सारथी बेमिसाल!

शिवशरण त्रिपाठी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के कुशल नेतृत्व में भाजपा नीत राजग सरकार ने यदि लगभग हर क्षेत्र में सफ लता के झंडे गाड़े हैं तो राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के उत्कृष्ट प्रबन्धन व दूरदर्शिता के चलते भाजपा ने देश के आधे से अधिक राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित करके व देश के हर राज्य में अपनी पैठ बढ़ा करके नया इतिहास रचा है। बावजूद इसके उनकी पार्टी की जीत की भूख शांत होने की बजाय और बढ़ती ही नजर आती है।
इसका इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि हाल ही में खासकर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में पार्टी की प्रचंड जीत के बाद जब उनसे पूछा गया कि इतनी बड़ी सफलता के बाद अब तो आप संतुष्ट होगें तो उन्होने तपाक से कहा था कि नहीं। उन्होने कहा कि अभी उनकी पार्टी को अपनी जीत का परचम पूरे देश में फ हराना है।
यही नहीं इस प्रचंड जीत के बाद उन्होने प्रधानमंत्री श्री मोदी व अनेक मंत्रियों की मौजूदगी में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुये कहा था कि इस जीत से हमें संतुष्ट होकर शांत नहीं बैठ जाना है। हमें थकना नहीं है वरन् आगे बढऩे के लिये और मेहनत करनी है। पार्टी की लगातार सफलता को उन्होने पार्टी का स्वर्णिम काल मानने से इंकार करते हुये कार्यकर्ताओं के सामने भावी लक्ष्य रखते हुये कहा था कि पूरे देश में हमें पंचायत से लेकर संसद तक जीत दर्ज करनी है। यही उनका ऐसा मूलमंत्र है जो कार्यकर्ताओं में नया उत्साह भरता है। फ लत: पार्टी सफ लता के नित नये मानदंड स्थापित करती है।
श्री शाह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वो केवल हुक्म नहीं चलाते वरन् कार्यकर्ताओं के साथ कदम ताल करने में विश्वास रखते है। भला कौन राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा जो चुनाव में स्वयं एक-एक बूथ का प्रबन्ध करने जाए। कौन राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा जो आवश्यकता अनुसार कैम्प करके स्वयं चुनाव तैयारियां करवाये, परखे और कार्यकर्ताओं का निरंतर उत्साह वधर्न करते हुये तब तक चैन न ले जब तक लक्ष्य हासिल न हो जाये।
बीच में जब बिहार व दिल्ली में भाजपा का विजय रथ थम गया था तो खासकर श्री शाह को न केवल नाना प्रकार की आलोचनाये सुननी/झेलनी पड़ी थी वरन् लोग अध्यक्ष बदलने की आशंका जताने लगे थे। भाजपा के भीतर वे तत्व भी सक्रिय हो उठे थे जो श्री शाह व श्री मोदी की लगातार सफ लता से कु ढऩ सी महसूस करने लगे थे।
नि:संदेह यह राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शाह का आत्मविश्वास था। यह उनकी अति गंभीरता थी। यह श्री मोदी व उनके बीच की अच्छी समझ थी। नतीजतन श्री शाह अपनी आलोचनाओं से न ही तनिक भी विचलित हुये और न ही घबड़ाये वरन् अपनी योजनाओं, उनकी खामियों पर लगातार चिंतन कर उन्हे दूर करने में लगे रहे जिसका सुखद परिणाम आना ही था। और जब अनेक विपरीत भविष्यवाणियों के बीच भाजपा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में तीन चौथाई बहुमत हासिल कर लिया तो विपक्षीदलों के धुरंधर भी उनके चुनावी प्रबन्धन के कायल हो गये। पार्टी के भीतर तो आलोचकों का मुंह सिलना ही था।
