टीवी मीडिया में, अखबारों में, वेबसाइटों पर खबरें पटी हैं। लोकसभा के लिए यह गुरुवार सबसे काला दिन था। लेकिन हकीकत में ऐसे गुरु-घंटालों ने लोकतंत्र की आत्मा पर इससे पहले भी कई वार किए हैं। कभी नोटों को लहराया गया, कभी मार-पीट हुई, कभी लात-घूसे चले। फिर आज का दिन भी काला थोड़ी हुआ। हां, ये कहिए कि संसद में संवैधानिक व्यवस्था पर, अनुशासन पर फिर किसी ने कालिख पोत दी। अब 13 फरवरी, दिन गुरुवार। तेलंगाना बिल पर पहले से सुगबुगाहट थी। लेकिन नतीजा इस तरह निकलेगा, किसी को पता न था। किसी ने काली मिर्च पाउडर का स्प्रे किया तो किसी ने स्पीकर की माइक के तार नोंच डाले तो कोई लोकसभा महासचिव की कुर्सी पर चढ़कर अध्यक्ष की मेज पर रखे तेलंगाना विधेयक व अन्य कागजात को छीनने लगा तो किसी ने चाकू लहराने शुरू कर दिए। पूरी तरह से विलन की भूमिका में रहे सांसद राजगोपाल, जिसने पेपर-वेट उठाकर रिपोर्टर की मेज पर रखे एक बक्से को तोड़ डाला जिससे जोर का धमाका हुआ और उसके बाद अपनी जेब से मिर्च स्प्रे निकालकर चारों ओर छिड़कने लगे। स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे सभी लोगों की आंखों में जलन होने लगी और खांसी आने लगी। इससे कुछ सदस्य काफी असहज महसूस करने लगे, जिसके बाद सदन में संसद के डॉक्टर को बुलाना पड़ा। कुछ सदस्यों को उपचार के लिए एंबुलेंस से राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया।
पूरी घटना तेलंगाना बिल के ईर्द-गिर्द घूम रही थी। खबर आई कि तेकंगाना बिल पेश हुआ, लेकिन बाद में लोकसभा प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि तेलंगाना बिल तो लोकसभा में पेश ही नहीं हुआ। सवाल है कि ऐसी नौबत क्यों आई ? क्या एक बार फिर से जमीन से खजाना निकलने वाली भविष्यवाणी की गाथा रच देश का ध्यान भटकाया जा रहा है ? 18 सांसदों को निलंबित कर कोई पार्टी वाहवाही लूट रही है ? या कोई दल तेलंगाना मसले पर टीडीपी अध्यक्ष चंद्र बाबू नायडू की ओर पाशा फेंक रही है और सीमांध्र पर बड़ा राजनीतिक गोला उछाल रही है ? इस शर्मनाक अध्याय पर कोई सवाल सटिक बैठता हो या कोई जवाब देने में ना-नुकुर करता हो, लेकिन एक बात साफ है कि इसके जिम्मेदार हम-आप हैं। इसलिए शेम-शेम हमारे लिए है। हमी-आपने तो इन्हें वहां पहुंचाया है। क्या जब ये नेता वोट मांगने आए होंगे तो इनका इतिहास-भूगोल किसी से छुपा होगा क्या ? बिना किसी प्रत्याशी के बारे में पूरा जानें कोई कैसे वोट कर सकता है ? हां, विलन का रोल निभा रहे एल. राजगोपाल (आंध्र प्रदेश का) जैसे एक दो अपवाद हो सकते हैं जिन्होंने राजनीति में आने से पहले 6,000 विकलांगों को आर्टिफिशियल हाथ, पैर लगवाए। उन्हें ट्राइसाइकिलें दीं। लेकिन अधिकांश नेता उसी कैटिगिरी में आएंगे, ऐसा नहीं है। खैर मजे की बात यह रही कि इस घटना के थोड़े समय बाद एक टीवी चैनल पर जदयू प्रमुख शरद यादव लाइव आ रहे थे। उस कार्यक्रम में बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी भी थे। एक तरफ लोकसभा में उड़ी मिर्ची से लोकतंत्र का दम छटपटा रहा था तो वहीं शरद यादव देश को नीतिगत पाठ व यह समझा रहे थे कि देश की समस्याओं को लेकर लोकतंत्र ही एकमात्र अंतिम विकल्प होगा, चाहे कुछ कर लीजिए। शरद पवार इधर बातें कर रहे थे कि खबर आने लगी, दिल्ली विधानसभा में सोमनाथ भारती के आगे विधायकों ने इस्तीफे की मांग करते हुए चूड़ियां रख दीं। दिल्ली विधानसभा में भी नैतिकता को ठेंगा। सवाल है कि जो खुद शिष्ट नहीं हैं, वो संवैधानिक प्रक्रिया को क्या शिष्टता देंगे ? समाज को क्या चलाएंगे ? देश को क्या चलाएंगे ? लेकिन कुल मिलाकर पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है, तोड़-जोड़ का यह खेल है। लेकिन राजनीतिक दलों के इस खेल को इस तरह खेलना चाहिए क्या ? जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी ही तोड़-ताड़ वाली राजनीति में भरोसा करने लगें। क्योंकि इन नेताओं के पीछे तो देश में 50 फीसदी से अधिक युवाओं की संख्या है जो अब नेतृत्व करने वाले हैं। खैर, मतलब समझ लीजिए, समय का घंटा उपरोक्त सारे पहलूओं को लाते हुए कुछ बातों की ओर इशारा कर रहा है कि पिछली बातों को भूल जाओ जनमानस, समझो-परखो व लोकतंत्र के इन गुरुघंटालों के रवैये को पहचानो। अगर इस बार भी ऐसे लोगों को संसद पहुंचाया तो फिर हम-आप पर शेम-शेम। इन नेताओं पर नहीं।
इन्हें सब तरह की सुविधाएँ चाहिये अभी जो मिल रही हैं,उनसे भी वे संतुष्ट नही.और यह सब मात्र हंगामा करने के लिए.यह तो जनता को ही फैसला करना है कि वह वोट देने से पहले इनकी पूरी जन्मपत्री को देखे.केवल वह ही इन्हें सबक सिखा सकती है.