व्यंग्य बाण : डंडा सैल

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परसों शर्मा जी बहुत दिन बाद मिलने आये, तो उनकी सूजी हुई आंखों से दुख टपक रहा था। चेहरे से ऐसा लग रहा था मानो सगे पिताजी चल बसे हों। इतना परेशान तो मैंने उन्हें पिछले 25 साल में कभी नहीं देखा था। फिर आज… ?

– क्या हुआ शर्मा जी, कुछ तो बताओ। बड़ों ने कहा है कि बांटने से दुख घटता है। हो सकता है मैं आपके कुछ काम आ सकूं ?

– नहीं वर्मा, तुम नहीं समझोगे। मेरा दिल फटा जा रहा है। तुम कुछ दूर हो जाओ, वरना दो-चार टुकड़े तुम पर भी गिर पड़ेंगे। तुमने सुना ही होगा, इस दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा।’ बस मेरा भी यही हाल है।

– लेकिन दिल के इस तरह फटने और टुकड़े-टुकड़े होने का कोई कारण तो होगा ?

– तुम दिन भर पत्र-पत्रिकाएं चाटते रहते हो और फिर भी कारण पूछ रहे हो ? लानत है तुम पर वर्मा।

– शर्मा जी, आप मेरे बड़े भाई हैं। इसलिए आपकी लात और लानत, दोनों मुझे स्वीकार हैं; पर असली बात तो बताओ।

मेरे इतना कहते ही शर्मा जी का गला भर आया और आंसू फिर कमीज को गीला करने लगे। मैंने अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उन्हें पोंछ दिया।

– तुमने सुना नहीं, संजू बाबा को जेल भेज दिया गया है।

– कौन संजू बाबा; हमारे मोहल्ले का कोई लड़का है क्या ?

– तुम तो जले पर नमक छिड़क रहे हो वर्मा। संजू बाबा यानि बेचारा संजय दत्त। कितना मासूम चेहरा है उसका; पर उस निर्दयी जज ने उसे साढ़े तीन साल के लिए जेल में डाल ही दिया।

– तो इसमें गलत क्या हुआ; उसके कारण 1993 में मुंबई में सैकड़ों लोग मारे गये थे। उस पर तो नरसंहार का मुकदमा चलना चाहिए था; पर वह खानदानी कांग्रेसी जो ठहरा। इस लिए शासन ने अवैध हथियार के मामले में छोटी सी सजा दिलवाकर मामला रफा-दफा कर दिया।

– इतना गुस्सा मत करो वर्मा। ये तो सोचो कि खुद को सुधारते हुए अब वह दिन भर में केवल दो बोतल शराब और 25 सिगरेट पर आ गया था। तुमने वो फिल्म तो देखी होगी, जिसमें उसने कमाल की गांधीगिरि की है।

– शर्मा जी, मेरी रुचि न गांधी में है और न गांधीगिरि में। मेरे पास फिल्में देखने के लिए बेकार समय भी नहीं है।

– लेकिन उसे जेल भेजकर सरकार ने ठीक नहीं किया।

– जी हां, उसे तो ‘भारत रत्न’ दिया जाना चाहिए था। सरकार का बस चलता, तो शायद यह भी हो जाता; पर जनता के दबाव और न्यायालय की सक्रियता से उसे जेल जाना पड़ा।

– लेकिन वर्मा, कई बड़े लोगों ने यह अपील की थी कि उसकी सजा माफ की जानी चाहिए।

– शर्मा जी, लोग चाहे बड़े हों या बहुत बड़े। आतंकवादियों के इन समर्थकों को भी जेल में डाल देना चाहिए।

– तुम तो उस जज से भी बड़े मूर्ख हो, जिसने उसके परिवार की देशसेवा के बारे में भी कुछ नहीं सोचा।

– शर्मा जी, संजय की मां नरगिस और पिता सुनील दत्त दोनों सांसद रहे थे। उसकी बहिन प्रिया इस समय भी सांसद है।

– मैं भी तो इसी सेवा की बात कर रहा हूं।

– तो कृपया अपनी गलतफहमी दूर कर लीजिये। लोग संसद में सेवा करने नहीं, मेवा बटोरने जाते हैं। सेवा करने वाले तो राजनीति और राजनेताओं से कोसों दूर रहते हैं।

– पर चुनाव लड़ते समय तो सब यही कहते हैं कि हम देश और जनता की सेवा करना चाहते हैं।

– जी हां, पर चुनाव जीतते ही इन नेक विचारों को पांच साल के लिए अल्मारी में रखकर अधिकांश लोग जनसेवा की बजाय घरसेवा और देशसेवा की बजाय जेबसेवा में लग जाते हैं। राजनीति भी अब आई.पी.एल. क्रिकेट की तरह दलाली का दो नंबरी धंधा हो गयी है। इसीलिए कब्र में पैर लटकने के बावजूद लोगों का कुर्सी से मोह नहीं छूटता।

– लेकिन वर्मा, संजू बाबा की पत्नी और बच्चों का क्या होगा ? कई फिल्म निर्माताओं के भी करोड़ों रुपये बरबाद हो गये।

– शर्मा जी, वहां तो वैभव की कोई कमी नहीं है। उसके पुरखे भी बहुत कुछ छोड़ गये हैं। इसलिए उनका काम तो चल जाएगा; पर आप ये बताएं कि उन सैकड़ों घरों का क्या होगा, जहां रोटी कमाने वाला ही मारा गया। जो बच्चे अनाथ हो गये, क्या उनकी बरबादी का हाल पूछने ये बड़े लोग गये थे, जो अब छाती पीट रहे हैं।

– वर्मा, तुममें मानवता नाम की चीज नहीं है। बन्दी के भी कुछ मानवाधिकार होते हैं। तुम्हारे मन में इस बात का जरा भी दर्द नहीं है कि उस बेचारे ने तीन दिन ‘अंडा सैल’ में कैसे बिताये होंगे ?

मेरी मेज पर एक डंडा रखा था। मैंने उसे हाथ में ले लिया।

– शर्मा जी, ऐसे मानवाधिकार आपको ही मुबारक हों। सरकार ने न जाने क्यों उसे पुणे भेज दिया ? उसे तो अंडा नहीं ‘डंडा सैल’ में भेजा जाना चाहिए था।

– ‘डंडा सैल’ में ?

– जी हां, जहां हर दिन चार-छह लोग उसकी मोटे डंडों से धुलाई करें, जिससे उसके दिमाग में घुसी आतंक की गंदगी सदा के लिए छूट जाए। वहां उसकी गांधीगिरि के असर का भी पता लग जाता। इस धुलाई का थोड़ा सा मजा उन सेक्यूलर नेता, अभिनेता और मीडिया वालों को भी चखाना चाहिए, जिन्होंने उस देशद्रोही ‘खलनायक’ को सिर पर बैठाकर फिर ‘नायक’ बना दिया।

शर्मा जी ने अब खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी।

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