प्रवक्ता डॉट कॉम : मीडिया एवं राष्ट्रीय सुरक्षा पर 19 नवंबर 2016 को सेमीनार

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प्रवक्ता डॉट कॉम के 8 वर्ष पूरे होने पर संगोष्ठी

 

प्रेस-विज्ञप्ति

दिल्ली :  प्रवक्ता डॉट कॉम के सफलतम आठ साल पूरे होने पर नई दिल्ली के स्पीकर हॉल, कांस्टिट्यूशन क्लब में 19 नवंबर को एक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। मीडिया एवं राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर होने वाली इस संगोष्ठी की अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक श्री के.जी.सुरेश करेंगे । शनिवार को शाम साढ़े चार बजे होने वाले इस सेमीनार  में प्रख्यात स्तंभकार श्री शंकर शरण, एम.यू.जे. (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रासबिहारी, सुप्रसिद्ध पटकथा लेखिका सुश्री अद्वैता काला एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री अनंत विजय अपने बहुमूल्य विचार रखेंगे। सेमीनार का संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के स.प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय करेंगे। प्रवक्ता डॉट कॉम के संपादक संजीव सिन्हा एवं प्रबंध संपादक भारत भूषण ने यह जानकारी दी।

2 COMMENTS

  1. आज हम बाजार के युग में जी रहे है. आज आप पैसे से करीब करीब सब कुछ खरीद सकते है. आप चाहते है कि आप फ़्लाइट से दिल्ली में उतरे और हजारों लोग आपके स्वागत में आ जाए तो आपके पैसे से वे आ जाएंगे, आपकी तारिफ में पत्रिकाएं रंग जाएगी. आज हम बाजार के युग से बाजार के समाज में परिवर्तित हो गए है. व्यापारी, मीडिया, बुद्धिजीवी, सामाजिक संस्थाए सब बिकाऊ हो गई है. इस का सबसे बड़ा प्रभाव मिडिया पर पड़ा. विदेशी धन से बहुत सारे टीवी चैनल खुले और वे अपने मालिको के हित के लिए खुल कर भारत की राष्ट्रवादी धार का विरोध करने लगे. इतना ही नही वे भारत के विकास का विरोध करने लगे. भारत के निजी क्षेत्र का विरोध एवम मल्टीनेशनल का संरक्षण करने लगे. भारत में धार्मिक एवं जातीय अंतर्विरोध बढ़ाने का काम करने लगे. भारत के सुरक्षा से सम्बंधित गोप्य जानकारियां सार्वजनिक करने लगे. नक्सली आतंकियों को संरक्षित करने लगे. इस काम में सागरिका घोष, राजदीप सारदेशाई, शेखर गुप्ता, विनोद दुआ, मधु त्रेहान,बरखा दत्त, प्रशांत झा, रवीश कुमार, गिरीश निकम जैसे लोग ने तो इस प्रकार से समाचारों का सम्प्रेषण करने लगे जैसे वे भारत को टुकड़ो में बाँट देने की योजना पर काम कर रहे हो. लेकिन वे भूल गए की सब कुछ बिकाऊ नही होता. लोगो की राष्ट्र के प्रति निष्ठा बिकाऊ नही होती. लोगो ने उन्हें सिरे से नकार दिया.

  2. इसबार Surgical Strike, OROP, demonetization प्रकरण में Left-Liberal पत्रकारों ने जो रवैया दिखाया है उसने आम लोगो को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया है. वास्तव में इंदिरा के बाद भारत में वही पत्रकार पोषित हुए जो प्रकारान्तर से देश को विभाजित और कमजोर करने वाली नीतियों का पोषण करते थे. देशभक्त पत्रकारों में ऐसे लोगो की कमी है जो विषय को गहरे से समझते हो तथा क्षणिक धार्मिक उन्माद फ़ैलाने से बचते हो. सही मायनों में देशभक्त पत्रकारों की एक नस्ल को फलने फूलने का अवसर मिलना चाहिए.

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