भुखमरी के प्रति संवेदनाशून्य होता वैश्विक समाज

राकेश कुमार आर्य

आज की तथाकथित सभ्य दुनिया के लिए यह बहुत ही दुखद और आश्चर्यजनक है कि जब धरती के कुछ मुट्ठी भर लोग आसमान से बातें कर रहे हो तब इस भूमंडल पर ऐसे करोड़ों लोग कीड़े मकोड़ों की भांति अपना जीवन यापन करने के लिए विवश हैं जिन्हें भुखमरी की अवस्था में रखकर गिना गया है। संयुक्त राष्ट्र की भूखमरी से संबंधित रिपोर्ट के आंकड़े बहुत ही चौंकाने वाले हैं । जिसके अनुसार इस भूमंडल पर इस समय लगभग 85 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे हैं जो भुखमरी का शिकार है । रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी की अवस्था में जीवन यापन कर रहे इन लोगों में सबसे अधिक भारतीय हैं । जिनकी संख्या करीब 19.58 करोड़ है । यदि भारत की इस जनसंख्या पर विचार किया जाए तो ऐसे कई देश इस जनसंख्या में आ जाएंगे जिनकी कुल जनसंख्या एक डेढ़ करोड़ तक ही है । अकेले भारत में भुखमरी की यातना सह रही लोगों की इतनी बड़ी जनसंख्या का होना निश्चय ही हमारे लिए दुखद है । 71 वर्ष की आजादी की यात्रा के समय के लंबे काल में हम लगभग 20 करोड़ लोगों को तो यह आभास भी नहीं करा पाए हैं कि देश आज स्वतंत्र है । उन्हें नहीं पता कि आजादी क्या होती है ? -और गुलामी क्या होती है ? आजादी का सूर्य वे आज तक देख नहीं पाए या कहिए कि आजादी का सूर्य कैसा होता है वह इसे 71 वर्ष पश्चात भी समझ नहीं पाए हैं ? – देश में भुखमरी के शिकार इन लोगों की जनसंख्या में थोड़ी और जनसंख्या जोड़ दें तो यह जनसंख्या लगभग उतनी ही है जितनी भारत की आजादी के समय इस देश की कुल जनसंख्या थी। इसके उपरांत भी न केवल भारत में अपितु संसार के अन्य देशों में भी लोग अपने साथ या अपने इर्द-गिर्द रहने वाले भुखमरी के शिकार लोगों को देखकर पिघलते नहीं। लगता है कि लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं और किसी को किसी की चिंता इस भागदौड़ भरे,मारामारी और आपाधापी के काल में नहीं है।सभी को अपने – अपने स्वार्थों की चिंता है ।ऐसी मानसिकता को देख कर नहीं लगता कि हम लोकतांत्रिक विश्व में जी रहे हैं , अपितु यही कहा जा सकता है कि हम व्यक्तिवादी मानसिकता से प्रेरित पूंजीवादी लोकतंत्र में जी रहे हैं। जिसमें व्यक्ति को मरने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है और कहा जाता है कि प्रतियोगिता की दौड़ में जो जहां गिर जाए वह उसका अपना भाग्य है , जो जहां गिर गया उसकी और देखो मत और आगे बढ़ जाओ। ऐसी संवेदनाशून्य इस वैश्विक व्यवस्था को आप क्या कहेंगे ? – निश्चय ही यह स्थिति हमारे सभ्य होने पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गत वर्ष विश्व में भूखे लोगों की संख्या जहां 81 करोड़ 85 लाख थी , वही इस वर्ष तीन करोड़ 80 लाख की इसमें वृद्धि हुई है और अब यह संख्या बढ़कर ₹85 करोड़ 30 लाख है। इसका अभिप्राय है कि भूखमरी को समाप्त करने के वैश्विक स्तर पर होने वाले तत्संबंधी समारोहों या आयोजनों में वैश्विक नेताओं के द्वारा गला फाड़ फाड़कर की जाने वाली घोषणाएं केवल घोषणा मात्र हैं । इन पर कुछ भी व्यावहारिक रूप से किया नहीं गया है। मानवता के प्रति अपराध करते हुए वैश्विक मंच सजाए जाते हैं और उन पर बड़े बड़े शाही खर्चे वाले समारोह आयोजित किए जाते हैं। जिनके परिणाम केवल यह निकलते हैं कि जिनके लिए कुछ किया जाना होता है उनके लिए कुछ भी नहीं किया जाता। इसके विपरीत उनके नाम पर भव्य समारोहों का आनंद उठाने का कुछ लोगों को अवसर उपलब्ध हो जाता है। कुछ लोगों की दृष्टि में इस वैश्विक भुखमरी के लिए प्राकृतिक प्रकोप ही उत्तरदायी हैं । कुछ लोग इसी दृष्टिकोण के चलते अपने भाषणों में जलवायु परिवर्तन और विश्व के अनेकों भागों में हो रहे हिंसक संघर्ष को केंद्रित कर इन्हीं कारणों को भुखमरी के लिए उत्तरदायी ठहरा देते हैं , परंतु ऐसा नहीं है । अधिकतर उन धनी और सम्पन्न लोगों ने भी विश्व में भुखमरी को फैलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है , जो गरीबों के अधिकारों का शोषण करते हैं। उनका दलन और दमन करते हैं और उनके हिस्से के धन को डकार जाते हैं ।