रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है आत्मनिर्भरता

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डॉ. शंकर सुवन सिंह

हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूप (प्रतीक) के तौर पर किया जाता है। रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी। गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। आत्मनिर्भर भारत की नींव गांधी के रामराज्य पर टिकी थी। गाँधी का स्वराज्य, रामराज्य की परिकल्पना का आधार था। स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो। यही स्वराज्य रामराज्य कहलाता है। स्वराज का तात्पर्य स्वतंत्रता से है। आत्मनिर्भरता स्वतन्त्रता का मूल है। बिना आत्मनिर्भर हुए स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है। कहने का  तात्पर्य यह  है कि रामराज्य वो शासन है जिसमे सभी स्वतंत्र होते हैं। ऐसी स्वतंत्रता जिसमे धर्म और रंग भेद के आधार पर विषमता न पैदा की जाए। यही स्वतन्त्रता गाँधी का रामराज्य कहलाया। गांधी का रामराज्य सत्य और अहिंसा पर आधारित था। गांधी के रामराज्य को व्यवहार में उतारना होगा। सत्य और अहिंसा को आचरण में उतारने की जरुरत है। गांधी की विशेषताओं को रामराज्य का आधार बनाना होगा। रामराज्य लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है। हिंदुस्तान संस्कृति और संस्कारों की धरती रही है। यहां २५०० ईसा पूर्व ऋग्वेद की रचना हुई। योग के जनक महर्षि पतंजलि थे। योग हजारों वर्षों पुरानी पद्वति है। आज कल के जनप्रतिनिधि धर्म की आड़ में इन पुरानी संस्कृतियों का दुरूपयोग कर भारतीय संस्कृति को राजनीति का हिस्सा बना दिए हैं। हिन्दुस्तान को गांधी का रामराज्य चाहिए। राजनैतिक पार्टिया वोट को साधने के लिए राम राज्य का सहारा लेती हैं। राम राज्य भगवान् राम के पुरुषार्थ और शासन का द्योतक है। भगवान् राम सहिष्णुता के प्रतीक थे। राम सत्य के प्रतीक थे। तभी तो भगवान् राम ने रामराज्य स्थापित किया था। आज राजनैतिक पार्टियों ने भगवान् राम, कृष्ण, हनुमान, मोहम्मद पैगम्बर, ईसा मसीह आदि को वोट बैंक का आधार बना लिया है। अतएव अब राम राज्य का पतन हो चुका है। आज आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात हो रही है और वहीँ दूसरी ओर विदेशी कम्पनियाँ और विदेशी सामान की हिन्दुस्तान में बाढ़ आ गई है। प्रत्येक संस्था का निजीकरण होता जा रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है। आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। यदि आत्मनिर्भरता, स्वतन्त्रता, स्वावलम्बन, स्वाभिमान की बात करनी हो तो गांधी के रामराज्य की कल्पना करनी होगी। अतएव हम कह सकते हैं कि आत्मनिर्भरता, गांधी के रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित होनी चाहिए। सभी राजनैतिक पार्टियों को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों को आत्मसात करने की जरुरत है। वास्तव में भारत आत्मनिर्भर तभी बन पाएगा।

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

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