बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के निर्भर पर रहने वाले गरीब आवासीय भूमिहीन सावधान हो जाएं। अब सरकार आपको सिर्फ 250 वर्गफ़ीट से लेकर 625 वर्ग फ़ीट जमीन ही देगी। उसी में आपको घर बनाकर रहना हैं। क्या आप 250 वर्गफ़ीट से लेकर 625 वर्ग फ़ीट जमीन में बने घर में रह सकते हैं? यह उसी तरह का सवाल है कि शहरों में रहने वाले यदि 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग 26 रुपये प्रतिदिन कमाते हैं तो वे गरीबी रेखा के दायरे में शामिल नहीं माने जाएंगे। इस ओर और इस पर जोरदार विरोध हुआ। राज्य सरकार के निशाने पर एक बार फ़िर गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले आ गए हैं।
केन्द्रीय और राज्य सरकार की कोशिश है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले और आवासीय भूमिहीनों की संख्या कम से कम हो सके। इसके उत्तर तलाशने व सुलझाने के क्रम में असंवेदनशील निर्णय ले लेते हैं, जो जमीनी सच्चाई से कोसो दूर नजर आती है। बियाडा से जमीन लेने वाले लोगों को असीमित और बिहार के आवासीय भूमिहीनों के साथ सीमितवार जमीन का रोना रोकर जमीन का आकार-प्रकार छोटा ही छोटा किया जा है। आ जादी के बाद से निरंतर जारी है, लेकिन यह सवाल की बजाय अधिक पेचीदा होता ही जा रहा है। गरीब आवासीय भूमिहीनों का निर्धारण किया फिर बदला जाना किसी भी तरह ठीक नहीं माना जा सकता। निश्चित ही निराशाजनक है और के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता को भी दर्शाती है ।
आरम्भ में राज्य सरकार के द्वारा बिहार के आवासीय भूमिहीनों को 12 डिसमिल जमीन देने की घोषणा की गई थी। कालातंर में इसमें 2 डिसमिल जमीन घटाकर 10 डिसमिल जमीन कर दी गई। इसके बाद मनमौजी राज्य सरकार ने एकाएक 6 डिसमिल जमीन घटाकर आवासीय भूमिहीनों को 4 डिसमिल जमीन देने लगी। इसका विरोध जन संगठन एकता परिषद के द्वारा किया गया, जो आंदोलन आज भी विरोध जारी है। उल्लेखनीय है कि जब-जब परिषद ने आवासीय भूमिहीनों को जमीन देने की हुंकार भरी जाती, तब-तब सरकार के द्वारा अखबारों के माध्यम से आवासीय भूमिहीनों को 4 डिसमिल जमीन देने के वादे पर हामी भर दी जाती। सरकार ने आवासीय भूमिहीनों को दी जाने वाली जमीन के हिस्सादारी में 1डिसमिल जमीन कटौती कर 3 डिसमिल जमीन कर दी। अभी आवासीय भूमिहीनों को 3 डिसमिल जमीन दी जा रही है। अब तो मौजूदा सरकार 3 डिसमिल जमीन देने में कटौती करने जा रही है। कैबिनेट की बैठक में इस आशय की जानकारी दी गई कि अब बिहार के भूमिहीन गरीबों को रहने के लिये सरकार 250 वर्गफ़ीट से लेकर 625 वर्ग फ़ीट जमीन देगी।
बिहार के जन सत्याग्रह 2012 का लीडरशिप करने वाले प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा वादाखिलाफी करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। आज वास्तविकता यही है कि बिहार के आवासीय भूमिहीनों को लेकर सरकार गंभीर नहीं है।अगर सरकार इनके मुद्दे पर गंभीर होती तो 12 डिसमिल जमीन से लुढ़क कर 250 वर्गफ़ीट से लेकर 625 वर्ग फ़ीट जमीन देने तक नहीं आ जाती। सनद रहे कि भूमि सुधार आयो के अध्यक्ष अपने रिपोर्ट में 10 डिसमिल जमीन आवासीय भूमिहीनों को देने की अनुशंसा की गई थी। उस अनुशंसा को दरकिनार करके आवासीय भूमिहीनों को 3 डिसमिल जमीन देने के बजाए महादलित भूमिहीनों को 20 हजार रुपये देने की घोषणा की गई।बाजार भाव में महादलित भूमिहीनों को 20 हजार रुपये में 3 डिसमिल जमीन मिलना असंभव है। सच्चाई यह है कि बिहार के गरीब भूमिहीनों के साथ राज्य सरकार मजाक कर रही है। सरकार का कहना है कि इस योजना के कारण गरीब भूमिहीनों के घर बनाने का सपना पूरा हो जायेगा। इसी के कारण सरकार एक छोटा सा टुकड़ा देने का निर्णय लिया है।
उल्लेखनीय है कि एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधीवादी चिन्तक पी० व्ही० राजगोपाल के नेतृत्व में जनादेश 2007 सत्याग्रह पदयात्रा की गयी है। पदयात्रा के दौरान 25 हजार आदिवासी व भूमिहीन सत्याग्रही पदयात्रा कर ग्वालियर से नई दिल्ली (2से28 अक्टूबर) गए। जन संगटन एकता परिषद् के जल,जंगल, जमीन और आजीविका के मुद्दे के समाधान के लिए सरकार ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति व प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद का गठन किया।
इस यात्रा का नेतृत्व भूमिहीनों के अधिकारों के लिए संघर्षरत पी०व्ही० राजगोपाल ने बताया कि राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के प्रमुख सदस्य मिलकर राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाई और 300 तक सिफारिशें राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह को दे दी। राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति के सदस्यगण 2009 में अपनी सिफारिशें दी पर राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह और यूपीए सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया। बताते चले कि प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गठन राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद का केवल एक बार ही राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद की बैठक बुलाई गई। उसके बाद प्रधानमंत्री बैठक ही बुलाना भूल गए मालूम हो कि राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पी० व्ही० राजगोपाल आदि है. तब भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा। जब जन संगठन एकता परिषद और उसके समान संगठन के द्वारा जन संवाद यात्रा 2011 और जन सत्याग्रह 2012 की हुंकार की गयी।
बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार भूमि सुधार आयोग की अनुशंसा लागू नहीं की गई ।वहीं राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष सह प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति को क़ानून क़ा रूप नहीं दे सके। अभी भी सत्याग्रही उम्मीद में बैठे हैं कि सरकार कब आम जनता को राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाकर उपहार देगी ? और कब एक ऐसी काली रात की एक नयी सुबह दे जाएगी ।
उत्तरप्रदेश में भीख का कटोरा कांग्रेस ने ही थमाया …जिसका साइज़ बढता ही जा रहा है ….बाकि कसार मायावती ने पूरी करदी ….अब यु.पि. के युवा को सोचना है …..बीजेपी को या भारत स्वाभमान को वोट दे …मुंम्बई डेल्ही से वापस घर आकर अपने माँ बाप की सेवा करो …मुंबई ..DELHI को उत्तर प्रदेश …विहीन नहीं कर दे तो बोलना मात्र 3 माह में …….अपना घर …अपना होता है . ……….सबसे से प्रथम मिशन होगा “आ अब लौट चले …..