कहब तो लग जाई धक से – आर्टिकल 15

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संजीव खुदशाह

फिल्म  आर्टिकल 15 की शुरूआत एक प्रसिद्ध जन गीत से होती है।
कहब तो लग जाई धक् से, धक् से-
बड़े-बड़े लोगन के बंगला दो बंगला-
और हीरो हौंडा अलग से, अलग से-
ये जन गीत मानों यह संदेश दे रहा है कि इस फिल्म में विषमता और भेदभाव की कई
परते खुलने वाली है। विदेश में पढे आयान रंजन जो की एक आई पी एस अधिकारी है का किरदार
निभाया है आयुस्मान खुराना ने। वे एन आर आई है उन्हे अपने देश से बेहद प्यार है तथा उनके मन में
हिन्दूस्तान की एक सुंदर छबी बनी हुई है। बिल्कुल किसी स्वर्ग सी। वे अपनी गर्ल फैन्ड अदिती से एस
एम एस के माध्यम से अपनी नई पोस्टिंग का हाल बयां करते है और इसी के माध्यम से वे एक दूसरे
के विचार का आदान प्रदान करते है। दर्शक उनके मन में चल रहे उथल पुथल को भली भाती समझ पाते
है। आयान कहते है सुना था देश संविधान से चल रहा है लेकिन यहां संविधान का नामों निशान रही है।
फिल्माये गये गांव के नाम और परिस्थिती से ये मालूम होता है कि आयान रंजन की पोस्टिंग उत्तर
प्रदेश के किसी पिछडे. कस्बे में हुई है । इस कस्बे में कहने के लिए तो पुलिस स्टेशन है ए एस पी
आँफिस है लेकिन कानून मंदिर के महंत (एक ब्राम्हण पुजारी) का चलता है।

फिल्मी फ्लैश बैक में दो नाबालीग दलित लड़कियों के रेप के बाद फाँसी में टांग दिये
जाने की घटना से शुरु होती है। लड़कियों के तीन दिन ग़ायब रहने के दौरान परिजनों की मिन्नत के
बावजूद एफ आई आर नही लिखी जाती है। यहां तक कि लड़कियों के मौत के बाद भी थानेदार ब्रम्ह
दत्त   द्वारा एफ आई आर नही लिखा जाता है। बल्कि मामला आनर किलींग का बताया जाता है।
आयान रंजन को शक होता है कि कारण कुछ और है। पोस्ट मार्टम रिर्पोट को बदलने के लिए महिला
डाक्टर को दबाव डाला जाता है। इस दौरान लड़की के परिजनों को कई बार जलालत झेलनी पडती है।
यहां पर भीम आर्मी जैसा का किरदार उभर कर आता है और इस हत्या के विरोध में दलित अपना काम
बंद कर देते है । थाने से लेकर सारे शहर तक गंदगी पसर जाती है। भीम आर्मी के लोग ट्रकों में कूडा
लाकर जय भीम का नारे लगाते हुये थाने और एस पी आफिस के सामने जमा कर देते है।

फिल्म में दलितों के विरोध और एकता को बडी ही संजीदगी से दिखाया गया है। वही
दूसरी ओर जाति में बटे हुये समाज की पोल खोल के रख दी गई। जहां एक ब्राम्हण दूसरे ब्राम्हण से
ऊचा या नीचा है तो दूसरी ओर एक दलित दूसरे दलित के हाथो का पानी तक नही पीता है। यहां बताया
गया है कि किस प्रकार महंत दक्षिण  पंथी विचार धारा को लेकर दलित और ब्राम्हण वोटों का ध्रुवीकरण

करके चुनाव जीत जाता है। इनके भाषण सुनकर यकायक मायावती, अखिलेश, योगी और भीम आर्मी
प्रमुख चंद्रशेखर रावण की याद आ जाती है।

अंत में पता चलता है कि उस लड़कियों के गैंग रेप में गांव के ही उची जाति का ठेकेदार
का हांथ है लड़कियों को तीन दिन स्कूल के एक कमरे में रख कर गैंग रेप किया जाता है जिसमें उस
थाने के सिपाही और थानेदार भी शामिल थे। इसलिये वे शुरू से इस केस की लिपा पोती में लगे रहते है।
और आनर किलींग का रूप देने की कोशिश करते है। लडकियों का अपराध सिर्फ इतना था की वे तीन
रूपय ज्यादा दिहाडी मांग रही थी यानी 25 रूपये की जगह 28 रूपय प्रतिदिन। ठेकेदार द्वारा मं‍जूर
नही किये जाने के कारण वे काम छोडकर दूसरे जगह चमड़ा फैक्टरी में काम करने जा रही थी। यही
बात ठेकेदार को नागवार गुजरी उसने काम से लौटती तीनो नाबालिग दलित लड़कियों को पकड कर
अपने निजी स्कूल में तीन दिन बलात्कार किया जाता है। दो को जिन्दात फासी में लटका दिया जाता है
एक भागने मे कामयाब हो जाती है। ठेकेदार कहता है कि हर जाति की एक औकात होती है सबको उसी
औकात में रहना है लडकिया अपने औकात से ज्यादा मांग रही थी इसलिए उसे उसकी औकात बताई
गई।

फिल्म के हीरो मनोज पाहवा है जो ब्रम्हदत्त की भूमिका में है यह एक ऐसा पुलिस वाला
है जो जानवरों से तो प्‍यार करता है लेकिन शूद्रों के लिए उसमें क्रूरता भरी हुई है। अंत में उसे लड़कियों
से बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है वह भी उसके असिस्टेन्टस दलित पुलिस वाले के
द्वारा। ब्रम्ह‍दत्ते कहता है कि तुझसे झाडू लगाने का काम लेना था वही तेरी जात के लिए ठीक
रहता।    

आज से 70 साल पहले संविधान के रचयिता डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा लिखे
संविधान के अनुच्छेद 15 अर्थात ‘आर्टिकल 15’ में साफ लिखा गया है कि राज्य, किसी नागरिक के
विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं
करेगा।

इस फिल्म। का क्लाइमेक्सय जबरजस्त है दर्शक अंत तक बंधा रहता है। बैक्ग्राउड
म्यूजिक अच्छा है। पूरी फिल्म भेदभाव व संविधान के इर्दगिर्द घूमती नजर आती है। इस फिल्म  में कई
जगह बाबासाहेब एवं जय भीम का जिक्र होता है। एक स्थान पर सवर्णो के द्वारा जय भीम के प्रति
नफरत को भी दर्शाया गया है। काला फिल्म के बाद एक अच्छी फिल्म आई है। ऐसी फिल्मों का आना
एक अच्छा संदेश है । आर्टिकल 15 के तमाम कलाकार लेखक निर्देशक बधाई के पात्र है। हर भारतीय
को यह भी जरूर देखनी चाहिए।

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