पंडित सुरेश नीरव
कभी रहा होगा भारत कृषि प्रधान देश। इक्सवींसदी में तो यह बाकायदा विश्व का टॉप मोमबत्ती प्रधान देश बन चुका है। जो मोमबत्तीमस्त देश भी है और मोमबत्तीग्रस्त और मोमबत्तीत्रस्त देश भी। मोमबत्तियां हमारे देश के लोकतंत्र का श्रंगार हैं। पब्लिक जब कभी सरकार पर गुस्सयाती है,लाल-पीली मोमबत्तियां लेकर वो तड़ से सड़क पर उतर आती है। और सरकार को आंख दिखाती है। सरकार को विवश करने और वश में करने का शर्तिया तिलिसल्मी जंतर-मंतर हैं ये मोमबत्तियां। प्रशासन इन मोमबत्तियों के देखकर ऐसे उखड़ता है जैसे लाल कपड़े को देखकर सांड़ बिगड़ता है। बौराया प्रशासन साठी की मार से,पानी की धार से,प्लास्टिक की गोलियों और आंसूगैस के गोलों से इन प्रशासन इन मोमबत्तियों को डराता है और फिर जान बचाकर हांफता-कांपत किसी जांच आयोग की गोद में जाकर दुबक जाता है। अपनी ऑलराउंड उपयोगिता के कारण आज देश में प्रशासन इन मोमबत्तियों का कारोबार पक्ष-विपक्ष की सर्वसम्मति से खूब फल-फूल रहा है। रंगीन सस्ती झालरों और लड़ियों से लैस होकर इस उद्योग की वाट लगाने की दीवाली पर चीन ने जो कुटिल चाल चली थी वह औंधे मुंह धड़ाम हो गई। संवेदन शील सियासत ने बिना शर्त बाहर से-भीतर से दोनों तरफ से अपना अमूल्य अनैतिक समर्थन देकर इसे डूबने से बचा लिया।कालीन,खिलौने और इलेक्ट्रानिक्स के उजड़े व्यापारी आज प्रशासन इन मोमबत्ती उद्योग के आढ़तिये बन गये हैं। इनकी कार्यकुशलता का नतीजा है कि इधर हुआ झटपट हादसा औऐर उधर फटाफट हुआ कैंडिल मार्च। हर जगह,हर मौसम में नि जसूस हो या शादी,जींस हो या खादी, ग्रीटिंगकार्ड हो या ग्रवयार्ड,बर्थडे केक या लाइफ पर लगा ब्रेक सबकी रौनक इन मोमबत्तियों से ही तो है।आज हर भारतीय प्रशासन इन मोमबत्ती धर्मा हो चुका है। समोसाद म्यूजियम में तो सिर्फ मोम के पुतले बनाकर लगाए जाते हैं अपुन का तो पूरा कंट्री ही मय हो गया है। इसलिए आजकल भ्रष्टाचार और प्रशासन इन मोमबत्ती कारोबार में बराबरी का उछाल आया हुआ है। जिसके लुढ़कने की दूर-दूर तक कोई संभावना भी नहीं है
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