डाकघर का लौह मुहर देख प्रेमपत्र सिहर उठता

—विनय कुमार विनायक
डाकघर;
एक पूर्ण सरकारी दफ्तर
बाबा आदम युग से पाकर
एक प्यारी मुंहबोली संज्ञा
आज भी कहलाता डाकघर,
यही हकीकत नही माखौल!
डाकघर की जय बोल!

डाकघर की छाती पर,
इस चीक-चाक के दौर में
गौ की घंटी सी टंगी गोल,
चिर भुख्खड़ सा मुंह खोले
अपूर्ण,अतृप्त,अनबोली पेटी,
कहलाती डाकघर का ढोल!
डाकघर की जय बोल!

डाकघर!
प्राचीन परम्परा का रखवाला,
सेफ-संदूक,लॉकर-बंदूक के युग में
बोरे में रुपया भरकर भेजने वाला,
एक डाकघर से दूसरे डाकघर तक
रोकड़ा जाए बिना गार्ड के,
बिना लगाए ताला,रखवाला
डाककर्मी की जय बोल!
डाकघर की जय बोल!

डाकघर में स्नातक/स्नातकोत्तर क्लर्क
करते चपरासीनुमा सा सरकारी वर्क
बंद डाक थैलों को स्वयं ही उलटते,
पलटते-काटते रखते इधर-उधर,
उनको तनिक नहीं पड़ता कोई फर्क!

आज भी अब भी खड़े-खड़े बाबू दीखते
बेतरतीब भॉचरों से भरते पीजन होल!
डाकघर की जय बोल!

डाकघर का लौह मुहर देख
प्रेम पत्र सिहर उठता
धनादेश और बचत पत्र को
यह लौह मुहर बेरहमी होकर
यूं कूटता जैसे कद्दू परोल
या भुर्ता हेतु ओल,
डाकघर की जय बोल!

शाखा डाकपाल प्रोन्नति पाकर
चपरासी, पोस्टमैन बन जाता!
निरीक्षक और सहायक अधीक्षक
प्रोन्नति पाकर हेड क्लर्क और
बड़ा बाबू का पदवी पा जाता!
और यह कि डाक अधीक्षक भी
समकक्ष वरीय डाकपाल बन जाता,
कैसा उलटा है माहौल
डाकघर की जय बोल!

डाकिया बूढ़ा होकर ओभरसीयर
यानी भ्रमवश जूनियर इंजीनियर
कहलाने का आंतरिक सुख पाता,
विधायक-सांसद के चुनाव में
मजिस्ट्रेट का ड्यूटी निभाता
यही हकीकत नहीं ठिठोल,
डाकघर की जय बोल!

डाकघर का क्लर्क
पोस्टल एसीस्टेंट यानि पीए कहलाता,
दसवर्षा, बीसवर्षा, तीसवर्षा प्रोन्नति पाकर
क्रमशः एल एस जी/लोअर सेलेक्सन ग्रेड
यानि ‘निम्न प्रवरण कोटी’ सहायक बन जाता
अलबत्ता, सहायक से निम्न प्रवरण कोटि सहायक

फिर एच एस जी टू/हायर सेलेक्सन ग्रेड टू
यानि दोयम दर्जे का उच्च प्रवरण कोटी के
सहायक का दर्जा पा लेता!

पुनः एच एस जी वन/हायर सेलेक्सन ग्रेड वन,
यानि उच्च प्रवरण कोटी के परले सिरे का
सहायक या डाकपाल पदनाम हो जाता!

वैसे डाक सहायक/पोस्टल एसीस्टेंट,
नायब डाकपाल/सब पोस्टमास्टर,
सहायक डाकपाल/एसीस्टेंट पोस्टमास्टर,
उप डाकपाल/डिप्टी पोस्टमास्टर
और डाकपाल/पोस्टमास्टर के पदनाम में
अंतर कर पाना जनता के लिए कठिन काम!

आज कोई नायब/सहायक/उप/डाकपाल पदधारी
कल कोई उसका समवर्गी वरीय सीनियर क्लर्क के
योगदान कर लेने पर बिना किसी कारण के
वह पदच्युत होकर पीए यानि सहायक हो जाता!

डाक विभाग में सीधे क्लर्क ग्रेड में
जो बहाल हुए वे ‘पीए’ हालत में आए,
‘पीए ‘हालात में रहे साठ वर्षों तक कार्यरत,
साठ वर्ष की समाप्ति पर ‘पीए’ ही चले गए!

डाक विभाग की ऐसी घोर उपेक्षा में,
डाक सहायक की सामाजिक प्रतिष्ठा में,
प्रोन्नति पदनाम में नहीं कोई आकर्षण,
फिर उनसे निष्ठा की पराकाष्ठा की
कोई उम्मीद करना बेईमानी नही क्या?
फिर भी डाक सहायक होते,
निष्ठावान अनमोल!
डाकघर की जय बोल!

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