यदि इस विषय पर थोड़ा सा गंभीरता से हम विचार करें तो वर्तमान में विश्व में जो चिकित्सा प्रणाली काम कर रही हैं यह ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो अधिकतर लोगों को कंगाल कर चुकी हैं । लाखों – लाखों रुपया और कभी कभी तो करोड़ों में भी व्यक्ति से खर्च कराए जाते हैं और इसके उपरांत भी उनका रोगी दम तोड़ जाता है । अकेली चिकित्सा ने हीं लाखों लोगों को कंगाल कर के रख दिया है । ऐसे कितने ही प्रकरण हैं जब किसी अपने प्रियजन या परिजन का उपचार कराते कराते लोगों की जमीन – जायदाद , घरबार आदि सब बिक गये । उसके उपरांत भी उन्हें रोगी सकुशल अपने हाथों में नहीं मिला। ऐसे भी उदाहरण हैं कि जब सरकारी अस्पतालों में रोगियों को स्थान नहीं मिल पाया तो उन्हें बाध्य होकर निजी चिकित्सकों से अपना उपचार कराना पड़ा ,जहां जाकर उनके कपड़े तक उतार लिए गए । इतना ही नहीं ऐसे भी प्रकरण हैं जब रोगी से केवल धन ऐंठने के लिए उसका उपचार भी गलत किया गया । ऐसी पाशविक व्यवस्था को आप क्या कहेंगे ? चारों तरफ पैसे के लिए ऐसे ही घृणास्पद हथकंडे अपनाए जा रहे हैं । ऐसे में केवल प्राकृतिक आपदाओं को ही इस वैश्विक भुखमरी का एकमात्र कारण नहीं कहा जा सकता । हमारा मानना है कि मानवीय सोच में आयी इस गिरावट को भी एक महत्वपूर्ण कारण माना जाना चाहिए। हम सब इसी प्रकार की मारामारी और आपाधापी का शिकार हैं। जिसमें सब की दृष्टि में केवल धन है और धन की आपाधापी और मारामारी में जो व्यक्ति हमसे जहां छूट जाता है ,गिर जाता है या पीछे जाता है ,हम उसे वहीं छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं। संभवत: ऐसा व्यवहार तो पशु भी अपने साथियों के साथ नहीं करते हैं। वह भी पीछे रहने वाले अपने साथी के लिए रुदन करते हुए, दुख प्रकट करते हुए या कष्ट अनुभव करते हुए देखे गए हैं। पता नहीं मानव अभी और कितना गिरेगा ? संयुक्त राष्ट्र की पांच प्रमुख एजेंसियों के अध्यक्षों ने संयुक्त रूप से उपरोक्त रिपोर्ट को लिखते हुए कहा है कि यदि हम अभी भी नहीं संभले तो यह भुखमरी की भयावह स्थिति संसार के लिए खतरे की घंटी सिद्ध हो सकती है। इन पांचों ने यह भी कहा है कि बहुत हो चुक ,अब और सहन करना संभव नहीं है। यह खतरे की घंटी है जिसे हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए और अधिक अनसुना नहीं कर सकते। यदि अब भी हम बहरे बने रहे तो भविष्य की पीढ़ियां हमें कभी भी क्षमा नहीं करेंगी। इन पांचों ने स्पष्ट रूप से यह भी चेतावनी दी है कि जब तक हम मिलकर खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले कारणों को समाप्त करने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक 2030 तक संसार से कुपोषण समाप्त करने का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार संसार में भुखमरी और कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की संख्या सबसे अधिक हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों में है । यह अलग से कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह वह क्षेत्र है जहां क्रय शक्ति सबसे कम है। वास्तव में भुखमरी का वास्तविक संकट संसार की बहुत बड़ी जनसंख्या की क्रय शक्ति का निरंतर कम होते जाना है। दक्षिणी सूडान इसका ज्वलंत उदाहरण बताया जा सकता है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन, अंतर राष्ट्रीय कृषि विकास कोष , बाल विकास कोष ,विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मिलकर तैयार की गई है । खाद्य एवं कृषि संगठन की वरिष्ठ अर्थशास्त्री सिंडी हॉलमेन ने रिपोर्ट पर कहा है कि भुखमरी विकराल रूप ले रही एक वैश्विक समस्या है । इससे लोगों का स्वास्थ्य और जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । यह बड़ा संकट है इस से मिलकर निपटना होगा ।निरंतर परमाणु युद्ध के लिए तैयारी कर रहे विश्व नेताओं की सोच और हथियारों के लिए मच रही भागदौड़ को देखते हुए नहीं लगता कि हमारे विश्व नेता इस वैश्विक समस्या की ओर गंभीरता से कुछ सोच पाएंगे या कर पाएंगे ।वैसे भी घोर भौतिकवाद का परिणाम भयंकर युद्ध से मानवता का विनाश हो जाना ही होता है । हम सर्वनाश से पहले दिख रही विनाश की विभीषिका के लक्षणों के रूप में वैश्विक भुखमरी को समाप्त करने की ओर यदि सचमुच कुछ कर पाते हैं तो हम बड़ी समस्या से मुक्त हो सकते हैं ।

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