अब सबकी निगाहे साल के अंत में गुजरात, हिमाचल, कर्नाटक और त्रिपुरा में होने वाले चुनावों पर लगी है। गुजरात जहां भाजपा गत १८ वर्षो से सत्ता में बनी हुई है और जहां पटेल समुदाय के हालिया आंदोलनों से काफ ी उथल-पुथल भी देखी गई थी वहां पांचवी बार भाजपा सत्ता में आने के प्रति पूरी तरह आशान्वित है। गौर करने लायक बात यह है कि गुजरात के लिये श्री शाह ने १५० सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है जो अतीत में श्री मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुये भी हासिल नहीं हो सका था।
गुजरात के अलावा श्री शाह ने हिमाचल, कर्नाटक और त्रिपुरा में पार्टी का परचम फ हराने की न केवल रणनीति तय कर ली है वरन् उस पर तेजी से अमल भी शुरू हो गया है। हताश विपक्षियों को यह चिंता खाये जा रही है कि यदि भाजपा ने उन चारों राज्यों को जीत लिया तो फि र खासकर कांग्रेस के लिये बचा खुचा दक्षिण का गढ़ भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। विपक्षियों की हताशा व आशंका काफी हद तक जायज भी लगती है। जो राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शाह लक्ष्य दीप की एक मात्र लोकसभा सीट को अभी से जीतने का उपक्रम बना रहे है भला उनसे पार पाना आसान तो नहीं ही होगा।
यदि राजनीति के पुरोधा व अनुभवी पर्यवेक्षक भी श्री शाह की रणनीति व प्रबन्धन का लोहा मानने को मजबूर हुये है तो श्री शाह मेें कुछ न कुछ तो जरूर कोई खास बात है जो उन्हे औरों से अलग करती है व विशिष्ट बनाती है।
श्री शाह को उनकी एक और खासियत उन्हे लोगो से अलग व विशिष्ट बनाती है वो है उनकी विनम्रता। आज तक उन्होने किसी छोटी व बड़ी जीत का श्रेय खुद नहीं लिया बल्कि वो हमेशा जीत का श्रेय कार्यकर्ताओं को देते है जबकि हार की जिम्मेदारी स्वयं वहन करते है।
जैसी की खबरे है आज हर राजनीतिक दल श्री शाह की काट ढूंढऩे में माथा पच्ची करने में जुटा है। देखना यह है कि अजेय बनते श्री शाह का निकट भविष्य में विपक्षीदल कैसा और कौन सा तोड़ निकालते है।

इस चक्रव्यूह को तोडऩा ही होगा!
उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह खासकर कानून व्यवस्था को सुधारने के लिये ताबड़तोड़ आदेश/निर्देश जारी किये। तद्नुक्रम में जिस तरह पुलिस महानिदेशक सहित प्रशासन के आलाधिकारियों के तबादले भी किये। महिलाओं से छेडख़ानी पर रोक लगाने हेतु एंटी रोमियों दस्ते गठित किये गये यकीनन उसके शुरूआती अपेक्षित परिणामों से सूबे के लोगो में नई आशा का संचार हुआ। बीते पखवाड़े में हुये सहारनपुर के जातीय संघर्ष से सिद्ध हो गया कि वोटों के लिये राजनीतिक दलों के कुत्सित खेल पर काबू पाये बिना कानून व्यवस्था के मोर्चे पर स्थाई सफ लता पाना आसान नहीं है।
सहारनपुर हिंसा की जांच करने में जुटी विशेष टीम के अध्यक्ष सम्प्रति गृहसचिव मणि प्रसाद मिश्र ने जिस साफ गोई से खुलासा किया कि हिंसा सुनियोजित रही है। भीमआर्मी का संस्थापक चन्द्रशेखर आजाद उर्फ रावण का हिंसा भड़काने में मुख्य हाथ रहा है तो बसपा व कांग्रेस के कुछ नेताओं ने स्थानीय निकाय चुनाव व लोक सभा चुनाव के मद्देनजर वोटों के धु्रवीकरण के लिये हिंसा की साजिश रची। अलावा इसके एक और गंभीर बात जो सामने आई है वो है पूरे प्रकरण में प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों की शिथिलता व घोर लापरवाही।
