संस्कृत है संस्कृति की भाषा

—विनय कुमार विनायक
जब बोली जाती भाषा, होता सम्भाषण!
जब लिपीवद्ध नही की जाती
भाषा होती है बोली!
भाषा होती है भाष्य, जब बांध दिया जाता
व्याकरण की रुढ़ी में
भाषा हो जाती रुढ़ और गूढ़ भी संस्कृत जैसी
जिसे बोली नहीं जाती
उद्धरण और उदाहरण हो जाती
समेटे रखती है संस्कृति को!
संस्कृति को जानना है
तो बचाए रखना होगा संस्कृत को!
मनोकामना है कुछ
तो बचाए रखना होगा इस कल्प वृक्ष को
कि संस्कृत नहीं है मृत भाषा!
मत करो मृत घोषित
अन्यथा मृत हो जाएगी संस्कृति
सिर्फ हमारी नहीं विश्व की भी!
अधिभौतिक और आधुनिक
देशों की मिट चुकी है संस्कृति!
एहसान नहीं किया अंग्रेजों ने हमपर
संस्कृत को पढ़कर/अनुवाद कर!
बल्कि जान लिया उन्होंने
अपने मदर और फादर के मातर-पितर को
जो कुलटा थे वे सुलट गए और हम उलट गए!
जब नहीं थी लिपि, होती थी आकाश वाणी,
देता था कोई भाषण, कर लेता था कोई स्मरण,
बन जाती थी श्रुति-स्मृति
इसी श्रुति, स्मृति से हम हैं अद्यतन!
हम कब कहां थे, कहां हैं?
कितने उच्च थे, कितने नीचे हो गए?
संस्कृत ने ही संज्ञान दिया
कि किसे चाहिए रक्षण/संरक्षण/आरक्षण
और किसे नहीं चाहिए कुछ भी
एकमात्र संस्कृत है भाषा/संस्कृति
जो बताती कि कल तुम क्या थे
आज क्या हो,कल होना है क्या बांकी
संस्कृत ही बताती पता, देती आश्वस्ति,
संस्कृत की श्रुति है कबीर, स्मृति है सूर
संस्कृत सभ्यता, संस्कृति, परम्परा
सुर-असुर की, माता विश्व भर के भाषा की!

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