सावन और साजन

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घोर घटाएं जब घिरने लगती है,
तुम्हारी याद मुझे आने लगती है।
रिम झिम रिम झिम जब बादल बरसे,
मिलन की आस सताने लगती हैं।।

साथ न हो सावन में साजन का,
दिल में घुटन सी होने लगती है।
बिन साजन सावन की भीगी राते,
मुझको दुश्मन सी लगने लगती है।।

दमकती है दामिनी जब नभ में,
मुझको डर लगने लगता है।
कही ये मुझ पर न गिर जाए,
ऐसा आभास होने लगता है।।

होती हवा से आहट द्वार पर,
ऐसा भ्रम मुझे होने लगता है।
आए होगे साजन मेरे द्वार पर,
फिर मन मुस्कराने लगता है।।

बिन साजन के सावन सूखा,
भले ही बादल बरसते हो।
ऐसी बारिश का क्या है लाभ
जब नैन साजन के लिए तरसते हो।।

पड़ती है जब नन्ही नन्ही बूंदे,
तन सिहरने मेरा लगता है।
कैसे समझाऊं मै इस मन को,
मुझको मुझसे डर लगने लगता है।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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