सावधानी हटी – दुर्घटना घटी

साहसिक साईकिल अभियान – वाराणसी से खुजराहों
डा. अरविन्द कुमार सिंह, पूर्व एनसीसी अधिकारी

नम्बर पन्द्रह हमेशा कष्ट में रहा। पन्द्रह नम्बर पर उसका होना उसके कष्ट से बरी हो जाने का बहाना कभी नहीं बना। कष्ट उसकी नियत थी, संयोग नहीं। पन्द्रह नम्बर से इस लेख की शुरूआत का मात्र कारण इतना है कि यह नम्बर ही लेख का मुख्य किरदार है।घटना के पुराने होने का ये अर्थ नहीं की हम इससे सबक न सीखें। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी इस लेख की आत्मा है। यह सडक के किनारे लगा हुआ स्लोगन नहीं जिन्दगी का आईना है, जहाॅ हमी से हमारी मुलाकात है।

 

गाॅव से सुबह सुबह सूचना आयी, सडक दुर्घटना में बडे चाचा जी का देहान्त हो गया है। पिता जी को सूचना से अवगत कराया और अपने लिए निर्देश माॅगा। दूसरी सुबह मुझे एनसीसी में कमीशन मिलना था ( स्टार लगना था ) और पन्द्रह लडकों को लेकर वाराणसी से खुजराहों साईकिल यात्रा पर निकलना था।जो होना था हो चुका है।आप साईकिल यात्रा पर निकले तथा तेरही पर गाॅव पहुॅचे। यह साईकिल यात्रा मात्र दस दिन की थी। चाचा जी की मृत्यु का समाचार बटालियन में नहीं बताना है। ऐसा पिता जी का निर्देश था।

 

पाॅच मार्च से पन्द्रह मार्च उन्नीस सौ चौरानबे की बीच की घटना है। कुल आठ सौ पचास कि.मी की यात्रा थी। यात्रा की शुरूआत बडे गर्मजोशी के साथ हुआ। समादेश अधिकारी ले. कर्नल बी एम बोहरा ने हरी झण्डी दिखाकर हमें रवाना किया। हमें एक दिन में कम से कम नब्बे किमी साईकिल चलानी थी।घटनाक्रम को समझने के लिए व्यवस्था को समझना आवश्यक है। सुविधा के अनुसार कैडेटों  की नम्बरिंग कर दी गयी – एक से पन्द्रह तक। दो-दो का जोडा बना दिया गया एक दूसरे की सहायता करने के लिए। सिंगल फाईल फारमेशन में चलने वाले कैडेटों का हाल चाल चलते चलते जानने के लिए तीन सीटियों की व्यवस्था थी। आगे एक – मध्य में एक – और अन्त में एक। आपस की दूरी कितनी है यह समझने के लिए आगे का कैडैट एक ल्म्बी सीटी मारता था। आवाज सुनकर मध्य का कैडेट दो सीटी मारता था और उसकी आवाज सुनकर अन्तिम कैडेट तीन सीटी मारता था। सीटियों की आवाज से  मध्य की दूरी का पता चलता था। धीमी आवाज आपस की दूरी बढ जाने का संकेत थी। चटक आवाज नजदीक होने का इशारा करती थी। विशेष आवश्यकता पर लगातार सीटी की आवाज सबको रूकने का इशारा था। एक कैडेट डाक्टर के रोल में था। लेकिन किसी कैडेट को  कोई मेडिसीन देने के पूर्व, उसे मुझे कारण और मेडिसीन बताना जरूरी था।

 

