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शबनमी आेश के कण - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
राकेश कुमार सिंह शबनमी ओश के कण मोती सदृस्य बिखरे हुये, कोमलता पारदर्शी, मुखड़ा तुम्हारा याद आया ! शीतल मंद वायु का झोका, मौसम अठखेलियाँ करता हुआ, गुंजार भ्रमरों का सुना तो, हँसना तुम्हारा याद आया ! चटखती हुई कलियाँ; महक पुष्पित फिजा की, निर्गमित आह्लाद बनकर, पायल छनकाना तुम्हारा,…