थप्पड़ पर स्वतंत्र शोध

-विजय कुमार-

arvindkejriwalslapped-भारत का चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं है। यहां जिन्दाबाद, मुर्दाबाद, डंडे, झंडे और फूलमाला आदि सबका उपयोग होता है। इसमें क्रिया-प्रतिक्रिया, फिल्म-थिएटर, हास्य-प्रहसन, एकल अभिनय और नुक्कड़ नाटक तक के दृश्य बिना टिकट ही देखे जा सकते हैं। इसीलिए दुनिया भर के पर्यटक इसका मजा लेने यहां आते हैं।

पर देश और दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। इसलिए इस बार कुछ नये प्रयोग भी हो रहे हैं। कहीं स्याही की बौछार है तो कहीं चांटे और घूंसे की मार। कहीं पार्टी अपने प्रत्याशी बदल रही है, तो कहीं प्रत्याशी ही पार्टी बदल रहे हैं। कहीं टिकट के लिए मारामारी है, तो कहीं यह प्रतीक्षा हो रही है कि कोई टिकट लेकर उन्हें कृतार्थ कर दे। एक जगह तो बोर्ड लगा है कि बिके हुए माल की तरह दिया हुआ टिकट वापस नहीं होगा। भारत वालों के लिए ऐसे हथकंडे नये नहीं हैं; पर इस बार दिल्ली में अचानक एक ‘झाड़ूदल’ का उदय हुआ। उसके मुखिया केजरी ‘आपा’ का तेजी से आना और उससे भी अधिक तेजी से ‘रणछोड़राय’ होना इतिहास बन गया; पर उनकी इच्छा इसमें कुछ नये अध्याय जोड़ने की थी। इसलिए वे असली महाभारत में भी कूद पड़े। इस पर लोगों ने स्याही, चप्पल, चांटे और मुक्कों से उनके प्रति भरपूर स्नेह प्रदर्शित किया। वे समझ नहीं पाए कि यह आम आदमी के विरुद्ध कोई खास प्रतिक्रिया थी, या खास आदमी के विरोध में आम आदमी का आक्रोश। एक विश्वविद्यालय इस पर शोध भी करा रहा है।
यह समाचार पढ़कर हमारे मित्र शर्मा जी स्वतंत्र रूप से इस पर शोध करने लगे। उन्होंने इसके ऐतिहासिक, आर्थिक, प्रचारात्मक, सामाजिक और राजनीतिक पहलू पर ध्यान केन्द्रित किया। देशी और विदेशी सूत्रों की तलाश करते हुए इसके तात्कालिक और दूरगामी परिणामों पर नजर दौड़ाई। उनके कुछ निष्कर्ष इस प्रकार हैं।

ऐतिहासिक पहलू – देश और विदेश के इतिहास में ऐसे प्रसंग कम ही मिलते हैं। यद्यपि रामायण और महाभारतकालीन मल्लयुद्ध में घूंसों का खुला प्रयोग होता था; पर खेल का हिस्सा होने के कारण उन्हें अवैध नहीं कह सकते। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्याही, जूते, चप्पल, चांटे और घूंसे आदि का फैशन बहुत बढ़ गया है। अमरीकी राष्ट्रपति बुश और फिर ओबामा पर भी जूते फेंके जा चुके हैं। हिलेरी क्लिंटन भी पिछले दिनों इसकी शिकार होते-होते बचीं। कुछ दिन पहले दिल्ली न्यायालय में ‘सहाराश्री’ पर भी एक दुखी आत्मा ने स्याही फेंकी थी। केजरी ‘आपा’ भाग्यशाली हैं, इसलिए उन्हें काशी में जिन्दा और मुर्दाबाद के बीच स्याही के साथ अंडे भी नसीब हुए।

