वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनेगा विकास का आधार

-नवनीत कुमार गुप्ता-
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आधुनिक समय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का है। जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से अछूते नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करने का संकल्प व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री महोदय ने संसद के उनके पहले संबोधन में देश में व्याप्त अंधश्रद्धा पर गंभीर चिंता व्यक्त की। असल में आज हमारे देश में अंधश्रद्धा और अंधविश्वास विकास के राह में बाधक बनकर खड़े है। सूचना क्रांति और वैज्ञानिक युग के जीवन व्यतीत करने के बावजूद भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविष्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अषिक्षित और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के लोग षामिल हैं। ये लोग झाड़-फूंक, जादू-टोना और टोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों पर विश्वास रखते हैं जिसके कारण वे वैज्ञानिक चेतना से अछूते हैं।

हमारे समाज में कई रीति-रिवाज आज भी केवल परंपरा के नाम पर कायम हैं, क्योंकि वे पहले से चले आ रहे हैं। इसलिए कई लोग अभी भी उन रीति-रिवाजों को मान रहे हैं। आज वे रीति-रिवाज तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इसलिए हमें ऐसी मिथ्या मान्यताओं को नहीं मानना चाहिए। इन्हीं मिथ्या मान्यताओं और अंधविश्वासों का परिणाम है कि हमारे ही देश के कुछ राज्यों में हर साल सैकड़ों महिलाएं ‘डायन’ के नाम पर मार दी जाती हैं। कई तांत्रिक आज भी अबोध बच्चों की बलि दे रहे हैं। तमाम लोग आज भी अज्ञानवश बीमारी का इलाज झाड़-फूंक और गंडे-ताबीजों से करवाते हैं। बीमारियां पैदा करने वाले बैक्टीरिया, वाइरस, फफूंदियां और पैरासाइट गंडे-ताबीज या झाड़-फूंक को नहीं पहचानते। यह समझना चाहिए कि बीमारी का इलाज केवल औषधियों से हो सकता है जो रोगाणुओं को नष्ट करती हैं। अंधविश्वास के कारण हर साल बड़ी संख्या में मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं।

अबोध पशुओं की बलि देकर भी किसी व्यक्ति की बीमारी का इलाज नहीं हो सकता। बल्कि, पालतू पशु आदमी के विश्वासघात का शिकार हो जाता है। हमें यह भी समझना चाहिए कि जन्मपत्री मिला कर अगर विवाह सफल होता तो आपसी कलह का शिकार होकर इतने जोड़े तलाक न लेते। वास्तुशास्त्र और फेंगसुई का भी कोई तार्किक या वैज्ञानिक आधार नहीं है। समाज में आए दिन किस्मत बदल देने, गड़ा धन दिलाने, सोना-चांदी दुगुना कर देने वाले ढोंगी बाबा लोगों को ठग रहे हैं। इसका कारण भी वैज्ञानिक प्रवृत्ति की कमी ही है। यदि तार्किक ढंग से सोचा जाए तो समाज में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी।

अनेक चैनल भी सामान्य प्राकृतिक घटनाओं की ज्योतिषियों से अवैज्ञानिक व्याख्याएं प्रस्तुत करके अंधविष्वास फैला कर संविधान की मूल धारणा से खिलवाड़ कर रहे हैं। लार्ज हैड्रार्न कोलाइडर के प्रयोग हों या तमिलनाडू स्थित न्यूट्रिनों वेधशाला की स्थापना पर फैली अफवाहें हो। ये सभी विज्ञान के विकास को बाधित करती हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी समाज की उन्नति में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को आवष्यक मानते थे। उन्होंने 1958 में संसद में भारत की ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति’ प्रस्तुत की। किसी देष की संसद द्वारा विज्ञान नीति का प्रस्ताव पारित करने का यह विष्व में पहला उदाहरण था। नेहरू का विचार था कि वैज्ञानिकों को चाहिए, वे प्रयोगषालाओं को वैज्ञानिक अनुसंधान का मात्र केन्द्र न मानें, बल्कि उनका लक्ष्य यह हो कि जनमानस में वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाया जा सके। ऐसा दृष्टिकोण ही उन्नति का मेरुदंड है। प्रकृति के रहस्यों का ज्ञान न होने के कारण अंधविष्वासों का जन्म होता है। विज्ञान प्रकृति के इन रहस्यों का पता लगाता है और रहस्य का पता लग जाने पर उससे जुड़ा भ्रम या अंधविश्वास खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन कई बार वैज्ञानिक प्रवृत्ति या वैज्ञानिक सोच की कमी के कारण ऐसा नहीं होता।

अंधश्रद्धा एवं अज्ञान मुक्त समाज के निर्माण के लिए शिक्षा का प्रसार महत्वपूर्ण है। सरकार सदैव शिक्षा के प्रसार पर जोर देती रही है। आधुनिक समय में नयी प्रौद्योगिकियों जैसे उपग्रह के माध्यम से शिक्षा के प्रसार में तेजी लायी जा सकती है। समाज में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए जरूरी यह है कि हम शिक्षा का प्रसार कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं। किसी भी घटना या परिघटना के रहस्य को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने का प्रयास करें, उसके बाद ही उस पर विश्वास करें। तभी समाज में वैज्ञानिक चेतना आएगी और समाज आगे बढ़ेगा। तार्किक सोच से जो समाज बनेगा उसका सपना ही महान भारतीयों ने देखा होगा। इसलिए हम सभी को वैज्ञानिक चेतना को अपनाते हुए उन्नत समाज की रचना के लिए प्रयास करना चाहिए।

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