स्वत्व , समाज व विश्व!


हर समूह या समाज में हमें कुछ उत्तरदायित्वों व अनुशासनों को निभाना होता है। बीच में काफ़ी भटकाव आते हैं पर हमें उन्हें पार करना होता है। 
हमारा सबका प्रयास होना चाहिए कि हम पहले स्वयं सुलझें, उचित अनुचित को पहचानें व वह लिखें या बोलें जो समूह या समाज के उद्देश्य व गरिमा को देखते हुए दूसरों को बताना आवश्यक व उपयोगी हो! 
कई वार हो सकता है कि कुछ चीजों में हम अपनी जगह सही हों पर फिर भी हम किसी को अपना मंतव्य ज़ोर ज़बरदस्ती से ना ही कह सकते हैं और ना ही मनवा सकते हैं! व्यक्तिगत बात कर सकते हैं यदि वह व्यक्ति करना चाहे! समूह या समाज में तो बिल्कुल भी यह नहीं किया जा सकता है। परिवार में भी आज हम किसी बात को ज़बरदस्ती नहीं करा सकते। ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक विचार विभेद, विमर्श, तनाव या टकराव न हों! 
हर व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक यात्रा में उत्तरोत्तर अग्रसर है। कोई आगे है कोई पीछे, पर सब अपनी अपनी जगह महान हैं। हम किसी को कुछ कह नहीं सकते। वह अपने आप अपनी स्थिति से एक दिन आगे की अवस्था में चला जाएगा। यदि वह पूछें तो ज़रूर बता दो पर उतना ही जितना पूछें या चाहे। ज़्यादा भी नहीं कम भी नहीं- यथायथ। 
यदि हम समझते भी हैं कि हम ज्ञानी हैं तो भी किसी को न अज्ञानी कह सकते हैं और न उसे अज्ञानी समझ सकते। विचित्र सा विश्व है उनका और हर अस्तित्व के स्वत्व अनूठे, अनुपम और अभिनव हैं! सब अपनी अपनी मस्ती में हैं और अपने उनके आत्मीय प्रेम में ऐसे लगे हैं कि उन्हें किसी का हस्तक्षेप या देखना हरगिज़ भी पसन्द नहीं! 
किसी अवस्था में किसी को मूर्ति में परमात्मा नज़र आ रहे हैं, किसी को ध्यान में, किसी को ग्रंथों की ऋचाओं में तो किसी को विश्व प्रबंधन में! अपनी अपनी अवस्था है, पर फिर भी कोई किसी को कुछ कहे यह उचित नहीं और न ही समाज व क़ानून उसे कहने देता। उनकी अपनी अपनी आस्था व अवस्था है, जब तक वह है, है! जब नहीं रहेगी तब नहीं रहेगी! चाहे वह एक अवस्था से दूसरी में आने पर सोचे कि वह उस अवस्था में क्यों था! 
अपने मन को बृहत कर दूसरे के मन में सूक्ष्म भाव से प्रवेश करना ज़्यादा आसान व उपयुक्त है। मनस्वी लोग अपनी कुल कुंडली उठा कर केवल संकल्प या विचार मात्र से या ध्यान द्वारा  दूसरों के मन को बदल सकते हैं। यह सूक्ष्म स्तर की कौल क्रिया है। 
उससे भी आगे की अवस्था है कि महा- कौल किसी भी व्यक्ति, समाज, विश्व या ग्रह को संकल्प मात्र से बदल सकते हैं। वह करना उनके लिए एक सहज आध्यात्मिक क्रिया है पर करते तभी हैं जब उनकी नज़र में उस पात्र में परिपूर्णता व परिपक्वता होती है और जब उसका सही समय होता है! 