रीवा शहर में हम दिन के करीब दो बजे प्रवेश किए। लगातार साईकिल चलाने से पूरा जिस्म थककर चूर था। सूर्य देवता पूरी प्रखरता से अपनी उष्मा रीवा शहर पर बिखेर रहे थे। एकाएक मुझे दूर खेतों में एक पम्पिंग सेट चलता दिखायी दिया। सबकुछ कैसे हुआ, मुझे पता नहीं। साईकिल रोकी, थके पैरों से चलकर पम्पिंग सेट के नीचे आकर बैठ गया, सेट का पानी पूरे शरीर को भिगों रहा था। कहते है आजतक किसी ने स्र्वग  देखा नही, पर मैं दावे से कह सकता हूॅ उसका एहंसस मैने किया। उस गर्मी में पानी और उससे उतरती जिस्म की थकान किसी स्वर्गिय एहसास से  कम न थी। जब आॅखें खुली तो क्या देखता हूॅ, पन्द्रहों कैडेट पीठ से पीठ लगाये पानी से भीग रहें थे। एक जोदार ठहाका लगा। किसी को कुछ कहने की की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि सबका दर्द एक था।

 

रीवा एनसीसी बटालियन में सभी कैडेटों को ठहराकर मैं समाचार देने के लिए समाचार कार्यालय चला गया। ठीक आठ बजें रात्री को आगें की यात्रा के लिए हम तैयार हुए। सभी कैडेटों  ने भरपूर अपनी नींद पूरी कर ली थी। सभी तरोताजा थे।यहाॅ यह बात स्पष्ट कर दूॅ। हम दिन में सोते थे और रात्री में साईकिल चालन करते थे। इसके कई फायदे थे। रात्री में सडकें खाली मिलती थी। थकान कम होती थी। प्रदूषण का असर कम होता था। दूरी ज्यादा तय होती थी। टुकडी लीडर ने रिर्पोट ली। एक से पन्द्रह तक की हाजिरी। सभी ठीक। साईकिलें ठीक। स्वास्थ्य ठीक। मोराल अप।

 

किसी को दवा दी गयी? जी सर ! चौदह नम्बर को – टुकडी लीडर ने सूचित किया। धीरे धीरे रीवॅा शहर पीछे छूटता जा रहा था। वो रीवाॅ शहर जो कत्थें के लिए मशहूर है, वो रीवाॅ शहर जो सफेद शेरो के लिए जाना जाता हैं। रीवाॅ शहर की जानकारियों का विस्तार – नम्बर पन्द्रह की दास्तान को छोटा कर देगा अतः हम रीवाॅ शहर को छोडते हुए – नम्बर पन्द्रह की तरफ मुडते हैं।हम तकरीबन दो घंटे की यात्रा कर चुके थे। सभी खामोशी से अपनी मंजिल की तरफ बढते चले जा रहे थे। तभी सन्नाटे को चीरती हुयी लगातार सीटियों की आवाज किसी अनिष्ट का इशारा करने लगी। सभी सडक के किनारे रूकते चले गए। हाजिरी हुयी – नम्बर पन्द्रह गायब था।

 

रूकने की सीटी किसने बजायी थी? सन्नाटे को चीरते हुए मेरी आवाज सबके लिए सवाल बन गयी। उत्तर नम्बर चौदह की तरफ से आया – ‘‘ सर! मैने बजायी थी ’’। बात क्या है ? ‘‘सर! नम्बर पन्द्रह गायब है‘‘। इस वाक्य न हम सभी को डरा दिया। नम्बर पन्द्रह , चौदह नम्बर का बडी था।टब हम वापस रीवाॅ शहर की तरफजा रहे थे। समय बर्बाद होने का अर्थ था, दूसरे दिन दूरी का बढना पर इससे भी किमती चिन्ता साथी के छूटने और खोने की थी।

 

