बुद्धिहीन और नासमझ व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण विषय पर गैर-जिम्मेदार बात कहे तो उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन कोई समझदार व्यक्ति किसी गंभीर विषय पर गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करे तो यह बेहद चिंता का विषय कहा जा सकता है और इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। इस दृष्टि से देश के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक वेदप्रताप वैदिक की पाकिस्तान यात्रा और वहां आतंकवादी हाफिज सईद से उनकी मुलाकात तथा बातचीत के दौरान उनके द्वारा कश्मीर की आजादी को लेकर कही यह बात कि ‘यदि भारत और पाकिस्तान राजी हो तो कश्मीर की आजादी में कोई हर्ज नहीं’, एक समझदार पत्रकार की गैर-जिम्मेदाराना बात कही जा सकती है। यदि इसे यह कहा जाए कि वैदिक की यह टिप्पणी पूरी तरह राष्ट्रविरोधी और देशहित को दरकिनार कर की गई है तो अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। 1974 में किए गए समझौते में साफतौर पर कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग माना गया है। इसके बावजूद अगर देश का कोई जिम्मेदार व्यक्ति जिसे की वैदेशिक मामलों का विशेषज्ञ भी कहा जाता है, विदेश में वह भी उस देश में जो कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए सदैव षड्यंत्र रचता रहा है, जाकर स्वतंत्र कश्मीर की हिमायत करे तो यह बात बहुत सारे सवाल खड़े करती है।
सबसे बड़ा सवाल तो यह खड़ा होता है कि क्या वेदप्रताप वैदिक पाकिस्तान में राष्ट्रधर्म की परिभाषा को भूल गए थे? क्या वैदिक को यह बात याद नहीं रही थी कि जिस कश्मीर की आजादी की वह बात कर रहे हैं, उसी कश्मीर की खातिर भारत के हजारों सैनिक सीमा पर तथा पाकिस्तान के साथ लड़े गए युद्धों में अपना बलिदान दे चुके हैं। इसी कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए पाकिस्तान द्वारा पूरे भारत में आतंकवाद का विष वमन किया जा रहा है, पाकिस्तान की सेना लगातार कश्मीर पर कब्जा करने के लिए षड्यंत्र रचती रहती है। कौन भूल सकता है कश्मीर से लगी सीमा पर पाकिस्तान सेना द्वारा भारत के वीर सैनिकों के सिर काटकर ले जाने की घटना को। क्या वैदिक जी को कश्मीर की आजादी पर कुछ भी बोलते समय यह ध्यान नहीं रहा? यदि वह यह सब भूल गए तो आखिर क्यों?
यहां पर इस मुद्दे को लेकर देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस और उसके मुंहलगी कुछ विपक्षी पार्टियों के संसद में प्रस्तुत किए जा रहे चरित्र पर भी चर्चा करना बेहद आवश्यक है। कांग्रेस द्वारा संसद में आरोप लगाया गया कि वेदप्रताप वैदिक संघ से जुड़े हैं। वैसे तो कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं है। देश में जब भी कोई अराष्ट्रीय या विवादित मामला घटित होता है कांग्रेस नेताओं को इसमें संघ का हाथ ही नजर आता है। बावजूद इसके वेदप्रताप वैदिक के पाकिस्तान घटनाक्रम पर कांग्रेस के इस आरोप का संघ के पूर्व प्रवक्ता राम माधव ने यह कहते हुए खंडन किया है कि वेदप्रताप वैदिक का संघ से कोई संबंध नहीं। यदि कोई व्यक्ति सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के साथ विदेश यात्रा करता है तो वह संघ का स्वयंसेवक कैसे हो सकता है? उधर वेदप्रताप वैदिक ने भी स्वयं कहा है कि वे कभी संघ के स्वयंसेवक नहीं रहे, उनका संबंध तो कांग्रेस नेताओं से रहा है।
वैसे भी यह बात गौर करने लायक है कि जिस कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के खिलाफ जनसंघ और संघ परिवार से जुड़े प्रबल राष्ट्रवादी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दे दिया था, यदि वास्तव में वेदप्रताप वैदिक का उस संघ से जुड़ाव होता तो वे कश्मीर की आजादी पर कभी भी कोई बयान नहीं देते। बड़े दुख की बात है कि कांग्रेस के युवराज राहुल को वेदप्रताप वैदिक की आतंकवादी हाफिज सईद से हुई मुलाकात और कश्मीर की आजादी तथा हाफिज द्वारा इस पर दिए विवादित बयान के महत्वपूर्ण घटनाक्रम से ज्यादा चिंता इस बात की है कि वैदिक का जुड़ाव संघ से है। कितना अच्छा होता कि राहुल गांधी अपनी सोच को विस्तार देते और एक आतंकवादी से एक भारतीय पत्रकार की मुलाकात तथा कश्मीर की आजादी से जुड़े उनके बयान में संघ जैसे देशभक्त संगठन को नहीं घसीटते।