हर व्यक्ति, समाज, देश व ग्रह अपने अपने ढंग से पनप रहा है, उत्तरोत्तर उन्नति की ओर अग्रसर है। हर पात्र व समाज में बहुत सी अच्छाइयाँ है, कुछ बुराइयाँ हैं। बहुत सी बुराइयाँ भी प्रगति की धूल या प्रदूषण हैं। अच्छाइयाँ भी कुछ बुराइयों की जननी हैं। 
कनाडा में तो अपने बच्चे को भी चाहे वह कितनी भी शैतानी बचपन में करे आप ज़ोर से कुछ नहीं कह सकते। थप्पड़ लगाना तो बहुत दूर की बात है। ऐसा करने पर आपको जेल भेजा जा सकता है और बच्चे को सरकार ले जा सकती है क्यों कि आप उनकी नज़र में बच्चा पालना नहीं जानते! बच्चे का महत्व उतना ही है जितना बड़ों का बल्कि कुछ ज़्यादा ही है। 
कनाडा, इत्यादि में कोई जाति धर्म मज़हब पढाई लिखाई छोटे बड़े का भेद नहीं है। आपको आवेदन करते समय अपनी जन्मतिथि, लिंग, पिता माँ का नाम, आदि नहीं देना होता है। वह इसलिए जिससे कि उनके आधार पर आपके साथ कोई भेद या अन्याय न करे। ७३ या ८३ वर्ष की उम्र में भी पेंशन लेते हुए भी आप कार्य, व्यापार , आदि कर सकते हैं। 
यहाँ सब परस्पर समान व्यवहार करते, नियम पालन करते व परस्पर सहयोग करते नज़र आते हैं। जाति, प्रजाति, मज़हब, छोटे बडे, गरीब अमीर, मालिक नौकर, ऑफ़ीसर बाबू या मज़दूर के भेद नहीं हैं। सब कमाते खाते हैं, व्यस्त व स्वस्थ रहते हैं, बहस करने या तर्क करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और न समय होता। मकान गाड़ी आसानी से हर कोई ले सकते हैं। जो काम करना चाहते हैं उनके लिए बेरोज़गारी प्राय: नहीं के बराबर है। 
समूह या समाज में केवल दूसरों के दोष निकालने, किसी को उनके धार्मिक विश्वास के प्रति अन चाहे सलाह देना, जातियों वर्गों समाजों या राजनैतिक दलों या देश के प्रतिष्ठित पदों पर पदासीन लोगों की बुराई करना, अपनी पसन्द को दूसरों पर ज़बरदस्ती थोपना, अपने पसंदीदा राजनैतिक दल का अनावश्यक प्रचार प्रसार, इत्यादि उचित नहीं है। सब अपने आप में स्वतंत्र हैं, स्वाधीन हैं व समझदार हैं, हम उनको सिखाने समझाने वाले कौन हैं! 
यदि हम केवल पर उपदेश ही दे रहे हैं तो हम परिपक्व नहीं हुए और हमारा मानसिक व आध्यात्मिक विकास अभी अधूरा है! 
अपना शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नयन कर समाज व समूहों पर अपने मौलिक विचार, अनुभव, अनुभूतियाँ, जीवन तथ्य व जीवनी बता कर दूसरों को प्रेरित करना व आनन्द देना परस्पर लाभकारी होगा। ऋणात्मक से धनात्मक भाव में सोचना व करना ज़रूरी है। 
आप अपने मन से ही अपने को गिराए हुए हैं और दीन हीन बन कर भीख माँगते हैं या दूसरों की बुराई करते हैं! मन को उठाइए और विश्व का ताज पहन लीजिए! 
अंधकार को हटाने के लिए प्रकाश की चिंगारी जलानी है! अंधकार को गाली देने से उसकी बुराई करने से कुछ नहीं होना। आग भी अमावस को लगानी है, पूनम के पखवाड़े में नहीं! अपनी शक्ति सामर्थ्य कर्म व सेवा करते हुए बढ़ानी है। उससे स्वयं प्रकाश उमगेगा और बहुत सी तमसा उसी से परास्त हो जाएगी! 
आप अपना प्रकाश पुँज फैलाइए, तेज चमकाइए, साहित्य की रोशनी फेंकिए, अध्यात्म की द्युति दमकाइए और सृष्टि को अपनी समझ उसकी रग रग को सहलाइए! सब आपके अपने हो जाएँगे, सराहेंगे, गले लगाएँगे व पुष्प मालाओं से आपका स्वागत करेंगे! 
✍?  गोपाल बघेल ‘मधु’

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