सभी अनहोनी घटना का डर लिए जिज्ञासा के वशीभूत रीवाॅ शहर की तरफ बढे चले जा रहे थे। तभी एक कैडेट पूरी ताकत से चिल्लाया – ‘‘ सर! मिल गया नम्बर पन्द्रह ’’। पर मिलने से ज्यादा उसके अंदाज ने हमें डराया। वह सडक के बीचो बीच तिरक्षा पडा हुआ था। साईकिल किनारे एक पुलियाॅ से लगी हुयी थी। प्रथम दृष्टया ऐसा लग रहा था जैसे किसी ट्रक ने उसे धक्का मार दिया हैं।
मैने उसकी नाक के पास अपना हाथ लगाकर उसकी साॅसों को चेक किया।साॅसें चल रही थी। या तो वह बेहोश था या फिर गहरी निद्रा में। कैडेटों ने उसके चहरें पर पानी का छीटा मारा। नम्बर पन्द्रह के शरीर में हरकत हुयी और उसने आॅखें खोल दी।

 

मैने पूरी आवाज से उससे सवाल किया – ’’ नम्बर पन्द्रह कहाॅ हो?’’। उसने उत्तर दिया – ‘‘ पता नहीं, सर!‘‘ क्या कर रहे हो ? पता नहीं , सर! मैने उसे लगभग डाटते हुए कहा – ‘‘ जब कुछ पता नही ंतो खडा हो जा’’। उसने चटक आवाज में उत्तर दिया – ‘‘ एस सर!‘‘ और वह उठकर खडा हो गया।सबकुछ अनसुलझा था। नम्बर पन्द्रह होश में आ चुका था। तभी एक बात मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंधी। सारी बाते इस तरफ इशारा कर रही थी कि कही ना कही कुछ तो गडबड है।

 

मैने नम्बर बारह से सवाल किया – ‘‘ रीवाॅ से चलते वक्त तुमने किसी को कोई दवा दी थी?’’। हाॅ सर! नम्बर चौदह को। नम्बर चौदह आपने दवा का क्या किया? नम्बर चौदह खामोश रहा। मैने डाटते हुए यह सवाल पुनः दोहराया। उसने धीमी आवाज में बतलाया कि – यह दवा मैने नम्बर पन्द्रह को दे दिया था। मैने पुनः सवाल किया – क्यों?उसने अद्भूत जबाव दिया – ‘‘ सर! जब हम रीवाॅ आये ंतो मेरा शरीर दर्द से फटा जा रहा था। मैने नम्बर बारह से दवा माॅगी – उसने दवा दी भी पर मेरे बडी नम्बर पन्द्रह ने मुझसे कहा – तुमसे ज्यादा तो मेरा शरीर दर्द कर रहा है, ये दवा मुझे दे दो और मैने वो दवा नम्बर पन्द्रह को दे दी। इसके बाद मुझे कुछ पता नहीं है सर!

 

गुत्थी अब धीरे धीरे सुलझ रही थी पर अभी कलाईमेक्स बाकी था। अब मैं घूमा नम्बर पन्द्रह की तरफ – उॅची आवाज में सवाल दागाॅ – ‘‘ आगे का किस्सा बयान कर  ‘‘। मासूमियत लिए हुए नम्बर पन्द्रह की आवाज रात के अंधेरे का सन्नाटा तोडने लगी – ‘‘ सर! मैने सोचा कि अभी सोकर अपनी थकान उतार लेता हूॅ फिर जब चलने लगूॅगा तो दवा ले लूंगा – रास्ते में थकान नहीं होगी।अब मैं नम्बर बारह की तरफ पलटा – जिज्ञासापूर्ण स्वर में उससे पूछा- ‘‘ दवा क्या थी ?’’ उसके उत्तर ने मेरे होश उडा दिये – ‘‘ बेलियम 5‘‘। समझा आपने – नहीं – चलिए मैं बताये देता हूॅ आपको – यह नीद की गोली हैं।

 

