वैज्ञानिक नजरिया

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आदिम मनुष्य प्रकृति के नियमों से सम्पूर्ण रुप से अनभिज्ञ था। मौसमों का लयात्मक रुप से बदलना,सूरज का नियम से पूरब में उगना और पश्चिम में अस्त होना, चाँद की कलाओं का बढ़ना-घटना, तारों भरा आसमान, बादल और उसको चीरती बिजली, समुद्र, पहाड़ और समतल हिस्से, पेड़, पौधे, विभिन्न प्रकार के जानवर, आँधी  तूफान, कभी कभार होने वाले भूकम्प और ज्वालामुखी, और  कभी कभार, अनियमित रुप से होनेवाली प्राकृतिक दुर्घटनाएँ, और आपदाएँ उसके लिए  अचम्भे से भरे रहस्य थे। कौतूहल,जिज्ञासा और भय से निरन्तर कल्पना और युक्ति के द्वारा जूझते रहना आदिम मनुष्य की नियति बन गई थी। इसके बाद उसने अवलोकन एवम् प्रयोगों के द्वारा सुनियोजित तरीके से जानकारी हासिल करना प्रारम्भ किया। इस प्रकार क्रमशः धर्म और विज्ञान की नींव पड़ी।

भगवान और भूत की कल्पना ने उसे अपनी समस्याओं के सामने रुबरु होने में मदद की। सभ्यता और संस्कृति में प्रगति के साथ इन रहस्यों के ऊपर का पर्दा  हटने लगा। आदमी भगवान और भूत को प्रासंगिक बनाए बगैर अपने परिवेश की पहचान और उनसे घनिष्ठ सरोकार कायम करने लगा। शिक्षा, विज्ञान और प्रोद्यौगिकी के विस्तार होने के कारण भगवान और भूत का साम्राज्य सिकुड़ गया है, पर बाबाओं का बोलबाला बिलकुल ही कम नहीं हुआ है।। आज के सफल आधुनिक व्यक्ति का अपना बाबा और पालतू  पशु हुआ करता है।
विभिन्न सांस्कृतिक समुदाय पूर्वाग्रह तथा अन्धविश्वास से इस कदर ओतप्रोत रहते हैं कि इनकी वैधता पर किसी तरह का सवाल इन समुदायों को अपने अस्तित्व पर संकट का आभास देता है। वे  ऐसे प्रयासों का सतत प्रतिरोध करते हैं।। कहना कठिन है कि कभी मनुष्य इनसे मुक्त हो पाएगा। इस सम्भाव्यता से इनकार नहीं किया जा सकता कि आदमी मध्य युग के अन्धकार में सुरक्षा की तलाश करेगा।

वैज्ञानिक नजरिया साहसिक होने के साथ साथ समीक्षात्मक भी होता है।, सत्य एवम् नई जानकारी की तलाश करने में, बिना जाँचे परखे, किसी भी चीज को स्वीकार करने से इनकार करता है और नए साक्ष्य के उपलब्ध होने पर स्थापित मान्यताओं को बदलने की क्षमता रखता है पूर्व स्थापित सिद्धान्तों की जगह अवलोकित तथ्यों पर भरोसा करता है। यह केवल विज्ञान के उपयोग के लिए नहीं बल्कि स्वयम् जीवन के लिए तथा इसकी बहुत सारी गुत्थियों को सुलझाने में उपयोगी होता है।”

वैज्ञानिक मिजाज विज्ञान के सामान्य कार्यक्षेत्र के परे विज्ञान के चरम प्रयोजनों सौन्दर्य, अच्छाई एवम् सत्य की तलाश करता है। इसकी पद्धति धर्म की पद्धति  के विपरीत होती है। धर्म भावनाओं एवम् मनन पर निर्भरशील होता है और जीवन के हर पहलू पर लागू होता है। उन पहलुओं पर भी जिनकी बौद्धिक पड़ताल एवम् अवलोकन की जा सकती है। धर्म दिमाग को बंद करने की प्रवृत्ति उत्पन्न कर असहिष्णुता, सहज विश्वास एवम् अन्धविश्वास,भावुकता, अतार्किकता को बढ़ावा देता है। वैज्ञानिक मिजाज स्वतंत्र व्यक्ति का मिजाज है। वैज्ञानिक मिजाज वस्तुवाद से परे जाकर सर्जनात्मकता एवम् प्रगति को  प्रोत्साहित करता है। ऐसा समझना सही है कि वैज्ञानिक मिजाज के विस्तार के साथ साथ धर्म का क्षेत्र सिकुड़ता जाएगा। साथ ही उत्तेजक अभियानों और अनवरत आविष्कारों, एवम् जीवनयापन करने की नई नई दृश्यावलियों के उभड़ने से जीवन अधिक पूर्णता विविधता एवम् सम्पन्नता से अलंकृत होता जाएगा।

वैज्ञानिक मिजाज वह नजरिया है जिसमें युक्ति का इस्तेमाल शामिल रहता है। वहस,,युक्ति और विश्लेषण वैज्ञानिक मिजाज के मुख्य अवयव हुआ करते हैं। इसमें निष्पक्षता,समानता और गणतंत्र निहित रहा करते हैं। इसमें स्थापित विचारों पर प्रश्न करना, अवलोकन एवम् प्रयोग के आधार पर सामान्य सिद्धान्तों का सूत्रीकरण और उसके बाद इन सिद्धान्तों का पुनः अवलोकन एवम् प्रयोगों के द्वारा जाँच करना शामिल रहते है।

