सात फेरे – आठ वचन

-कुलदीप प्रजापति-

bal vivah

बांध रही हूँ जीवन को रिश्तो के पक्के धागों से,
प्रियतम वचन निभाना अपने मुकर न जाना वादों से,

अंजुरी से अंजुरी थाम कर फेरा प्रथम मैं लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
दान, धर्म, तीरथ,कोई पुण्य मेरे सात करोगे तुम,
वचन अगर मंजूर हैं फिर दूजे में पैर मैं धरती हूँ,
स्वीकार मुझे हैं वचन तुम्हारा जीवन के प्रतिभागों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।१।
अलियों की गालियाँ छोडूं दूजा फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
अपने मात-पिता सम मेरे मात-पिता समझोगे तुम,
करो अगर स्वीकार तो तीजे वचन को आगे बढ़ती हूँ
स्वीकार मुझे हैं वचन तुम्हारा प्रतिकूल संवादों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।२।

 

छोड़ के माँ का आँचल अब मैं तीजा फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
अपने कुल का पालन-पोषण, गाय धर्म भी करोगे तुम,
विनत ये स्वीकार करो तो चौथी सीढ़ी चढ़ती हूँ,
स्वीकार मुझे है वचन तुम्हारा अंतर्मन की बातों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।३।

 

उस घर मर्यादा से जुड़ चौथा फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
आय-व्यय को ध्यान में रखकर पैसा खर्च करोगे तुम,
करो स्वीकृति इस पर तो पांचवें चरण में चढ़ती हूँ,
स्वीकार मुझे हैं वचन तुम्हारा ऐसे नेक इरादों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।४।

 

सुख-दुःख तेरे मेरे है अब पाँचवाँ फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
हो संबंध कोई भी घर में मुझसे सलाह करोगे तुम,
मानो अगर इसे तो फिर मैं छठवां वचन भी कहती हूँ,
मान लिया हैं वचन तुम्हारा तेरे इन जज्बातों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तो के पक्के धागों से।५।

 

जीवन सौंप रही हूँ और ये छठवां फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
सखियों के सम्मुख मुझको अपमानित नहीं करोगे तुम,
इसे करो प्रदान स्वीकृति अंतिम वचन मैं कहती हूँ,
स्वीकार मुझे हैं वचन तुम्हारा खुलती सीधी बातों से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।६।

 

बाबुल का घर छोड़ तेरे संग सांतवा फेरा लेती हूँ,
बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ,
पर नारी के संग में कोई संबंध नहीं रखोगे तुम,
मान इसे भी लो तो बाएं अंग प्रवेश मैं करती हूँ,
है देवी स्वीकार मुझे है गंगा जल के बासन से,
बांध रही तू जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से।७।

 

बांध रही हूँ जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से,
प्रियतम वचन निभाना अपने मुकर न जाना वादों से,

प्रियसी तेरे सात वचन मैंने हंसकर स्वीकार किये,
एक वचन मेरा भी मानो हम जीवन खुशहाल जियें,
मेरे मात-पिता का आदर, घर की हर इक बात पे चादर,
मेरे कहे पे तुमको चलना, समय अनुसार हैं ढालना,
घर की गति विधि में तुमको हर पल का सहभागी बनना
मनो अगर वचन ये मेरा में भी स्वागत करता हूँ
अर्ध अंग तुमको देकर अब अर्धांगिन समझाता हूँ।
वचन आपका मान बनाया पति बड़े अरमानों से
बांध रही हूँ जीवन को रिश्तों के पक्के धागों से,
प्रियतम वचन निभाना अपने मुकर न जाना वादों से।

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