व्यंग्य/ नकली लाओ, देश बचाओ!!

0
116

-अशोक गौतम

हे मेरे देश के ढोरों से लेकर भगवान तक को नकली माल पर ब्रांडिड का लेबल लगा खिला उसे जिंदा रखने के भरम में डाल जीने का अभय दान देने वालो! क्षमा करना ,मैं मंदबुद्धि, दुर्बद्धि, अल्पबुद्धि, मूढ़मति, उल्लू का पट्ठा, गधा, सूअर और न जाने क्या-क्या, कल तक आपका घोर विरोधी था। ऐसा ही होता है जब पैदा होने से आज तक बंदे की अक्ल घास चरने ही गई होती है। उसके पास जब अपना दिमाग नहीं होता तभी वह असली नकली का सवाल खड़ा करता है। उसके पास जब कोई काम नहीं होता तभी वह असली नकली के भेद में अपनी जिंदगी बरबाद करता है। सच कहूं तो ये असली नकली बाजार का भ्रम है। असल में क्या है न कि किराए के दिमाग से बंदा असली के आगे की सोच ही नहीं पाता।

हे वर्तमान, भविष्‍य के राष्‍ट्र निर्माताओं! हे भूखे पेटों के भाग्य विधाताओं! आप न होते तो आधे से ज्यादा देश वैसे ही भूख, बीमारी, लाचारी से आज को कभी का मर गया होता। आप हो तो देश में कम से कम कोई भूखा तो नहीं मरता। आप हो तो कम से कम कोई बीमार बिना गोली के तो नहीं मरता। सच कहूं तो भरे पेट मरने का मजा ही कुछ और होता है। सच कहूं तो मन में ये वहम लिए मरने का मजा ही कुछ और होता है कि कम से कम बंदा बिन दवा- दारू के तो नहीं मरा। आपकी बदौलत बंदा यमराज के सामने सीना चौड़ा कर कह सकता है कि साहब! भर पेट मरा हूं। दवाई खाकर मरा हूं। जहर खाकर ही सही बंदे रात को चैन से सो तो रहे हैं। भूखे पेट सोने से बेहतर तो जहर खाकर सोना है। कम से कम नींद तो मजे से आती है।

हे देश उत्थान में लगे सज्जनो! मैं असल में कुछ राष्‍ट्र विरोधी लोगों के बहकावे में आ गया था कि नकली माल बेचने वाले देश के दुष्मन हैं। पर बरसों का भूला कल घर लौट आया। कल जब थोड़ा फुर्सत में बैठ सोच पर निकला तो पाया कि आदमी को मरना तो वैसे भी है। वह चाहे नकली खाकर मरे या असली खाकर। ये षुध्दता का दावा करने वाले किसी एक का नाम बता दें जो षुध्द खाकर अमर हो गया हो। वे भी क्या इस देश से कूच नहीं कर गए? जब एक न एक दिन सबको जाना ही है तो जो मिलता है खा, पहन, लगा लो साहब! जिंदगी इसी में है। बड़े बने होते हैं बाहर से शुद्धतावादी होने का दावा करने वाले और अंदर से देखो तो न आचारों से शुद्ध न विचारों से, अरे जब समाज में न वेदनाएं षुध्द हैं न संवेदनाएं तो ये शुद्धता का हल्ला क्यों? आपके सौजन्य से मेरे मुहल्ले की लौकी बेचने वाली सोलह शृंगार तो कर लेती हैं। हाय! कितनी प्यारी लगती है वह इन गहनों में! उपभोक्ता है कि उसके पास लौकी लेने जाते ही तभी हैं। आजकल तो बाजार की स्थिति यह है कि लोग माल पर कम, बेचने वाले पर अधिक खुद को केंद्रित करने लगे हैं। बाजार में जहर यों ही बिकता है मजे से। अगर आप न होते तो वह और हम सब बेचारे मन मसोस कर नहीं रह जाते क्या? उसके पेट पर लात नहीं पड़ती क्या? और हमारी आंखों का क्या होता? रोज रोज घरवाली को देख किसकी आंखों की जोत बनी रही है? और वह शोडशी तो रोज कहती फिरती है कि भगवान करे नकली आभूषण बनाने वालों को मेरी हर जन्म में आधी उम्र लगे। कल मैंने उससे पूछ ही लिया, ‘मुन्नी बाई, आधी क्यों?’ तो वह कलाइयों में पचास- पचास ग्राम के पीतल पर सोले का पानी चढ़े चमचमाते कड़े खनकाती बोली,’ आधी में बाबू श्रृंगार तो करने दो।’