गृहसचिव, मेरठ जोन के एडीजी की ही तर्ज पर जातीय दंगे में बुरी तरह झुलसे शब्बीर गांव के अनेक दलितों व ठाकुर विरादरी के लोगो ने भी साफ -साफ कहा कि हिंसक संघर्षो के पीछे तीसरी ताकत का हाथ रहा है। मतलब साफ है कि कुछ राजनीतिक दलों ने अपने स्वार्थवश दलितों व ठाकुरों के बीच वैमनस्य का जहर घोलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इन लोगो ने भी स्वीकारा कि यदि प्रशासन ने सूझबूझ व सख्ती से काम लिया होता तो हिंसा इस कदर न ही फ ैलती।
सहारनपुर में भयावह जातीय हिंसा के बीच २४ मई की आधी रात जेवर बुलंदशहर स्टेट हाईवे पर कोई ६ बदमाशों ने जिस तरह लूटपाट के साथ महिलाओं से जमकर दरिंदगी की उससे एक बार पुन: सपा सरकार के बुलंदशहर हाईवे कांड की याद ताजा हो गई। पुलिस पहुंची भी तो बदमाशों को पकडऩे की हिम्मत तक न दिखा सकी और बदमाश आराम से फ रार हो गये। एसएसपी ने स्वयं स्वीकार किया है कि सभी बदमाश पुलिस की आंखो के सामने ही भाग निकले। पीआरबी में कम पुलिसकर्मी थे और उन्हे यह भी अंदाज नहीं था कि खेतों में कितने बदमाश है अतएव पुलिसकर्मी बदमाशों को पकडऩे का साहस ही नहीं जुटा सके।
इन दोनो भयावह कांडों के बीच शनिवार को जिस तरह भरी दोपहरी रामपुर के टंाडा थाना क्षेत्र में एक युवती के साथ गुण्डों ने जमकर छेड़खानी की और दुस्साहस की हद पार करते हुये उसका वीडियो बनाकर वायरल कर दिया।
तीनो घटनाओं का विश£ेषण करें तो सभी घटनाओं में एक साझा बात यह निकलकर आई है कि पुलिस प्रशासन के रवैये में अभी तक कोई बदलाव नहीं आया है। सत्ता परिवर्तन के बाद यदि पुलिस का इकबाल कायम हुआ होता तो कम से कम जेवर व टांडा कांड तो न ही होते और सहारनपुर कांड की जातीय हिंसा की आग रह-रहकर न धधकती।
हर कोई जानता है कि अब पुलिस/प्रशासन में भी राजनीति इस कदर घुस गई है कि उससे जल्दी निजात पाना आसान नहीं है। कालांतर में जिस तरह पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारी अपने उत्कृष्ट कार्यो की बजाय अन्य मायनों में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगो के लिये दुधारू गाय सिद्ध होने लगे है उससे न केवल कर्मठ व ईमानदार अधिकारी तिरस्कृत होने लगे है वरन् उनमें कुण्ठा घर करती चली गई। इसके कुपरिणाम आज पूरा प्रदेश झेल रहा है।
बीते १५ -२० वर्षो में सत्ताधीशों व आलाधिकारियों के गठजोड़ ने सूबे के लोगो की गाढ़ी कमाई लूटने में जरा भी रियायत नहीं बरती। कल यदि बाबू सिंह कुशवाहा जैसे अपने आका के लिये नाक का बाल थे तो गायत्री प्रसाद प्रजापति ने भी अपनी स्वामी भक्ति में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। भले दोनो ही आज जेल में है पर बात तो तब बनती जब इनके आकाओं को भी वही सजा मिलती जो इन्हे मिली है।
इसी तर्ज पर लूट खसोट करने में कितने नौकर शाह जेल गये और कितने जेल जाने की कगार पर है। बीते ही सप्ताह तीन नौकरशाहों के यहां से भारी मात्रा में नकदी व अकूत सम्पत्ति बरामद हुई है वे प्रोन्नत प्राप्त आईएएस है। इससे ही अंदाज लगाया जा सकता है कि किस तरह बेखौफ होकर नौकरशाहों ने सत्ता से सम्बन्ध गांठकर लोगो की गाढ़ी कमाई को लूटा।
यहां इस संदर्भ को लेने का आशय सिर्फ इतना है कि योगी सरकार को ऐसे पुलिस अधिकारियों व नौकरशाहों पर खास निगाहे रखनी होगी जो लूट खसोट के बल पर सत्ता के नजदीक बने रहते रहे है। बेशक राजनेताओं की भांति ही इनके चक्रव्यूह को भी ध्वस्त करके ही योगी सरकार अपने मिशन में कामयाब हो सकती है।

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