समझ में नहीं आ रहा था किस की बुद्धिमानी पर उसे शाबासी दूॅ ?नम्बर बारह – नम्बर चौदह – नम्बर पन्द्रह या फिर खुद को। सभी एक से बढकर एक विद्वान। ईश्वर सभी के प्रति मेहरबान था। दुर्घटना की चपेट में हम आने से बाल-बाल बचे थे।बुद्धिमानियों का जिग्र न करू तो लेख अधूरा रह जायेगा। सबसे पहले नम्बर बारह – चौदह का दर्द ठीक करने के लिए नीद की गोली दे दी। सोचा सो लेगा – दर्द ठीक हो जायेगा। और अब चौदह – बडी की सहायता करना सबसे बडा धर्म है अतः अपनी गोली नम्बर पन्द्रह को दे दी। और अब बुद्धिमानी की सर्वोच्च पराकाष्ठा – पन्द्रह ने सोचा अभी तो सो लेते है जब चलेंगे तो गोली ले लेंगे। डब्बल बुद्धिमानी के चक्कर में जब जनाब पर नीद हावी होने लगी तो जनाब को पता ही नहीं चला कब हाथ से साईकिल फिसलकर पुलिया से जा लगी और जनबा सडक के बीचो बीच तिरछा लेट गये। वैसे देखा जाये तो सारा दोष मेरा था। चलते वक्त दवा दी गयी किसी को यह जरूर पूछा पर क्या दवा दी गयी यह नहीं पूछाा।

 

वातावरण गम्भीर हो चुका था। सबके चेहरें पर हवाईया उड रही थी। सबकी निगाहे मुझ पर टिकी थी क्या आदेश मिलता हैं? मैने नम्बर पन्द्रह को नम्बर एक की जगह किया और एक को पन्द्रह की जगह। साथ ही पन्द्रह को साईकिल हाथ में उठाकर तथा टुकडी को पैदल चलने का आदेश दिया। साथ ही दूसरे दिन सौ किमी यात्रा का फर्मान सुनाया।पन्द्रह के थकने पर साईकिल नीचे कराता फिर थोडी दूर चलकर हाथ में साईकिल उपर उठवाता। जब मैं पूर्णत आश्वस्त हो गया कि नम्बर पन्द्रह नीद की आगोश से बाहर आ चुका है तो सब को साईकिल पर चढकर चलने की अनुमति प्रदान किया। साईकिल पर चढने के पूर्व नम्बर पन्द्रह ने बडी मासूमियत से मुझसे सवाल किया – ‘‘ सर! क्या मुझसे कोई गलती हो गयी है ?’’।

 

उसके इस प्रश्न पर जो ठहाके लगे निश्चित ही उसकी गूॅज सौवी बटालियन उदय प्रताप कालेज, वाराणसी तक सुनायी दी होगी। और मैं उस रात के सन्नाटे में – सडक के किनारे लिखे उस स्लोगन के बारे में सोच रहा था – सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। ईश्वर का लाख लाख शुक्रिया सावधानी हटने के बाद भी दुर्घटना नहीं घटी।और अन्त में बहुत असमंजस में हूॅ। क्या नम्बर पन्द्रह का नाम उद्घाटित करू या नहीं। उद्घाटित करता हूॅ तो रूसवाई का डर हैं अगर नहीं करता हूॅ तो किरदार से उसका हक छिनता हूॅ। लेख समापन के पूर्व आखिरकार सोचा क्यों ना उसी से पूछ लूॅ। फोन लगाया – ‘‘ तेरा नाम दे दूॅ या नहीं‘‘। उसने छूटते ही कहा -‘‘ सर! बदनाम होउगा तो क्या नाम भी ना होगा? एक चाॅस मिला है अब इसे खोने की गलती नहीं करूगा, मेरा बडी नाराज हो जायेगा सर! सारी क्रेडिट तो उसी की थी। प्लीज सर! डसका भी नाम जरूर दिजीयेगा। क्योकि गोली तो उसी ने दी थी’’।

 

किरदारों से परिचय कराकर लेख समाप्त करता हूॅ – नम्बर बारह – डाक्टर रजनीश सिंह, नम्बर चौदह – विनोद सिंह यादव और मुख्य किरदार नम्बर पन्द्रह – शिव कुमार यादव।

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