शान में गुस्ताख़ी

मेंरे पास आप सब के लिये एक प्रेरणादायक और सच्ची कहानी है ।
पढाना और लिखना यह दो कार्य मेंरे लिये बेहद रुचिपूर्ण कार्य है, जिसे मैं तन्मयता से करता हूँ । अब जबकि चीन ने स्कूलों पर ताला लगा दिया है और चाभी “कोरोना” को दे दी है तो “बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाधे”, मुश्किल है, बेहद कठिन भी, इस लिये आज कल लिखने वाली कला उफान मार रही है, हो सकता है ओवरफ्लो हो रहा हो पर बात शिक्षाप्रद है ।
बात यह है कि मेंरे स्कूल की पेंट खराब हो चुकी थी इस लिए सोचा कि इसको “कलर फुल” बनाया जाय इसी क्रम में पेंटिंग का कार्य शुरू हुआ और सबसे बाद में बाउंडरी की बारी आई, नई चीज करने कुछ हट कर करने की जिज्ञासा रही है और संयोग वश पेंटर भी खोजी किस्म का मिला तो प्रयोग शुरू हुआ दो रंग मिला कर एक नया रंग रोज जन्म लेता था और जो अच्छा लगता वह दीवाल पर पोत दिया जाता था ।
जब बॉउंड्री की बारी आई तो निर्णय हुआ कि चेरी कलर का बॉर्डर और सफेद दीवाल बनाया जायेगा दिन भर की मेहनत के बाद एक शानदार बाउंडरी वाल उभर कर आया और चूंकि यह सलाह पेंटर की थी तो इस निखरते हुए बाउंडरी से वह ही सबसे ज्यादा आनंदित था सबने तारीफ की तो उसका मनोबल और बढ़ गया उसे भी लगा कि कुछ काम तो मेंरे हिसाब से हुआ जिसकी तारीफ भी हुई, उस दिन का यह कार्य खत्म हुआ और अगले दिन स्कूल के आउटसाइड दीवार पर रंग भरना बाकी था ।
अगले दिन सुबह स्कूल थोड़ी देर से पहुचा तो पेन्टर बाउंडरी वाल के पास डब्बा और ब्रश ले कर खड़ा था शायद असमन्जश में था करू ! या न करूँ ! वाली स्थिति थी, कारण यह कि किसी ने चमकीले सफेद रंग की दीवार पर लाल केशर और कत्था युक्त पान खा कर थूक दिया था, दुख हुआ, बेहद दुख मुझसे अधिक पेन्टर को, वह उसे टचअप कर के मिटाना चाहता था लेकिन मैंने कहा नहीं भाई रुक जाओ ! ऐसे ही छोड़ दो और आज का काम खत्म करो, पेन्टर दूसरी ओर पेंट करने चला गया पर उसकी आँखों में लाल रंग की यह पिचकारी किरकरी की तरह चुभ रही थी, निःसंदेह मुझे भी चुभ रही थी पर मुझे भी बच्चों को पढ़ाना था, मैं क्लास में चला गया और पेन्टर बाहर के दूसरी तरफ वाले दीवार पर पेंट करने चला गया । लगभग 2 बजे स्कूल की छुट्टी हुई तो मुझे देखना था कि दूसरी तरफ वाले दीवार पर क्या कलाकारी चल रही है, मैं पेंटर के पास गया और पूछा क्या भाई क्या कलाकारी हो रही उसने कहा गुरुदेव क्षमा करें मैं अब थूके हुए पर टचअप करने जा रहा हूँ । मैंने पूछा भाई हुआ क्या ?
उसने हँसते हुए कहा रास्ते से जो भी गुजर रहा वह थूकने वाले को बिना गाली दिये नहीं जा रहा, यह खासियत है ग्रामीणों की कि प्रायः उम्रदराज लोग ऐसी घटना देख कर खामोश नहीं रहते, बिना गाली दिये जायेंगे तो खाना हजम ही नही होगा और यही हो भी रहा था ।
हमें पता था यह कृत्य किसी बाहरी आदमी का नहीं था,सब जानते थे यही कहीं का है वह व्यक्ति जिसने “विद्या के मंदिर” पर थूका था जहां पैर रखने से पहले बच्चे किसी अखाड़े में जाते समय पहलवान की तरह हाथ पर मिट्टी लगा कर माथे पर लगाते हैं ।
तो यह तो विद्या के मंदिर के शान में गुस्ताखी हो गई ? मिथ्या है वह शान जो ऐसी बातों पर दँगा भड़का दे और जान माल का नुकसान करे !
तरस आती है ऐसी सोच पर जो छोटी-छोटी बातों पर भड़क जाती है, मुझे बंगलौर दंगों का जो दृश्य देखने को मिला असल में इससे बड़ी देश के प्रति “शान में गुस्ताखी” हो ही नहीं सकती, किसी पैगम्बर/ईश्वर जो भी आप उसे नाम दें की इतनी छोटी और अधीरता में आगजनी करने वाली शान से मुझे ऐतराज है और बेहद अफसोस भी ।

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