कल उजाला खुद ही आयेगा।
दीप जले दीवाली हो तो,
होली रंग लगायेगा।
सावन की फुहारें मत ढूंढो,
मधुमास स्वतः छा जायेगा।
बस पतझड़ को जाने तो दो,
मलोज ‘‘मौन’’
होली रंग लगायेगा।
दूर गगन पर रंग है बिखरे,
नदियों में परछाइयां हैं।
दूर खड़े रखोगे खुद को तो,
रास न कुछ भी आयेगा।
जीवन की गहराई इतनी,
सागर छोटा पड़ जायेगा।
मौन समर हर दिन हो तो,
राह खुद दिख जायेगा।
भिड़ जा तू, रंगीन समर से,
मधुमास तुझे तो मिलना है।
जीवन सत पहचान तू, कांटों से आगे बढ़ना,
दीप जलेगें, दीवाली होगी,
होली रंग लगायेगा, उजाला खुद ही आयेगा।
आज उजाला मत ढूंढो,
कल उजाला खुद ही आयेगा।
दीप जले दीवाली हो तो,
होली रंग लगायेगा।
सावन की फुहारें मत ढूंढो,
मधुमास स्वतः छा जायेगा।
बस पतझड़ को जाने तो दो,
मलोज ‘‘मौन’’
होली रंग लगायेगा।
दूर गगन पर रंग है बिखरे,
नदियों में परछाइयां हैं।
दूर खड़े रखोगे खुद को तो,
रास न कुछ भी आयेगा।
जीवन की गहराई इतनी,
सागर छोटा पड़ जायेगा।
मौन समर हर दिन हो तो,
राह खुद दिख जायेगा।
भिड़ जा तू, रंगीन समर से,
मधुमास तुझे तो मिलना है।
जीवन सत पहचान तू, कांटों से आगे बढ़ना,
दीप जलेगें, दीवाली होगी,
होली रंग लगायेगा, उजाला खुद ही आयेगा।
“मौन” जी कविता सुन्दर है, लय भी है, अर्थ भी है,और भाव सभर भी है।अभिनन्दन।
सुन्दर अभिब्यक्ति हार्दिक बधाई ……….