शाहरुख खान एक्टविस्ट नहीं है राजदीप सरदेसाई

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हिन्दी फिल्मों के बादशाह शाहरूख खान की नई फिल्म ‘माई नेम इज़ खान’ आज सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई। शाहरूख का कसूर है कि उन्होंने अपने पड़ोसी देश के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध की बात कही है। उन पर आरोप है कि वे पाकिस्तान समर्थक हैं। देशद्रोही हैं। तथाकथित राष्ट्रवादी और अन्य हिन्दुत्ववादी संगठन उन से माफी मांगने को कह रहे हैं। शाहरूख खान का कहना है कि उन्होंने कोई ग़लती नहीं की, फिर माफी किस बात की। वे भारतीयता के बारे में पैसोनेट हैं। वे कहते हैं कि मेरी देशभक्ति पर सवाल उठे तो क्या इसे मुझे समझाना पड़ेगा। मैं बंबई में रहता हूँ। मुम्बईकर हूँ। 20 साल से रह रहा हूँ। यह एक आजाद मुल्क है और प्रत्येक भारतीय को हक़ है जब तक वह अपने टैक्स देता है और कोई आपराधिक कर्म नहीं करता तब तक वह निर्बाध रूप से अपना काम कर सके। मैंने मुम्बई से सब कुछ कमाया है। मेरा मुम्बई पर जितना हक़ है उससे ज्यादा मुम्बई का मुझ पर हक़ है। यह मेरी अस्मिता का प्रश्न है कि मैं पहले भारतीय हू¡ बाद में मुम्बईकर। हिन्दी सिनेमा व्यावसायिक सिनेमा है। हमको सबसे बड़ा डर है कि हमारे काम के बाद लोग हंस कर आनंद लें, हमारे काम के कारण लोगों को नुकसान पहुँचे यह हमारा उदे्दश्य नहीं। मेरी पिक्चर देखने जा रहे व्यक्ति को या उसके परिवार को एक भी पत्थर लग जाए यह कोई भी कलाकार नहीं चाहेगा। जब अपने परिवार के लोगों को मैं फिल्म देखने से सुरक्षा कारणों से मना करता हू¡ तो दूसरे लोगों को कैसे कह सकता हूँ कि वे मेरी फिल्म देखने जाएं।

शाहरूख की भारतीय जनता से जो अपील है वह हमारे भारतीय कहलाने पर शर्म पैदा कर रही है। एक आजाद मुल्क में शाहरूख खान के साथ जो व्यवहार हो रहा है वह किसी भी तरह से नस्ली हमले से कम नहीं है। फासीवाद का यह हमला हिन्दी फिल्मों पर नया नहीं है। यह सबको मालूम है कि हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं और कलाकारों को कई तरह के दबावों में काम करना पड़ता है।

सी एन एन आई बी एन के राजदीप सरदेसाई चाहते हैं कि शाहरूख हर इस तरह के फासीवादी हमले पर बोलें। टैक्सी ड्राइवरों के मुद्दे पर भी उन्हें बोलना चाहिए यानि कि फिल्म अभिनेता के साथ-साथ एक्टिविस्ट की भूमिका भी निभानी चाहिए। शाहरूख एक अभिनेता हैं। अभिनेता से नेतागिरी की मांग करना कहाँ तक जाएज है। एक व्यक्ति अपने पेशे में ईमानदार रहे, लगन और मेहनत के साथ काम करे, इच्छा नहीं है तो एक्टिविस्ट न बने, यह गलत कैसे है? शाहरूख ने अपनी बात साफगोई के साथ रखी कि मैं रियल लाईफ हीरो बनने की कोशिश नहीं करता फिल्मों में बन जाउ यही बहुत है। अब शायद मुझे चड्ढी, बनियान और अन्य चीजों की तरह ही अपनी देशभक्ति का भी प्रचार करना पड़ेगा और इस तरह के अन्य हमलों का विरोध करना पड़ेगा।

शिवसेना के लोगों ने मुम्बई के मुलुण्ड में भारी तोड़फोड़ किया है। इस फिल्म की अग्रिम टिकटों की बिक्री के समय यह सारी घटना घटी। अपने पहले के बयानों से पलटते हुए ‘सामना’ में लेख छपा जिसमें कहा गया कि शिवसैनिक अब शाहरूख की फिल्म का विरोध नहीं करेंगे। लेकिन जब 8 फरवरी को फिल्म की अग्रिम टिकटें बिकनी शुरू हुईं तो शिवसैनिकों ने हंगामा और तोड़फोड़ शुरू किया। 9 फरवरी की सुबह खबरों में दिखाया गया कि करण जौहर पुलिस सुरक्षा के लिए पुलिस के आला अधिकारियों से मिलने गए। उसके दो घण्टे बाद ही शिवसैनिकों की गतिविधियों की खबरें चैनलों की प्रमुख ख़बर बन गई।

