स्‍वफिल दुनिया की तस्‍वीरें

 पंडित विनय कुमार

स्‍वफिल दुनिया की तस्‍वीरें
हमारी आँखें के सामने से
बार-बार गुजरती हैं
और मेरे भीतर की थकान की रफ्तार
भी तीव्रता होती जाती है
जिसे मैं रोज-रोज केवल अनुभव
करता हूँ
केवल उसे अपने साथ जीने अथवा साथ-साथ ले चलने की
नियति बन गई है मेरी
नियति-जिसे मैंने खुद बनाई है
अपने कर्मों से
अपने विचारों से
अपने संस्‍कारों से
नहीं- नहीं, यह बनी है
परंपराओं और प्रथाओं से
विभिन्‍न पर्वों और व्‍योहारों से
जो अनावश्‍यक है
जो केवल
हमारे भीतर स्‍वार्थ और घृणा के
भाव पैदा करता रहा है सदियों से
सदियाँ-जो बार-बार हमारे भीतर
कभी नहीं खत्‍म होने वाली थकान
की लंबी फेहरिश्‍त नियति स्‍वरूप
दे गयी है
सदियाँ –बीतती जाती हैं
हमारे भीतर के विकराल आतंकवाद, घृणा, अलगाववाद और एक नई दिशा शून्‍यता-
बार-बार भीतर के अकेलेपन को जन्‍म दे रही है
वह अकेलापन-
जो सृष्टि का विनाशक तत्व है
जो जीवन का नियामक तत्व है
जो हर्ष-उल्‍लास का संवाहक है
वे परंपराएँ सर्वनाश का कारण बन रही हैं
हाँ क्‍योंकि अभी भी असमानताऍं सर्वज फैली-पसरी हैं
ईश्‍वराधन के रूप
विभिन्‍न पंथों के इतिहास
हमारे कर्मों की रँगीन कल्पनाएँ
कुछ पूछ रही हैं हमसे
अपने अनुत्तरित सवाल
वह जातीयता,धर्मान्‍घता , भीतर का अलगाववाद और क्षेत्ीयता आखिर क्‍यों है?
क्‍यों हमारा धर्म, हमारा इतिहास, हमारे धर्मग्रन्‍थ–
जीवन में आनंद का रस क्‍यों नहीं घोल रहे?
जीवन का विषाद-
हमें क्‍यों पुकार-पुकार कर सँभलने का संदेश देता दिख रहा है?
हमारे आस-पास आनंद, उल्‍लास और आशामयी संसार की कनक किरणें हैं,
जो रँगीन स्‍वफिल दुनिया का सृजन कर रही हैं जो क्षणिक है
क्षणभंगुर है
अस्‍थायी है
और नश्‍वर भी तो है !
हम किस राह से चलें अपने गन्‍तव्‍य तक?
कौन बतलायेगा हमें?
हम तलाश रहे हैं इसके उत्तर
हर दिन हम पहुँच रहे हैं अवसान की ओर
जहाँ रोज-रोज जीवन के अनुभव हमसे प्रश्‍न करते हैं
रोज-रोज खींची जाती है जीवन की लक्ष्‍मण-रेखा
जिसे हर किसी को पार करना है
उसे पार करना हमारी नियति भी है और जरूरत भी समय के रक के पहिए सकेंगे नहीं नहीं रुकेगा विचारों का प्रवाह हमें तलाशने होंगे उत्तर शीघ्रता के साथ ।

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