाय पर थे! चाय के बाद प्रोफ़ेसर साहब के टेरेस पर खड़े हुए मैंने पिंगले जी को बताया की सामने वाली कोठी श्री महावीर त्यागी जी की है! तुरंत श्री पिंगले जी ने कहा कि अच्छा! जरा मालूम करो कि अगर वो हों तो उन्हें नमस्कर करलें! कहीं भी संघ के वरिष्ठ लोगों के मन में ये विचार नहीं आया कि वो कांग्रेसी हैं तो हमें नहीं मिलना चाहिए! प्रत्येक राष्ट्रवादी को सम्मान देने की संघ के लोगों की स्वाभाविक आदत है! कुछ वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति श्री वी. आर. कृष्णा अय्यर जी का सौंवां जन्म दिवस था! न्यायमूर्ति श्री अय्यर आजीवन साम्यवादी आंदोलन से जुड़े रहे और धुर संघ विरोधी थे! उनके सौंवें जन्मदिवस पर साम्यवादी पार्टी का कोई नेता नहीं पहुंचा! लेकिन संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत जी श्रीफल और शाल लेकर उनका अभिनन्दन करने उनके घर गए! ये देखकर न्यायमूर्ति अय्यर आश्चर्य में पड़ गए कि जिनके साथ मैंने जीवन भर काम किया वो मेरा जन्मदिन भूल गए लेकिन जिन्हे मैंने जीवन भर कोसा और बुरा भला कहा वो मेरा अभिनन्दन करने आये! तो ऐसा है “संकीर्ण” कहे जाने वाले संघ के लोगों का व्यव्हार! अंतर स्पष्य है! कथनी और करनी सामने है!

गाँधी विरोधी पन्था का निर्माण” आज के अख़बार की दूसरी बात जो देखी वह था श्री रामचंद्र गुहा का लेख,” गाँधी विरोधी पंथ का निर्माण”! लेख अभाविप द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में सुभाषचंद्र बोस और भगत सिंह के साथ सावरकर कि प्रतिमा लगाने के विरोध में लिखा गया था लेकिन विद्वान लेखक अपने दम्भ में यहाँ तक लिख गए कि अभाविप का “बोस और भगतसिंघ के प्रति प्रेम इसलिए है, क्योंकि उनका (बोस और भगतसिंह का) गाँधी के साथ टकराव हुआ था! विद्वान कहें या मुर्ख? इन्हे बोस और भगत सिंह की महत्ता केवा यही नज़र आयी की उन्होंने गाँधी का विरोध किया था! क्या इससे अधिक अपमानजनक टिप्पणी इनदोनों महान क्रांतिकारियों और देश पर सब कुछ न्योछावर करने वाले महान सपूतों के लिए हो सकती है?गुहा जी, जरा खोज कर बताएं की कितने कांग्रेसियों को फांसी हुई थी, कितनो को सावरकर की तरह काळा पानी की सजा हुई थी और सेलुलर जेल में कोल्हू में बैल की तरह लगकर रोजाना तेल निकालना पड़ता था? श्री गुहा ने ये भी लिखा है की बोस वामपंथी कांग्रेसी थे और भगतसिंह एक क्रांतिकारी मार्क्सवादी! इससे ज्यादा सफ़ेद झूठ कोई नहीं हो सकता ! ये दोनों महान स्वतंत्रता सेनानी देश के डेढ़ अरब लोगों के ह्रदय सम्राट हैं! और माँ भर्ती के सच्चे सपूत थे! किसी भी वैचारिक पूर्वाग्रह में नहीं बंधे थे! जबकि गुहा जैसे स्वयंभू विद्वान न केवा संघ विरोध की मानसिक ग्रंथि से बंधे हैं बल्कि आजकल उनका मानसिक संतुलन भी कुछ डगमगाया हुआ लगता हैं! भगवन देश को ऐसे ‘विद्वानों’ से बचाये!

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