स्वानुभव : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

जीवन का मतलब केवल संग्रह, प्रतिष्ठा या भौतिक प्रगति ही नहीं है।

हमें सब कुछ मिल जाये, लेकिन जब तक हमारे पास शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक शान्ति रूपी अमूल्य दौलत नहीं है, तक तक मानव जीवन का कोई औचित्य नहीं है।

सच्चे स्वास्थ्य तथा शान्ति के लिये मानसिक तथा शारीरिक तनावों से मुक्ति जरूरी, बल्कि अपरिहार्य है।

तनावों से मुक्ति तब ही सम्भव है, जबकि हम सृजनशील, सकारात्मक और ध्यान के प्रकृतिदत्त मार्ग पर चलना अपना स्वभाव बना लें।

ध्यान के सागर में गौता लगाने वाला सकारात्मक व्यक्ति आत्मदृष्टा, आत्मपरीक्षक, स्वानुभवी एवं स्वाध्यायी बन जाता है और तनाव तथा हिंसा को जन्म देने वाले घृणा, द्वेष, प्रतिस्पर्धा, कुण्ठा आदि नकारात्मक तत्वों को निष्क्रिय करके स्वयं तो शान्ति के सागर में गौता लगाता ही है, साथ ही साथ, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने सम्पर्क में आने वालों के जीवन को भी सकारात्मक दिशा दिखाने का माध्यम बन जाता है।

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय श्री पुरोहित जी आपके स्नेह, समर्थन और दिग्दर्शन के लिए हार्दिक आभार. आशा है की आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  2. आपका सम्वेदन शील मन जीवन की गहरायीयो को “काव्य” रुप मे उतारने को बैचेन है क्रिपया थोडा इस पर भी प्रयत्न करे तब तक के लिये जीवन पर मेरे चिन्तन की एक स्व्रचित कविता आप के जीवन चिन्तन को भेंट…………….
    :
    क्या जीवन ! यंत्रवत चलते रहना???
    भोतिकी में दिन भर खपना,रात्रि में करना उसका चिंतन!!
    नश्वर-नस्ट होने वाली वस्तु के पीछे घुमते जाना यु ही उम्र भर|
    अंत समय में कहना ,गर्व से छोड़ा मेने पीछे अपने ,बंगा पुत्र-परिवार||
    जीवंत-चेतन्य खोजता जड़ को,महामाया के चक्र ,पिसना हें जीवन?
    या शांति पाने जाना मंदिर बाबा का,लोटकर लगाना फिर काम यंत्रणा का??

    शुचिता,सात्विकता विनम्रता नहीं |
    आडम्बर भ्रष्टता विकृति जीवन ||

    नवीनता के लिए छोड़े जो संस्कृत |
    समाज जीवन हो केसे सुसंस्कृत ||

    धन धन धन पाना जहा हें सुख |
    ए चाहे कही सधन हो तो कहे का दुःख ||

    धन लेन की जुगत में,चिंतन को कुंद किया
    सत्य का दम तोड़,असत्य आचरण किया||

    नेतिक मूल्यों से पतित पूरा राष्ट्र जा रहा रसातल,
    कह रहा इसको देखो हमारा Developments
    professionalism कर रहा दुषित मन जीवन भाषा,
    तोल रहा अपना ,उन्नत हुवा जीवन स्तर||

    वस्तुए करती सभ्यता को उन्नत,तो भगवान राम नहीं रावण होता|
    जय श्री कृष्ण नहीं कंस जय गान होता||

    जीवन नहीं मादकता में डूबना|
    जीवन नहीं कामोपभोग मापना||
    जीवन नहीं संगृह करना धन को|
    जीवन नहीं बढाना मात्र परिवार को अपणे||

    जीवन तो चलना संवित पथ पर,जीवन चलना संघ मार्ग पर,
    जीवन तो जीना ध्येय अनुसार,ज्ञान के मार्ग पर||
    प्रकाश के आंगन पर चेतन्य्वत निरंतर

    भा” में रत “रत” भारत……………….

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