शिव, शक्ति और प्रकृति को निहारने का मौसम है सावन

0
1113

   हम ज़िन्दगी को जिस नजरिये से देखते है जिंदगी हमें वैसी ही नजर आने लगती है। ये हमारी आस्था और मन का विश्वास ही तय करता है कि हमें ज़िन्दगी को किस चश्मे से देखना है। जीवन में आशा-निराशा, सुख-दुःख और जीवन-मरण की प्रक्रिया अपनी गति से चलती रहती है। ये सत्य है कि आज सुख है, तो निश्चय ही कल दुःख भी आएगा, क्योंकि जीवन छणभंगुर है। इस भौतिक संसार मे जो भौतिकता से परे है वही शिव है। शिव आदि और अनन्त है। भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। वे ज्ञान, वैराग्य के परम आदर्श है। कहते है ईश्वर सत्य है,  सत्य ही शिव है और शिव ही सुन्दर है। इसलिए भगवान शिव का एक रूप सत्यम, शिवम और सुंदरम है। शिव के बिना प्रकृति की कल्पना आधारहीन है और प्रकृति के बिना मनुष्य के जीवन का कोई आधार नही है।

  यूँ तो हमारे देश में हर त्यौहार को प्रकृति के साथ ही जोड़कर देखा जाता हैं। हर त्यौहार में प्रकृति के प्रेम की झलक दिखती है। हमारा गौरवशाली इतिहास न केवल हमें प्रकृति से प्रेम करना सीखाता है, बल्कि प्रकृति का संरक्षण करना भी जरूरी है, हमें यह भी बताता है। शिव ही प्रकृति है। प्रकृति नहीं तो जीवन नहीं। शिव प्रकृति के प्रेम का प्रतीक हैं। एक ऐसा प्रेम जो स्वार्थ से परे है। शिव जीवन है, तो प्रकृति आत्मा है और इसी आत्मा से परमात्मा के मिलन से ही सुंदर रूप का साक्षी “सावन माह” है। सावन जिसमें प्रकृति अपने यौवन अवस्था में होती है। सारा संसार भक्तिमय हो जाता हैं। भक्ति का दूसरा रूप ही प्रेम है। शिव और शक्ति के मिलन का ही प्रतीक सावन है। जिस तरह विरह की वेदना में तरसती प्रियतमा पर जब प्रेम रूपी वर्षा होती है तो उसका श्रंगार ही अलग होता है। मानो कस्तूरी मृग अपने प्रेम की खुशबू  से प्रकृति को महका रही हो। पेड़ो पर फूलों की बहार आ जाती है। प्रेमिका अपने प्रेमी से मिलन गीत गा रही होती है। सावन के झूले अपने मन के अंदर चल रहे भावों को प्रकट करते है। लताएँ पेड़ो को अपने अंदर समाहित करने को आतुर हो उठती है। भौरों की गुंजन ऐसे प्रतीत होती है मानो कोई प्रेमी अपने प्रेम का संदेश अपनी प्रेमिका के लिए भेज रहा है। 
        भक्ति, प्रेम के रूप अलग-अलग है। एक भक्त अपनी भक्ति की शक्ति से अपने आराध्या के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करता है। एक प्रियतमा अपने प्रिय के प्रति अपने प्रेम को दर्शाती है। सावन इसी प्रेम का प्रतीक है। माँ शक्ति ने इसी पवित्र माह में अपनी भक्ति से भगवान को प्राप्त किया था। पौराणिक कथा के अनुसार सावन के महीने में ही समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र से प्राप्त रत्नों को देवताओं ने ग्रहण कर लिए। इस मंथन से निकले विष को प्रकृति की रक्षा के लिए भगवान ने धारण किया। भगवान शिव का त्याग अनुपम है। शिव योग और वैराग्य के देवता है। कहते है ब्रह्माजी सृष्टि के निर्माता है। विष्णुजी पालन करता और शिव सृष्टि के संहारक है। शिव से बड़ा कोई योगी नहीं है। शिव ही शक्ति है और शक्ति ही शिव है। भगवान महादेव ने इसीलिए अपना अर्धनारीश्वर रूप धारण किए हुए है। भगवान शिव ने ही यह बताया है कि किस तरह पुरुष के बिना नारी और नारी के बिना पुरुष अधूरा है ठीक उसी तरह जिस तरह प्रकृति के बिना मानव जीवन अधूरा है।
         आधुनिकता की चकाचौंध ने भले मानव को अपने संस्कृति अपने संस्कारो से दूर कर दिया हो। सावन के झूले अब दिखाई नही देते है। घर में आंगन की परंपरा अब नही रही। आंगन के पेड़ों की जगह अब गगन को छूती इमारतें रह गई है। आधुनिकता की दौड़ में इंसान ने प्रकृति को नष्ट कर दिया है प्रकृति के संग जीने की परम्परा थमती सी जा रही है। त्यौहारों की रौनक फीकी हो गई है। अब सावन के झूले और झूलों पर गीत गाती महिलाएं सिर्फ यादों और कहानी किस्से बनकर रह गयी है। भारतीय संस्कृति में झूला झूलने की परम्परा वैदिक काल से ही चली आ रही थी। भगवान श्री कृष्ण राधा संग झूला झूलते और गोपियों के संग रास रचाते थे। झूला झूलना प्रकृति के प्रेम का प्रतीक होता है। आज पेड़ो पर वो झूले अब दिखाई नही देते। एक फ़िल्मी गाने का बोल भी है, “बागों में अब झूले पड़ गए पक गई मीठी अमिया…” लेकिन अब सावन तो आता है पर सावन की वह चमक नही रही। महिलाओं की चूड़ी की खनक उनके गीतों की महक सुनाई नही देती है, और पेड़ की डाल पर पड़े झूले अब कहाँ दिखते हैं! पहले सावन आते थे और बेटियां अपने ससुराल से मायके आ जाती थी। अब वो प्रथा नही रही। सावन ने अपना रूप बदल लिया है। अब वास्तविक सावन बीती यादों का अहसास बनकर रह गया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here