कांग्रेस द्वारा संसद में यह मुद्दा उठाया जाना तो ठीक था लेकिन इस संवेदनशील मुद्दे पर भी एकजुटता और राष्ट्रीय सोच की जगह राजनीतिक आइने से देखकर बयानबाजी करना बेहद निंदनीय है। जब संसद में अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने पूरी तरह से यह साफ कर दिया कि वेदप्रताप वैदिक की पाकिस्तान यात्रा से सरकार का कोई लेना देना नहीें है, फिर भी इसको लेकर सरकार को घसीटना कहां तक उचित है। बेहतर होता कांग्रेस देश की एकता-अखंडता से जुड़े इस तरह के मुद्दे पर सत्तापक्ष के साथ सहमति बनाकर आतंकवादी हाफिज सईद पर सामूहिक हमला बोलने की रणनीति बनाती और संसद में एक स्वर से पाकिस्तान से सईद की गिरफ्तारी की मांग की जाती। कांग्रेस कल तक सत्ता में थी और उसे भली प्रकार इस बात का ज्ञान भी है कि भारत में 2008 के मुंबई हमलों का मुख्य षड्यंत्रकारी तथा जमात उद दावा का प्रमुख हाफिज सईद न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में सर्वाधिक वांछित आतंकवादी है। कांग्रेस के सत्ता में रहते भारत ने भी पाकिस्तान को जो सर्वाधिक वांछित आतंकवादियों की सूची सौंपी थी, उसमें भी सईद का नाम शामिल था। इतना ही नहीं, अमेरिका ने भी सईद के सिर एक करोड़ अमरीकी डॉलर का ईनाम रखा है। अत: कांग्रेस द्वारा सबसे बड़ा सवाल तो यह उठाया जाना चाहिए था कि जो पूरी दुनिया में आतंकवादी घोषित हो चुका है, जिसके सिर करोड़ों का इनाम है वह पाकिस्तान में कैसे खुलेआम घूम रहा है। यदि वास्तव में पाकिस्तान आतंकवाद और आतंकवादियों को समाप्त करना चाहता है तो हाफिज सईद जैसे आतंकी को गिरफ्तार कर उसे अमेरिका, भारत जैसे देशों के हवाले क्यों नहीं किया जाता? क्यों उसके खिलाफ पाकिस्तान सख्त कार्रवाई नहीं करता? स्पष्ट है कि कांग्रेस ने संसद में इस बात पर चर्चा कराना उचित नहीं समझा और उसका पूरा ध्यान अपने ही देश के वरिष्ठ पत्रकार वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात पर केन्द्रित रहा और इसको लेकर वह अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है। आखिर यह कैसी समझदारी है?
सच पूछा जाए तो पाकिस्तान सरकार हो या उसकी सेना अथवा इनके मुंह लगे हाफिज सईद जैसे आतंकी सदैव ऐसे मुद्दे खोजते रहते हैं जिससे भारत के भीतर आपसी राजनीतिक टकराव हो और यह लोग दूर बैठकर उसका मजा लेते रहे। जैसा कि इस घटनाक्रम के बाद हाफिज सईद के बयान से भी साफ हो रहा है। उसने भारत में इस मुलाकात के बाद मचे बवाल पर चुटकी लेते हुए कहा कि सेक्यूलर भारत को अपने एक पत्रकार की मेरे साथ मुलाकात बर्दाश्त नहीं हुई है। यह भारत की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
साफ है हाफिज सईद ने न कांग्रेस और न भाजपा बल्कि पूरे भारत पर निशाना साधा है। इस षड्यंत्र को भारत के राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों आदि को बारीकी से समझने की जरुरत है। विदेश यात्रा के समय यदि किसी आतंकवादी संगठन के प्रमुख से बातचीत का मौका मिलता है तो यह बात परख कर ही उससे मुलाकात की जाए कि इसका देश की एकता-अखंडता पर तो कोई असर नहीं पड़ने वाला। कहीं मुलाकात की आड़ में भारत के भीतर आपसी द्वंद कराने का षड्यंत्र तो आतंकवादी नहीं कर रहे हैं। जैसा कि सईद और वैदिक मुलाकात के बाद देखने को मिल रहा है।
वेदप्रताप वैदिक जी के कथन के पीछे कुछ रहस्य(?) शायद हो भी सकता है।
(१) प्रसिद्धि पाने का एक मार्ग, विवादित होकर माना जाता है।
(२) पर संघ को बीचमें लाने की बात, कांग्रेस की घटिया राजनीति ही है; और समाचारों में रहनेकी चाल है।
क्यों कि, कांग्रेस के पास कोई सकारात्मक, एवं रचनात्मक पर्याय कभी था ही, नहीं।
उनका वास्तविक “स्टॉक मूल्य” सदन की बैठकों के अनुपात में, घटते बढते रहता है।
तो “येन केन प्रकारेण” समाचारो में रहना उसकी विवशता बन चुकी है।
(३) हिमशैल के शिखर जितना संघका कार्य दिखाई देता है। शिखर के नीचे अनेकानेक गुना प्रसिद्धिविन्मुख कार्यकर्ता काम करते हैं।
(४)पर “वेद” और “वैदिक” का आधार लेकर अवश्य संघ विषयक भ्रम बडी कुशलता से फैलाया जा सकता है। पाठक भी बुद्धिमान है। सारा समझता है।
लेखक प्रवीण जी को धन्यवाद।
Good analysis. Issue related to this interview needs proper introgation by the government.