फिल्म ‘माई नेम इज़ खान’ के बारे में अभी जो कुछ सामने आया है उससे इतना जाहिर है कि इस फिल्म में सत्ता और प्रशासन के एथनिक सप्रेशन के खिलाफ एक लाईन ली गई है। फासीवादी, नस्लवादी, राष्ट्रवादी पहचानों के ऊपर प्रेम और भाईचारे को, मानवीय रिश्तों को महत्वपूर्ण बताया गया है। भला यह किसी भी फासीवादी दल को कैसे बर्दाश्त हो सकता है। ‘माई नेम इज़ खान’ की जगह इस फिल्म का कोई और नाम शायद एशिया के संदर्भ में नस्लवादी पहचान की पेचीदगियों को इतनी बारीक़ी के साथ नहीं उभार सकता था। समूची पश्चिमी दुनिया के लिए अदर बना हुआ एशियाई समाज जिसकी ताकत से पश्चिम डरता है और जिसे वह कमज़ोर करना चाहता है अपने को इस नाम से आईडेन्टिफाई करता है। विशेष संदर्भ में फासीवादी ताक़तों के लिए भी यह नाम आसानी से हजम होनेवाला नहीं है। संयोग से फिल्म में काम करनेवाला हीरो भी एक खान ही है।

शाहरूख का लंदन में दिया गया बयान कि उन्होंने कोई गलती नहीं की तो क्यों और किससे माफी मांगें करोड़ों भारतीय जनता के दिलों के ज्यादा करीब था। लेकिन यह कोई फिल्म नहीं जिंदगी है! इसमें ‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ की तरह जनता निर्दोष को बचाने के लिए हजारों की संख्या में बाहर नहीं निकल जाती है। निकले भी कैसे एक तो वह हिन्दुस्तानी है दूसरे शाहरूख की नियत पर भी संदेह है कहीं वे फिल्म के प्रचार के लिए तो ये सब नहीं कर रहे? राजदीप सरदेसाई के सवाल के जवाब में शाहरूख ने तकलीफ और व्यंग्य के साथ कहा कि हां प्रचार तो बहुत मिल गया, बहुत नाम कमा लिया। शाहरूख की पिछली फिल्मों के रिर्काड देखें तो साफ है कि बिना किसी विवाद के भी उनकी फिल्मों ने भारत की विदेशों की जनता के दिलों पर राज किया है। उनकी किसी फिल्म की सफलता के लिए विवाद आयोजित करवाना जरूरी तो कतई

नहीं।

शाहरूख की खूबी है कि वे बहुत आत्मीय और निजी होकर बड़ी बात कह जाते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं। मीडिया ने इधर कुछ दिनों से लगातार उनकी गतिविधियों की रिपोर्टिंग की है। उनके लंदन में फिल्म के प्रमोशन से लेकर उनके बच्चों के गेम शो में तक में मीडिया उनके साथ रही है। अपने बच्चों की जीत पर टिप्पणी करते हुए शाहरूख कहते हैं कि उनके बच्चे उनसे ज्यादा निडर हैं। उन्होंने उनसे कहा कि पापा आप इंडिया आ जाओ सब ठीक है हम सबको हरा देंगे। इन बच्चों को मराठी भी आती है और वे एक ‘हिन्दू’ मा और ‘मुसलमान’ पिता की संतान हैं। शाहरूख़ का डर निराधार नहीं है कि उनके बच्चे कहीं बाप बनकर उनकी तरह डरने न लगें। वे चाहते हैं देश के सभी बच्चे, सभी नागरिक निर्भय होकर अपनी आजादी को जी सकें। क्या गलत चाहते हैं शाहरूख़। फासीवाद की यह मनोवैज्ञानिक लड़ाई क्या शाहरूख़ हार गए ? भय ही तो पैदा करता है फासीवाद। शाहरूख़ देश के हर नागरिक को निर्भय बनाना चाहते हैं। शाहरूख़ हार नहीं सकते अगर वे वैचारिक समझौता नहीं करते जैसाकि वे अभी टी वी पर कह रहे हैं। व्यक्तियों से मिलना, उनसे संपर्क रखना अलग बात है और इस तरह के फासीवादी हमलों से डरकर वैचारिक रूप में सहमत होना अलग। मैं नहीं जानती गौरी कितनी शर्मिंदा होंगी डरे हुए शाहरूख़ को देखकर। अभी-अभी खबर आ रही है कि घाटकोपर में भी शिवसेना के हमले शुरू हो गए हैं।

