सरकारी हुक्म


कान खोलकर सुन ले बिल्ली,
तुरत छोड़ दे चूहे खाना।
दिल्ली से गूगल पर आया,
आज सबेरे ही परवाना।

बड़े खाएंगे छोटों को तो,
होगा बहन जुर्म यह भारी।
ऐसा वैसा हुक्म नहीं यह,
यह तो हुक्म हुआ सरकारी।

पूँछतांछ में लगीं बिल्लियाँ,
क्या ऐसा आदेश हुआ है।
अगर हुआ है सच में ऐसा,
ऐसा क्यों परिवेश हुआ है।

अब तक तो सब बड़े लोग ही,
छोटों को हैं आये खाते ।
सदियों के नियम कायदे,
बिना बात के क्यों पलटाते।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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