सार्वभौम मूल्यों का एक केन्द्रीय सार होता है; सच्चे आधुनिक समाज में अनिवार्यतः उपस्थित रहने वाले ये मूल्य-बोध विज्ञान द्वारा उन्नत किया जाते रहते है। ये मूल्य हैं; युक्तिवादिता, सर्जनात्मकता,सत्यान्वेषण, आचारसंहिता का पालन तथा एक प्रकार का रचनात्मक विद्रोह।

भौतिक शास्त्री,  जीव-विज्ञानी और लेखक जैकब ब्रोनोव्स्की ने विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार दी है; ”अपनी जानकारी का इस प्रकार का समायोजन, ताकि वह प्रकृति में छिपी सम्भावनाओं के ऊपर और अधिक अधिकार विस्तार करे।” विज्ञान जानकारियों के उपयोगितामूलक इस्तेमाल से  काफ़ी आगे जाता है। यह सम्पूर्ण विश्व-दृष्टि को प्रभावित करता है — ब्रह्माण्ड-विज्ञान से उन सभी बातों तक, जो हमें मनुष्य बनाती हैं। मूल्य नियम नहीं हुआ करते।   ब्रोनोव्स्की के शब्दों में, ”मूल्य वह आन्तरिक ज्योति हैं, जिनके प्रकाश में न्याय और अन्याय, अच्छा और बुरा, साधन और साध्य रूपरेखा की भयभीत करने वाली स्पष्टता से देखे जाते हैं।”

विज्ञान मौलिकता को महान उपलब्धि का निशान मानता है। किन्तु मौलिकता स्वाधीनता का उप-परिणाम होती है, पाए हुए ज्ञान(received knowledge) से असहमति है। इसे स्थापित व्यवस्था की चुनौती की आवश्यकता होती है; इसका दावा कितना भी ऊँटपटाँग क्यों न मालूम पड़ता हो,  सुने जाने के अधिकार की मान्यता होनी ही चाहिए। शर्त केवल यह होगी कि कठोर पद्धति की जाँच पर यह खरा प्रमाणित हो। स्वाधीनता,मौलिकता, और इसीलिए असहमति — ये ही समसामयिक सभ्यता के प्रमाण-चिह्न हैं। यह तो सर्वमान्य है कि विज्ञान के प्रभावकारी अनुसरण के लिए स्वाधीनता की रक्षा की आवश्यकता होती है। जिज्ञासा की स्वाधीनता के बिना सच्चा वैज्ञानिक शोध नहीं हो सकता। स्वाधीनता के लिए जिन पूर्वोपायों (preconditions) की आवश्यकता होती है, वे स्पष्ट हैं: मुक्त जिज्ञासा, मुक्त चिन्तन, मुक्त कथन, सहिष्णुता तथा विवादों के साक्ष्य के आधार पर विवेचन की प्रस्तुति।  ये वे सामाजिक मूल्य हैं जिनकी रक्षा की ही जानी चाहिए न केवल विज्ञान के अनुसन्धान को प्रोन्नत करने के लिए, बल्कि अधिक सहिष्णु समाज गढ़ने के लिए भी, जो परिवर्तन के साथ अनुकूलन करता है तथा नए का वरण करता है।

क्या ऐसे विचार ग़रीबी और भूख से जूझते हुए, नागरिक द्वन्द्व से टूटते हुए और आर्थिक संकट से त्रस्त समाज में गूँज सकते हैं? नकारात्मक उत्तर की आवाज़ें अभी ही सुनाई पड़ रही हैं। व्यावहारिकता, वास्तविकता और प्राथमिकता— इस असहमति के आधार हैं। पर वे ग़लत हैं। विज्ञान में कल्पना के साथ चलने और भावनाओं को गतिशील करने की क्षमता है। हमें विज्ञान को अपनी संस्कृति के अविच्छिन्न अवयव के रूप में समझना चाहिए, जिससे हमारी विश्व-दृष्टि का निर्माण होता है और जो हमारे आचरण को प्रभावित करता है। इससे भी अधिक, विज्ञान स्वयं भूमण्डलीय आयामों की संस्कृति है अथवा, कम से कम, एक सांस्कृतिक धारा है जो उस समाज को दृढ़ता से प्रभावित करती है जिसमें वह पनपती है। यह ठोस समस्याओं और सैद्धान्तिक चिन्तन में कल्पनाशीलता और दर्शन का योग करता है। कवि विलियम ब्लेक ने कहा था,”आज जो प्रमाणित हो गया है, कभी वह मात्र कल्पना ही था।” कल्पनाशीलता और दर्शन वैज्ञानिक उद्यम के मर्म होते हैं।

चलते चलते —- जीवन मात्र उतना ही नहीं है जितना हमें दिखता है या सुनाई पड़ता है और जिसे हम महसूस करते हैं , दृष्टिगोचर होने वाला विश्व , जिसमें समय तथा स्थान के साथ परिवर्तन होते रहते हैं ; यह लगातार, एक अन्य अदृश्य सम्भवतः अधिक स्थायी अथवा समान रुप से परिवर्तनशील तत्वों के विश्व, से सम्पर्क बनाए हुए होता है; कोई भी चिन्तनशील व्यक्ति जिसकी अनदेखी नहीं कर सकता ।

वैज्ञानिक की दृष्टि तीक्ष्ण और तटस्थ होती है.वह किसी विशेष परिणाम के प्रति आग्रही नहीं होता

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