बाल ठाकरे अपनी थोकशाही के जरिए शाहरूख को अपने झण्डे तले ले लेना चाहते हैं। शिवसेना जो इस समय इतना हुंकार भर रही है उसका मकसद शाहरूख के साथ अपनी ट्यूनिंग पैदा करना है। दूसरी ओर यही शिवसेना आई पी एल के मसले पर गुलगपाड़ा मचा के शरद पवार के साथ भी अपने संबंधों को अपनी तरफ झुका कर रखना चाहती है। शाहरूख और आई पी एल दोनों पर शिवसेना की हुंकार हाल ही के विधानसभा चुनावों में शिवसेना की जबर्दस्त पराजय से ध्यान हटाने के लिए और सस्ती लोकप्रियता के जरिए अपने कैडरों को चंगा करने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है। शाहरूख की फिल्म चले या न चले, आई पी एल हो या न हो, आई पी एल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी खेलें या न खेलें, कोलकाता नाईट राइडर में पाकिस्तान के खिलाड़ी खेलें या न खेलें इन सबसे शिवसेना को कोई लेना-देना नहीं है। शिवसेना का मूल उदेश्य है महाराष्ट्र में अपनी खोई हुई जमीन को हासिल करना।

-सुधा सिंह

(लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

11 COMMENTS

  1. sudhji apka bhi jabab nahi ap batao ap profesor ho ya activist.kya shahrukh se ye umid ki ja sakati hai ki kashmir me ja kar musalmano ke khilaf ek shabd bol sake ya kabhi bhul kar bhi vandematarum par kuch bole.isaki adat hai asman par thukne ki aur behaya ho chaka hai apna muh poch kar khada hane me bat chahe sadi ke mahanayak ke bare me tippadi karane ki ho ya hindustanio ke icon rahe sunil gavasker ke khel ke bare me tippadi karne ki. jisake liye janta se thu thu hane par mafi maga tha.abhi dekho yaha aith raha tha aur film pradarshi hote hi bulin me bhasha badal fir matoshri jane ki bat kar taha hai aur ap dekhna ye mafi bhi magega aur acha khasa chanda bhi jama karega.wo to ek third class film jisaki kahani aur parivesh se hindustan se koi matalab nahi na hindustanio ko dhyan me rakh kar bahaya gaya hai use charch dilani thi isi liye ye sab nata kiya aup ye bhi woh janta hai ki yaha ka budhjivi kutta hai wo khan \pathan ke nam ki roti pate hi tut padata hai bagar soche samjhe ki iske piche vastavic vajah kya hai. in logo ne khoj nikala ki itihas me darj hai inke dada swatantrata senani the.are bhai uttar pradesh ke sabse bade mafiya don mukhtar ansari ke dada bhi azad bharat ke pahale parumvir chakra vijrta the aur biha ke purva sansad anand mohan singh ke dada bhi swatantrata senani the jise sabhi jante hai,jisake liye kisi univercity ke sodh ki jarurat bhi nahi hai to isase kya sabit karana chahate ho aplog ya hamare samajh se bahar hai. humare jaise sadharan soch wale log to yahi dekh rahe hai ki wo kis tarah apjaise logo ka istemal apne vyavsayic hito ke liye kar raha hai aur ap ho ki charanvandana me lage huya ho’ isi neharu gandhi khandan ne pure desh ko badhiya bana diya tha ap jaise budhjivio ko kal kothri me pahuch diya tha aur aj fir karas gana suru kar diye ho.apna mulyankan khud karo ki aplpogo ko kis shedi me rakh jai.yahi sonia gandhi ke dekh rekh me sakdo nirdosh adivasio ki hatya ki la rahi hai,aur ap apne muh me dahi jama kar bathe ho. kya apko nahi pata hai ki hindustan me adivasiyo ki abadi 9%hai aur azadi ke badse unaki 40%jamine chin li gayi aur aj bhi we apne astitva ki ladai lad rahe bhagwan ke liye kuch natikta hai to unake liye sochiye,awaj uthaiye ya fir khamosh rahiye nahi to hamare jaise tatasth log apjaise logo ko kutte ki tarah hi samjhege.

