रायगा है उनकी महफिल,है वहाँ दीवाने सब ,
बेरहम,महरुम बंदे ,बदगुमानी से है भरे ।
किसको है फुर्सत यहाँ पर ,बज्म का देखे मिजाज
सब कहर ढाने को आगे ,सब जहर से हैं भरे ।
वह शिकस्ता नाव अपनी कब से कोने में खड़ी
जाना था उस पर जिनको ,सब के सब डरके खड़े ।
है हिदायत उनको कि लहू से लिखेंगे वो खत ,
पर वो हैअंधों की बस्ती ,कौन किसको क्या कहे ।
मौज दरिया से निकल कर और जा सकता कहाँ ,
कौन उसको माफ करता ,कौन नैनों मे भरे ।