भाजपा की गलतियों से मजबूत होकर उभरे शरद पंवार

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लिमटी खरे

अनचाहे, अनजाने में ही सही, पर भाजपा के क्षत्रपों, रणनीतिकारों, नीति निर्धारकों की गलतियां ही मानी जाएंगी कि मराठा क्षत्रप शरद पंवार का कद एकाएक बढ़ा ही नजर आ रहा है। सियासत में चेला ही अक्सर अपने उस्ताद के पर कुतरने की कवायद करता है पर वह यह भूल जाता है कि उस्ताद तो आखिर उस्ताद ही रहता है। वह चुपचाप रहते हुए अपने शागिर्द की एक गलति का इंतजार करता है, जैसे ही चेला गलति करता है उस्ताद बिना समय गंवाए धोबी पाट का दांव चलकर उसे चित कर देता है। महाराष्ट्र में चल रही माथापच्ची का अंत भी कमोबेश इसी तरह से हुआ।

सियासी हल्कों में यूं ही शरद पंवार को सियासत का माहिर खिलाड़ी नहीं माना जाता है। शरद पंवार एक सुलझे, शांत, इंतजार करने वाले मंझे हुए राजनेता हैं। उनके भतीजे अजीत पंवार ने उन्हें कमतर आंकने का प्रयास किया और भाजपा का दामन थामा। इधर, शरद पंवार चुपचाप सारा खेल देख रहे थे। अजीत पंवार ने भाजपा का दामन थामा और भाजपा को लगा कि अजीत पंवार के रूप में उनके हाथ में तुरूप का इक्का लग गया है, जिससे बाजी उनके हाथ में आ चुकी है। भाजपा यह नहीं जानती थी कि यह पूरी पटकथा किसी और ने नहीं वरन शरद पंवार ने ही लिखी थी। भाजपा के साथ मिलकर अपने दाग धोने के साथ ही अजीत पंवार ने शरद पंवार की सालों की साख का मोलभाव भी भाजपा के साथ कर लिया था।

भाजपा और अजीत पंवार यह भूल चुके थे कि शरद पंवार के इशारे पर ही उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के 54 विधायकों के द्वारा अपना नेता चुना गया था। अजीत पंवार शायद इसे अपनी उपलब्धि और बढ़ा हुआ कद मान बैठे थे और उन्होंने इसी गलतफहमी के चलते उस तरह के कदम उठाए जो आत्मघाती ही साबित होने वाले थे। अजीत पंवार को लगने लगा था कि अस्सी के पेटे में पहुंच चुके शरद पंवार के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं रह जाएगा और मजबूरी में शरद पंवार उन्हें अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी घोषित कर देंगे। संभवतः यही अजीत पंवार की सबसे बड़ी भूल थी।

उड़ती चिड़िया के पर गिनने का माद्दा रखने वाले शरद पंवार ने अजीत पंवार को एक तरह से नसीहत देते हुए उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता न दिखाते हुए उनके स्थान पर जयंत पाटिल की ताजपोशी विधायक दल के नेता के रूप में कर दी गई। शरद पंवार के इस कदम से अजीत समर्थक विधायक भी शरद पंवार के कायल हो गए और अजीत पंवार की बगावत की चूलें हिल गईं।

सियासी बयार को बेहतर पहचानने वाले शरद पंवार के द्वारा बागी हुए अजीत पंवार पर किसी तरह का बाहरी दबाव भी नहीं बनाया गया। शरद पंवार के मौन को भाजपा सहित अजीत पंवार के सलाहकारों ने उनकी शिकस्त ही माना गया होगा। इसका परिणाम यह हुआ कि अजीत पंवार को अनेक मामलों में क्लीन चिट भी मिल गई। इधर, अजीत पंवार को क्लीन चिट मिली उधर, शरद पंवार ने अपना अगला दांव फेंका और अजीत पंवार की घर वापसी हो गई।

महाराष्ट्र में अस्सी घंटे का सियासी नाटक चला। इसके चलते संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगने स्वाभाविक ही हैं। यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह से पद का दुरूपयोग किया गया हो। संविधान 356 में देश की अखण्डता को अक्षुण्ण रखने का प्रावधान किया गया है। विडम्बना ही कही जाएगाी कि इस मामले में देश के सियासी नेतृत्व का रवैया सदा ही स्वार्थ परख रहा है। जबसे संविधान लागू हुआ है उसके बाद शुरूआती लगभग 57 सालों में इस अधिकार का प्रयोग लगभग 117 बार किया जा चुका है।

संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर ने ने 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए गए अपने भाषण में कहा था कि किसी भी देश के संविधान की सफलता उसके नागरिकों व संविधान को चलाने वालों के चरित्र व उनकी नीयत पर निर्भर करती है। उन्होंने आगे कहा कि संविधान चाहे जितना अच्छा क्यों न हो, यदि उसे चलाने वालों में संविधान के मूल्यों के प्रति समर्पण और उसे लागू करने का जज्बा नहीं है, तो वह निर्जीव अक्षरों का समूह मात्र बना रहेगा।

महाराष्ट्र में जो कुछ भी हुआ उसके बाद सोशल मीडिया पर इसको लेकर तरह तरह की प्रतिक्रियाओं के दौर जारी हैं। कोई भाजपा को कोस रहा है तो कोई अजीत पंवार को। लोग तो यहां तक कहते दिख रहे हैं कि एक बार वोट देने के बाद मतदाता अपना मत परिवर्तित नहीं कर सकता है तो विधायक या सियासी दल किस आधार पर अन्य दलों को समर्थन देने या न देने के फैसलों को बार बार पलटते हैं।बहरहाल, महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे से भाजपा और देवेंद्र फड़नवीस बहुत ज्यादा नुकसान में ही दिख रहे हैं। कांग्रेस मौन है, इसलिए कांग्रेस नो प्राफिट नो लॉस की स्थिति में ही है। अजीत पंवार ने जानबूझकर या अनजाने में जिस तरह से राकांपा से नाता तोड़ा और बाद में वापस आए उससे उनकी छवि पर ज्यादा प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है, वे फायदे में ही रहे। उन पर चल रहे अनेक मामलों में उन्हें क्लीन चिट मिल चुकी है। इधर, इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा फायदे में रहे तो वे हैं शरद पंवार। शरद पंवार एका बार फिर बहुत ही शक्तिशाली, दूरंदेशी, सियासत को भांपने वाले राजनेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। आने वाले दिनों में उनका कद सियासी हल्कों में और बढ़ जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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