त्राहि माम् शरणागतम्! मैंने कल तक आपको जी भर गालियां दीं, गुस्ताखी माफ! घोर स्वार्थी मैं और कर भी क्या सकता था? असल में मुझे बाद में पता चला कि जब जो आदरणीय आपके नकली माल को पकड़ने की खा रहे हैं वे ही आपसे गले मिल कर आपको सहयोग कर आपके नकली माल को बाजार तक लाने के लिए अपने कांधे छिलवा-छिलवा कर हास्पिटल में भर्ती हुए जा रहे हैं, तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। धन्य हैं ऐसे वफादार! जो पगार सरकार से लें और काम आपका करें! कल तक तो मैं सोचता था कि सरकार ने जो बंदे आप पर नकेल कसने के लिए नियुक्त किए हैं वे महान हैं। पर ये कल ही पता चला कि उनको तो आपने नकेल डाल रखी है और वे वेतन से अपनी पीठ की काठी खरीद आपका माल बाजार तक ढोने में मस्त हैं। वैसे भी इस महंगाई के दौर में साली सरकारी पगार से होता क्या है? नमक रोटी पर आ बनी है। इज्जत, ईमानदारी की नमक रोटी आज के दौर में पचने से तो रही।

घी मुझे बहुत पसंद है। इसलिए हे मेरे देश के नकली देसी घी के उत्पादकों! मेरा मन आपके चरणों की रज ले उसका तिलक करने को हो रहा है। पर आप हो कि पता नहीं किस बेकार के डर के मारे छिपे हुए हो। भगवान! आपके सौजन्य से कम से कम हर घर की दाल में तड़का तो लग रहा है। हर सड़े आटे की चपाती चुपड़ तो रही है। मान लो, जो आप यह पवित्र घी न बना रहे होते तो क्या इस देश में घी की कमी नहीं हो जाती? रोटी तो रोटी भगवान के दिए तक के लिए घी नसीब न होता। कहो, फिर भगवान कहां जाता? आपने देश में जो दूध -घी की नदियां बहाई हैं भले ही दूसरी नदियों का पानी सूख रहा हो, इसके लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं। मेरी तो इच्छा है कि आपको इस देश कल्याण के कार्य के लिए राष्‍ट्रपति के हाथों पुरस्कार मिले।

मेरे देश के बीमार लोगों तो लोगों, भगवान तक को नकली दवाई खिलाकर कुछ और जिंदगी देने वालो! सच कहूं अगर आपका आशीर्वाद इंसान और भगवान दोनों पर न होता तो इंसान तो इंसान इस देश से भगवान भी कभी का गुजर चुका होता। ये आपकी ही अमृत सरीखी नकली दवाइयों की कृपा है कि इस देश में भगवान अभी तक बचा है। आप न होते तो औरों की तो छोड़िए मैं असली दवाइयों की गोलियां तो गोलियां, रैपर भी न खरीद पाता। आप हैं तो दवाइयां पाताल में भी सहज उपलब्ध हैं। इतने लोगों और इतने देवताओं का पेट षुध्दता की मांग करने वाले जो एक जून भी भर दें तो हर जनम में उनकी गुलामी करूं।

देशभक्तों! डरने की कोई बात नहीं। हर चौक पर पुलिस की देख रेख में अपना माल खुल कर बेचो! आप कोई गैर कानूनी काम तो कर नहीं रहे हो। गैर कानूनी वहां पर होता है कानून जहां पर हो। कौन कहता है आप राष्‍ट्र विरोधी हो? कौन कहता है आप इंसानियत के दुष्मन हो? जो कहता है कहने दो। इस देश में लोगों के पास कहने के सिवाय और काम भी क्या है? शुद्धता का हल्ला पाने वाले भी असल में यहां नकली के हल्ले की ही खा रहे हैं। यहां सड़क से लेकर संसद तक सभी कुछ नकली है। इसलिए शुद्धता की बात करने वालों को सिरे से खारिज करते हुए मैं आपसे अपील करता हूं आओ! देश को अपने साक्षात् दर्शन दो, छोड़ो परदे के पीछे का कुशल अभिनय और भूख, बीमारी से मरते इस देश को बचाओ। आपके कारण ही तो यहां हर माल सभी की पकड़ में आ जाता है। आज देश की बढ़ती आबादी को देखते हुए शुद्ध माल बनाने वालों की अपेक्षा नकली माल बनाने वालों की सख्त आवश्‍यकता है।

हे कृपानिधानों! आपसे करबद्ध निवेदन है कि देश पर इसी तरह चोरी छिपे ही सही, कृपा दृष्टि बनाए रखना!! देश की हर आत्मा चूल्हे के पास से लेकर अस्पताल तक आपकी ओर टुकुर- टुकुर निहार रही है। आप इस देश के प्राण हो! आप इस देश के महान हो! मजाल है सरकार कुछ कहे। वह खुद बेचारी पसोपेश में है। इस वक्त देश को सरकार की नहीं आपकी कृपा दृष्टि की परम आवश्‍यकता है मेरे राष्‍ट्रवादियों!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here