कोरोना पर लगाम के लिए धारा 188 मजबूत ‘हथियार’

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संजय सक्सेना,लखनऊ
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कोरोना संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए लाॅक डाॅउन को लेकर काफी गंभीर है। लाॅक डाॅउन जितना सफल होगा,उतना ही कोरोना का ग्राफ नीचे आएगा। यह बात सब जानते हैं,लेकिन अफसोस इस बात का है कि कुछ लोग यह बात मानने को तैयार नहीं हैं। इसी लिए तो लाॅक डाॅउन को भी धार्मिक रंग दे दिया गया है,जिसका खामियाजा देश सहित प्रदेश को भी भुगतना पड़ रहा हैं,लेकिन योगी सरकार भी हार मानने को तैयार नहीं है। वह लाॅक डाॅउन सफल बनाने के लिए कानून की किताबोें में दर्ज सभी धाराओं का इस्तेमाल कर रही है। ऐसी ही है आरपीसी की धाराए हैं 188, 269 एवं 270। गत दिनों इन्हीं तीनों धाराओं का प्रयोग मशहूर सिंगर कनिका कपूर के खिलाफ हुआ था। लंदन से भारत लौटने के बाद कनिका कपूर लखनऊ में तीन पार्टियों में शामिल हुई थीं। इसमें से एक पार्टी में कई हाई-प्रोफाइल लोग मौजूद थे। कनिका कानपुर भी गई थीं। सिंगर पर आरोप लग रहे हैं कि उन्हें इसकी जानकारी थी कि वह कोरोना पाॅजिटिव हैं और इसके बावजूद वह लोगों को संक्रमित कर रही थीं। गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए कनिका के खिलाफ लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी ने केस दर्ज कराया था। आईपीसी की धारा 188, 269 और 270 के तहत कनिका कपूर के खिलाफ लखनऊ में केस दर्ज है।
सबसे पहले बात धारा 188 की। यह धारा करीब सवा सौ साल से भारतीय दंड संहिता का हिस्सा बनी हुई है। बिटेªन राज से लेकर आज तक इस धारा को हटाया नहीं गया है। यही धारा 188 इस समय पूरे प्रदेश में लागू है और इसके तहत लाॅक डाॅउन तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है। धारा 188 का उल्लंघन करने वालों को पुलिस जेल तक भेज सकती है। क्योंकि पुलिस जानती है कि देश में कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए धारा 188 उसके पास मजबूत हथियार के रूप में मौजूद हैं
दरअसल, 123 पुराना यह कानून महामारी के समय इसको फैलने से रोकने के उद्देश्य से ही बनाया गया था। इसी लिए उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, कर्नाटक और केरल समेत कई अन्य राज्यों ने कोरोना को महामारी घोषित होने के बाद अधिसूचना जारी कर धारा 188 लागू कर दी है। महामारी रोक कानून 1897 में जो प्रावधान हैं उसके अनुसार इस कानून के तहत किसी भी सरकार को शिक्षण संस्थान को बंद करने, किसी इलाके में आवाजाही रोकने और मरीज को उसके घर या अस्पताल में क्वारेंटाइन करने का अधिकार है। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन या सार्वजनिक स्थान से पकड़कर बिना कोई कारण बताये अस्पताल भेजा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति अस्पताल जाने से मना करता है या फिर सामाजिक दूरी बनाए रखने से मना करता है तो महामारी रोक कानून के उल्लंघन करने पर उस व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। धारा 188 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर किसी व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा से खिलवाड़ करता है तो उसे कम से कम छह महीने की जेल और एक हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। इसी कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति अस्पताल या कहीं और से भाग जाएगा तो तब उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाती है।
गौरतबलब हो,किसी भी महमारी से निपटने के लिए महामारी कानून के अलावा भारतीय दंड संहिता में कुछ अन्य प्रावधान भी किये गये हैं, जिसके तहत किसी व्यक्ति के जीवन के जोखिम में डालने पर कार्रवाई की जा सकती है। इसी के तहत आगरा में एक रेलवे अधिकारी पर महामारी फैलाने का पहला केस 15 मार्च को दर्ज किया गया। आजादी के बाद संभवतया यह पहला मामला है जिसमें अपर मुख्य चिकित्साअधिकारी की तहरीर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 के तहत महामारी फैलाने के आरोप में केस दर्ज हुआ है। अगर यह दोष सही पाया गया तो रेलवे अधिकारी को कम से कम दो साल की सजा होगी।
दरअसल, भारतीय दंड संहिता की धार 269 के अनुसार यदि कोई विधि विरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करता है, जिससे किसी रोग का संक्रमण फैलना संभावित है। तो ऐसी दशा में वह व्यक्ति कारावास जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकती है या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाता है। इसी के तहत पिछले महीने मार्च के मध्य में आगरा में एक रेलवे अधिकारी पर महामारी फैलाने का पहला केस दर्ज किया गया। आजादी के बाद संभवतया यह पहला मामला है जिसमें अपर मुख्य चिकित्साअधिकारी की तहरीर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 269 के तहत महामारी फैलाने के आरोप में केस दर्ज हुआ है। अगर यह दोष सही पाया गया तो रेलवे अधिकारी को कम से कम दो साल की सजा होगी। बात भारतीय दंड संहिता की धारा 270 की कि जाए तो इसके मुताबिक, जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोक का संक्रमण फैलना संभावित है। इस अपराध में दो वर्ष की सजा या फिर दंड या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह संज्ञेय अपराध है। आगरा में रेलवे के जिस अधिकारी पर धारा 269 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ,उसके ऊपर धारा 270 भी तामिल की गई थीं।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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  1. जी हाँ कोरोना एक ऐसी माहमारी है जो आज पूर्ण विश्व में व्याप्त होती जा रही है। अतएवं इसका मजबूत प्रबंधन अति आवश्यक है।

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