  2. शाहरुख ने अपनी फिल्म चलवाने के लिए नौटंकी शुरू की और सब उसके चक्कर में फंसते चले गए। सच है कि उससे ज्यादा समझदार और चतुर कौन। क्या कहा जाए शिवसेना वालों को। बिना कौड़ी एक रद्दी फिल्म को हिट करवा गए ये लोग। पा और थ्री इडियट्स के सामने जिस फिल्म को कोई पूछने वाला नहीं था, अब वह सबके सर चढ़ कर बोल रही है।

  3. कुछ हद तक सहमत ..हालाकि एक बात समझ में नहीं आयी कि राजदीप के सगे वामपंथियों की तरह ही, एक्टिविस्ट होना कोई पेशा है कि कोई अन्य पेशेवर, एक्टिविस्ट नहीं हो सकता. और दूसरी बात ये कि क्या शाहरुख की भक्तिपूर्ण प्रश्शती का महज यही कारण नहीं है कि उसके नाम के आगे भी “खान” लगा हुआ है? रही बात शिवसेना की तो वो पुराने जमाने की बात हो गयी है अब जैसे कम्मुनिष्ट.

  4. काफी हद तक सहमत…लेकिन ये क्या बात हुई की शाहरुख चुकी अभिनेता हैं तो एक्टिविस्ट नहीं हो सकते? गोया एक्टिविस्ट हो जाना कोई पेशा हो राजदीप के सगे वामपंथियों की तरह…..और दूसरी बात ये की अभिनेता के पीछे खान लग जाना भी उसकी भक्तिपूर्ण प्रशष्ति का कारण तो है ही…बहरहाल अब ये मान लेना चाहिए की शिवसेना बीते दिनों की बात होती जा जरी है जैसे वामपंथी.

  5. बिलकुल सही बात कही है रवि जी आपने…उथले जल की ये मछलियाँ कितनी भी उछलकूद कर लें जब ये गहराई की और बढेंगी तो इनको अपनी हैसियत का अंदाज़ होगा जब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

  6. sudha ji namaskar! srk humare desh ka icon hai, desh ki janta srk ko sikhar per baithi hai, kyoki wo filme karta hai, filmo me bade bade dailog bolta hai, kya hum apna hero sirf paise kamne wale bhand jaise logo ko mante hai jo sirf aur sirf apna bhala karne me lage hai, kya hum gandhi ji, baghat singh, azad, subash chandra jaise logo ko hero manane wala bharatiya log ab apna hero ek bhand ko manane lage hai to socho ki humare desh ka kya future kya hoga. khan pahele to team karidita hai lekin pakisthani player ke bina aur phir beyan deta hai, kya ye uchit hai agar koi problem nahi thi to apni team me kyon nahi liya. kya humne in baato per vichar kiya? ab koi khan ka virod karta hai to puri ki puri sarkar central aur state government, forcefully unka virodh karne mr juut gai, kya ye bewaqufi nahi hai? rajnitik utha patak me kahi ye log desh ko gark me nahi dal rahe hai,chahe congress ho ya shiv sena. kam se kam ek baat ki tarif karni hogi ki kam se kam pore bharat me ek aisa mard to hai ki usne khan ke galat bayan ka virodh kiya ha ye baat aur hai ki shiv sena ka virodh karne ka tarika galat hai.lekin widambana dekho ki congressi khan ke desh dhori bayan ka support karte hai, virod karne wale wo log hai jo india pakisthan ke match ke dauran pakisthan ke jeet jane per hindustan me rahene ke baojood khushiya manate hai phatake phodete hai, ye hai mera hindusthan. ek ore shipa shetty bala sahab ke bare me apsabho ka prayog karti hai, paiso ke liye shaadisuda raj ka ghar thudwa kar khud shaadi kar leti hai, richard ke saath sare aam kiss karne wali, yoga ke naam per sex paroshne wali ki baat ki kya value hai. phir bi hum log aise logo ko apna icon mante hai, mera manana hai ki humre asli hero wo hai jo sarhad per ladte hai kya hum logo ka naam bi jante hai jinhe paramvir chakra mila hai, nahi! eski jimedar hai media! apni values se bhatak rahi media sab trp ka khel hai mere bhaiyo.

  7. राज्दीप्जी आप एक दम सही बोल रहे है की शाहरुख़ खान कोई एक्टिविस्ट नहीं है अगर होते तो कड़ोरो रुपये क्रिकेट में फुकने के बजाय शायद देश में फीकी पड़ चुकी हाकी के लिए कुछ करते और शायद जिस हाकी के दम पर ही उन्होंने चक दे से खूब पैसे बटोरे थे ,,,,,,और दूसरी बात हम अपने देश की तो बात करते है पर ये क्यों नहीं सोचे की पाकिस्तान में कभी किसी ने भारत के प्रति प्रेम दिखाया होता तो उसका क्या हस्र होता …..या तो आप ही एकबार पाकिस्तान घूम आओ और वह भारत के गुण गाके देख आओ …..