प्रचारात्मक पहलू – शर्मा जी का मत है कि इसमें बिना कुछ खर्च किये भरपूर प्रचार मिलता है। चांटा खाने और मारने वाले, दोनों रातोंरात हीरो बन जाते हैं। अब देखिये, जिस जरनैल सिंह ने वित्त मंत्री चिदम्बरम् पर जूता फेंका था, उसे केजरी ‘आपा’ ने लोकसभा का टिकट दे दिया। जिस ऑटो चालक लाली ने दिल्ली में माला डालकर विधिवत केजरी ‘आपा’ की पूजा की, उसका फोटो अगले दिन सभी अखबारों में छपा। टी.वी. वालों को तो मानो मनचाही मुराद मिल गयी। वे दिन भर उस चांटे की जुगाली करते रहे। इससे केजरी ‘आपा’ के साथ ही लाली को भी खूब लोकप्रियता मिली है। अगले चुनाव में आप लाली का टिकट पक्का समझें।

आर्थिक पहलू – केजरी ‘आपा’ को मिल रहे इस प्यार से उनके वोट बढ़े या नहीं, यह तो १६ मई के बाद ही पता लगेगा; पर इसका आर्थिक पहलू बड़ा विचित्र है। सुना है कि जब भी केजरी ‘आपा’ पर हमला हुआ, उनके देशी और विदेशी चंदे में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। शर्मा जी का मत है कि ये हमले चंदा जुटाने की एक योजना मात्र है। इसलिए चुनाव समाप्ति से पूर्व कुछ हमले और होंगे। यह बात सच इसलिए भी लगती है कि दिल्ली में जिस युवक ने केजरी ‘आपा’ पर स्याही फेंकी थी, वह उनके कार्यालय में ही काम कर रहा है।

चांटे और मुक्के से हो रही चंदावृद्धि को देखकर ‘झाड़ूदल’ के कुछ और नेताओं ने भी इस प्रयोग में रुचि दिखायी; पर केजरी ‘आपा’ ने अनुमति नहीं दी। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक, सब कुर्सियां मेरी हैं। कोई मुझसे बड़ा बनने की कोशिश न करे। ये दल मैंने बनाया है। इसलिए इस प्यार का सौ प्रतिशत हकदार भी मैं ही हूं। धन्य हैं केजरी ‘आपा’ और उनका चांटा प्रेम। कुछ लोग इस योजना को क्रांतिकारी ही नहीं, बहुत क्रांतिकारी बता रहे हैं। कुछ लोग इस पर सट्टा लगा रहे हैं कि इस चुनाव में उन्हें सीटें अधिक मिलेंगी या… ? खैर, छोड़िये।

एक दूरदर्शी नेताजी तो इस मामले में बहुत आगे निकल गये। उन्होंने अपने ‘रोड शो’ से पहले वक्तव्य दिया कि जो लोग जूता या चप्पल फेंकना चाहें, उनसे अनुरोध है कि पूरी जोड़ी फेंकें। एक जूता यहां भी बेकार है और वहां भी। उन्होंने अपने पूरे घर वालों के पैर के नंबर भी बताये और अनुरोध किया कि कृपया नये जूते ही दान करें, जिससे चुनाव हारने के बाद भी पैदल घूमते हुए अगले कई साल तक वे जनता की सेवा करते रहें।

राजनीतिक पहलू – चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव चिह्न के रूप में अब तक चप्पल और जूते में कोई रुचि नहीं दिखाता था; क्योंकि भारत में लोग इन्हें देखना या दिखाना अच्छा नहीं मानते; पर इनकी प्रसिद्धि को बढ़ता देख अब कुछ लोगों ने इनकी भी मांग की है। चांटा चुनाव चिह्न तो पहले से ही ‘सोनिया कांग्रेस’ को आवंटित है। हां, मुक्का उपलब्ध है। यदि कोई दल या प्रत्याशी चाहे, तो इसके लिए आवेदन कर सकता है।

शर्मा जी ने इस विषय की जाति, भाषा, राज्य, क्षेत्र और रोजगार के आधार पर भी समीक्षा की है; पर वे निष्कर्ष काफी खतरनाक हैं। इसलिए उन्होंने वह फाइल चुनाव आयोग के पास भेज दी है। जैसे ही उनकी अनुमति मिलेगी, वे निष्कर्ष भी प्रस्तुत कर दिये जाएंगे। तब तक आप केजरी ‘आपा’ के पुराने (और कुछ नये) प्रायोजित कार्यक्रमों का आनंद उठाएं।

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