आजकल जाति के आधार पर पिछड़ापन तय हो रहा है तो मैने सोचा अपनी जाति के अगड़े पिछड़े परकुछ रिसर्च करूँरिसर्च तो वैसे घर बैठे करने के लिये विकीडिया ही काफ़ी है पर किसी यूनिवर्सिटी से रि सर्च हो तो नाम के आगे डाक्टर का ठप्पा लगाना बड़ा अच्छा लगे गा।बड़ी पुरानी ख़वाहिश करवट ले रही है।रिसर्च के लियें आजकल सबसे अधिक चर्चित यूनीवर् सिटी तो जे.एन यू, ही और वहाँ ना उम्र की सीमा है, ना जन्म का है बंधन…….. और जे. एन यू. मे सोश्योलोजी मे शोध छात्रा बन जाऊं या ऐन्थोपौलोजी की , चाहें ऐ.मए. मनोविज्ञान मे हूँ पर जब जाति के बारे मे रिसर्च करनी है तो इन दो डिपार्टमैंट मे से किसीमे जाना पड़ेगा, पता करने के लियें पहले कुछ गूगल सर्च करनी होगी।इंटरव्यू भी होगा ही इसलिये हमने अपनी जाति पर घर बैठे कुछ जानकारी खोज निकाली है।।घर का क्या नई पीढ़ी संभाल ही लेगी, यही उम्र तो है जब बेफिक्र होकर पढ़ सकते हैं स्कौलरशिप मिल ही जायेगी। सीनियर सिटिज़न्स को भी कुछ सुविधा मिलती होगी।
हाँ जी तो हम भटनागर कायस्थ होते हैं जिन्हे मनु महाशय ने चारों मे से किसी वर्ण मे नहीं रखा है।यहाँ तो शुरुआत ही से विवाद हैं तो शोध मज़ेदार रहेगा।हम कायस्थ अगड़ो मे अगाडी और पिछड़ोंपिछाड़ी हैं।मध्य काल से राजाओं के हिसाब किताब देखते देखते हम बाबू बन गये….बड़े बाबू छोटे या आई.ए.ऐस. रहे तो बाबू केबाबू।बाबुओं को मुंशी भी कहा जाता है तो साहब प्रेमचन्द जैसे लेखक ने अपने नाम के आगे मुंशी लगाने मे गर्व महसूस किया। अतः हम अगड़ों मेअगाड़ी हैं।
हमारे पूर्वज चित्रगुप्त यमराज के सैक्रैटरी हुआ करते थे, पूरा यमराज का कारोबार उन्ही के हाथ मे था, बिना कम्पूयर सब काम अेकेले करते थे। अब सवाल है कि चित्रगुप्त जी कौन जाति के थे। कुछकहते ब्राह्मण पिता और शूद्र मां की औलाद थे, कुछ क्षत्रिय और शूद्र की संतान मानते हैं। अब जब शूद्रो का खून हममे है तो हम पिछड़े क्या दलित हो गये, इस आधार पर हम पिछड़ों मे पिछड़ े हुए। बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर भा रत के कायस्थों का इतिहास ही इत ना अलग है .कि शोध मे कई साल लग जायेंगे, फिर लोग कहेंगे जे.एन .यू. मे पड़े रहने के लिये लोग रिसर्च पूरी ही नहीं करते।
हमारी जाति ने इतने पढ़े लिखे न ामी लोग देश को दिये हैं जैसे सुभाषचन्द्रबोस,स्वामी वि वेकानन्द डा. शान्ती स्वरूप भटनागर, मुं शी परेमचन्द( धनपतराय श्रीवास् तव) जयप्रकाश नारायण, राजेन्द्रप् रसाद, सोनू निगम, लालबहादुर शास्त्री, कवियत्री महादेवी वर्मा और आचार्य संजीव सलिल, शत्रुघ्न सिन्हा, अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हाऔर श्रिया सरन( भटनागर) तथा अन्य कई,कि कोई कायस्थ आरक्षणमांगने की हिम्मत नहींकरेगा….भले ही मनु महाराज ने हमे किसी वर्ण जगह न दी हो , हम अपनी जगह ख़ुद बना ही लेते हैं।
वैसे कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक मामले में फैसला दिया था कि कायस्थ शूद्रों कि श्रेणी में आते हैं! लेकिन दिमागी काम में तेज होने के कारण उन्हें ब्राह्मण क्यों न माना जाये?ये जो वर्ण बने थे वो हज़ारों साल पहले विकास के उस चरण में बने थे जब समाज में लोगों का श्रम विभाजन के आधार पर वर्गीकरण हो रहा था! और उसमे भी गुण, कर्म और स्वाभाव के आधार पर वर्ण निर्धारण की व्यवस्था थी! कालांतर में कुछ स्वार्थी वर्गों ने अपना प्रभुत्व स्थापित करके इसे जन्मना कर दिया! आज यह सब बातें काल-वाह्य हो गयी हैं! इनकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह गयीहै! कानपूर के मेस्टन रोड पर “शर्मा शू स्टोर्स” मिल जायेगा!अगर जाती सूचक शब्दों का प्रयोग बंद हो जाये तो भेदभाव काफी हद तक समाप्त हो जायेंगे!सोच बदलेंगे तो समाज बदलेगा!
सोच और समाज कितना ही बदल जाये पर आरक्षण की रजनीति बदलेगी संभव नहीं लगता।