शहीद दिवस के बहाने ममता बनर्जी ने सुलगायी फेडरल फ्रंट की चिंगारी

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जगदीश यादव

महानगर कोलकाता के शहीद दिवस की सभा में जो सबसे गौर करने वाली बात रही वह है पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती हैं। लेकिन उन्होंने यह जरुर कहा कि वह चाहती है कि क्षेत्रियों दल संगठित हो और वह इसके लिये वह सबके साथ हैं । साफ कहें यह ममता बनर्जी का एक दुरुस्त इशारा था सम्भावित एक गैरएनडीए-गैरयूपीए फेडरल फ्रंट बनाने के लिए । जिसके लिये तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमों ममता बनर्जी की तड़प को साफ समझा जा सकता है कि उक्त फ्रंट के लिये वह कितनी जल्दीबाजी में हैं। ममता बनर्जी एक मजी ही नहीं सधी हुई राजनीतिज्ञविद् हैं और उन्होंने राजनीति के तमाम दौर भी देखें हैं। देश में भाजपा के कदम जिस रफ्तार में बढ़ रहें हैं और पीएम मोदी की तस्वीर दुनियां के दिग्गज व प्रभावशाली नेताओं के रुप में उभर रही है यह एनडीए के विरोधियों के लिये नींद हराम करने वाली है। ऐसे में जाहिर है कि यूपीए हो या फिर अन्य विरोधी दल, एनडीए कहें या फिर भाजपा के खिलाफ उनकी मुहिम तो तेज होगी ही। लेकिन उनकी लाचारी है कि पीएम मोदी के आगे सारे के सारे चेहरें बौने साबित हो रहें हैं। वैसे यह भी बता देना जरुरी होगा कि फेडरल जैसा फ्रंट ममता या फिर लालू की उपज नहीं है। कारण पहले भी वाममोर्चा के द्वारा इस तरह के फ्रंट की बात कही जा चुकी है और इसके गठन के लिये मुहिम चलाये गये थें। लेकिन ममता बनर्जी की चतुराई को समझा जा सकता है कि वह भले ही सम्भावित फेडरल फ्रंट में प्रधानमंत्री की उम्मीदवार हों या नहीं लेकिन वह अपने को इस स्तर पर स्थापित करना चाहती हैं कि वह किंग मेकर जरुर बन सकें। हलांकि छोटे-छोटे क्षेत्रिय दलों के द्वारा अगर उक्त दिशा में काम किया जाये तो आने वालें दिनों में दिल्ली में गैरएनडीए-गैरयूपीए फेडरल फ्रंट की सम्भावना को सिर्फ हंसी में उड़ाया नहीं जा सकता है। तो जाहिर है कि उक्त फ्रंट को खड़ा करने में ममता बनर्जी जैसी राजनीतिज्ञ की क्या भूमिका हो सकती इससे भी इंकार करना बुद्धिमानी नहीं होगी । वह किंग मेकर तो साबित हो ही सकती हैं। यह भी बता देना जरुरी होगा कि ममता बनर्जी ने उक्त मुद्दे पर वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी की मांग पर वाईएस विजयलक्ष्मी से बातचीत के बाद झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से बातचीत की थी। बातचीत का नतीजा क्या हुआ और आगे क्या होगा यह अलग बात है लेकिन ममता बनर्जी की फेडरल फ्रंट बनाने की छटपटाहट को भी समझा जा सकता है।सत्ता के गलियारे में इस बात की चर्चा भी सधे हुए राजनीतिज्ञ पंडित कहें या जानकार कह रहें है कि तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक, असम गण परिषद सहित कई अन्य छोटे दलों के नेताओं से फ्रंट के मामले पर बात करें तो हैरत नहीं होगी । बहुत पुरानी बात नहीं है और सभी को याद आ जाएगा कि फेडरल फ्रंट बनाने की जद्दोजहद तब शुरु हुयी जब भाजपा और जदयू का देढ़ दशक का गठबंधन धारासायी हुआ था। गैरयूपीए-गैरएनडीए दलों का फ्रंट बनाने की इच्छा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रखते हैं। दोनों नेता अति महात्वांकाक्षी व जमीन से जूड़े नेता हैं। वह लोग सिधे किसी की विरासत लेकर राजनीति में नहीं आये हैं । दोनों का नाम किसी ना किसी रुप में प्रधानमंत्री के सम्भावित चेहरे के तौर पर उठता रहा है। लोकसभा चुनाव समय से पूर्व फेडरल फ्रंट दिल्ली सरकार के विरोध में उक्त सरकार के विरोधियों के लिये समय की मांग साबित हो रही है। शायद यही कारण हो कि ममता जल्द से जल्द फ्रंट तैयार करने की कोशिशों में जुटी हैं। ममता बनर्जी के शपथग्रहण समारोह में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और नेशनल कांफ्रेंस के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने फेडरल फ्रंट की चर्चा छेड़कर एक नए राजनीतिक समीकरण के जन्म के लिये जरुरी प्रयास को अंजाम दे दिया था। बहरहाल देखना है कि बंगाल को विश्व बांग्ला के तौर पर स्थापित करने का सपना देखने वाली ममता बनर्जी के गैरयूपीए-गैरएनडीए फेडरल फ्रंट का सपना साकार होता है कि नही।

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