  8. Sudha ji sahi kah rahi hai ki Shahrukh khan se ek activist hone ki ummed nahi ki jasakti, kare bhi kyu ek vayavsayee se is tarah ki koi ummeed, wo koi rajneta nahi hai…Lekin jis tarah se pakistan prayaojit mumbai hamla huaa, uske baad shahrukh ka ye bayaan kya unki ya fir lekihka mahodaya ki najar me sahi hai….Aashchary hota hai dekh kar ki kis tarah is bazarwadi media ne sampoorn bahas ko pakistani bayanbazi se ghuma kar Utar Bhartiya aur maharashtriyan Mudda bana diya…Abhishek bachchan ki drona ke masle par pairo ke beech poonchh chhipane wala media Congress samarthak Shahrukh ke masle par sher ho jata Aaj shahrukh khan lo bollywood ka iklauta mard kahte media ki jabaan nahi thak rahi, kaha thi ye mardangi jab inki photo Dubai me baithe aatank ke maharajao ke saath chhapi thi..
    ……Khair ummeed to nahi hai lekin vinti hai ki nishpaksh patrkarita ki or aap log laute..

  9. कुछ संपादकों ने अपनी कलम के साथ अपना राष्ट्रीयता भी बेच दी है, भारतीय मूर्ख नहीं हैं कोनसा न्यूज़ चैनल किसके पक्ष मैं और किसकी बिकी हुयी ख़बरें दिखा रहा है, एक भारतीय यह सब समझाता है, आप लोग समझ रहे होगे की हम चाहे तो फलां के पक्ष मैं माहोल बना देंगे जिसकी चाहे छवि बना देंगे जिसकी चाहे मिटा देंगे, किसी बकवास से मुद्दे पर अपनी कलम घिसने वाले इस देश का भला नहीं कर सकते. किसी मुद्दे के विरोध करने का अधिकार भी हर नागरिक को है. वन्दे मातरम का भी विरोध हुआ है. जब आपने कोई लेख नहीं लिखा. किसी एक अभिनेता की कमाई कम होने से बचाने के लिए प्रतिष्ठित संपादकों का कलम घिसना गले नहीं उतरता. भले ही कोई लेख हिन्दू महिला प्रोफेसर द्वारा लिखा गया हो, लोगों का नजरिया नहीं बदल सकते. ठाकरे बिलकुल सही कर रहे हैं. इन शेरों की ताकत का अनुभव हर एक राष्ट्रवादी कर रहा है. १० – १५ बिक़े हुए लेखक इस देश के ६० करोड हिन्दुओं की सोच को नहीं बदल सकते, कलम तो बेच दी देश नहीं बेच पाओगे.

  10. बाल ठाकरे प्रतिक्रियावादी ताक़तों की सशक्त आवाज़ हैं। बुद्धिजीवियों की परंपरा मे प्रतिक्रियावादी होने की मनाही है तो माफ़ करें। मुझे जैसे को तैसा देने में गुरेज़ नहीं ।

    यदि आप ठाकरे और शाहरुख़ में कौन ग़लत है, यह तय नहीं कर पाए तो भी यह मानना ही होगा कि स्व. सुनील दत्त से लेकर शरद पवार, अमिताभ बच्चन, करण जोहर सरीखी हस्तियों ने ठाकरे की चौखट पर सर झुकाया है ।

    अकेले शाहरुख़ ख़ान झुकने को तैयार नहीं तो मानना पड़ेगा कि ख़ान सच्चा पठान है और यूं भी शाहरुख़ अपने को मुसलमानों का प्रतिनिधि कहते हैं विदेशो में…….तभी इसी प्लॉट पर यह फ़िल्म भी बनायी गई है।

    बाक़ी लोग क्यों झुके? उनके नाम पढ़ चुके होंगे आप और अंदाज़ भी लग चुका होगा कि संकट के समय हिन्दू झुक जाता है (गांधी फ़िल्म का डायलॉग)

    दाउद के ठिकाने पर ठुमके लगाने से तो औरों को बेहतर लगा कि बॉलीवुड ठाकरे के ठिकाने पर सजदा करे ।

    मैं उत्तर भारतीय और हिन्दीभाषी हूं। लालू के भूराबाल की राजनीति, दलित-रणबीर की हिंसा, मायावती की जूता मारो सालों को और असम मे सैकड़ो हिन्दीभाषियो की हत्या कैसे कमतर हो गईं?

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