सुशील कुमार ‘ नवीन’
गुरुवार 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का अपना विशेष महत्व है।
शारदीय नवरात्रि यानि देवी मां की उपासना का महापर्व| अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से इसकी शुरुआत होती है। पर्व का महत्व, पर्व के विधान पर एस. डी. आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, अंबाला के व्याख्याता आचार्य डॉ. अशोक कुमार मिश्र ने विस्तार से जानकारी दी है।
उन्होंने बताया कि ‘कलौ चण्डीविनायकौ’ अर्थात् कलियुग में चण्डी (दुर्गा जी) एवं विनायक (गणेश जी) की पूजा विशेष फलदायी होती है। इसीलिए उत्तर भारत में नवरात्रि के अवसर पर देवी जी की पूजा तथा दक्षिण भारत में गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश जी की पूजा विशेष रूप से आयोजित होती है! इस वर्ष नवरात्रि का पावन पर्व 7 अक्टूबर से प्रारम्भ होगा तथा 14 अक्टूबर को समाप्त हो जायेगा। विजयादशमी का पर्व 15 अक्टूबर को मनाया जायेगा।
स्कन्दमाता तथा षष्ठ कात्यायनी की पूजा एक ही दिन
इस पर्व को नवरात्रि इसलिए कहते क्योंकि ‘नवानां रात्रीणां समाहार:’ इसमें नव तिथियों की नव रात्रियाँ होती है अतः प्रायः नौ दिन का नवरात्रि पर्व होता है । इस वर्ष षष्ठी तिथि की हानि होने के कारण यह पर्व आठ दिन का ही मनाया जायेगा। देवी के पञ्चम रूप स्कन्दमाता तथा षष्ठ रूप कात्यायनी का पूजन एक ही दिन किया जाएगा। अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर को किया जायेगा।
इस तरह करें कलश स्थापना और पूजा
नवरात्रि के दिनों में प्रतिदिन दुर्गा जी की आराधना अत्यन्त फलदायी सिद्ध होती है। इन दिनों में सामर्थ्य के अनुसार व्रत करना चाहिए। मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करें। माँ दुर्गा का एक चित्र या मूर्ति स्थापित करें। ‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः, नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणताः स्म ताम् ‘ ध्यान करें, प्रतिदिन सुबह शाम घी का दीपक जलायें,फूलमाला चढ़ावें, धूपबत्ती दिखावे, तथा फल और मिठाई का भोग लगावें। अन्त में आरती करें।
विवाह बाधा होगी अवश्य दूर:
विवाह बाधा दूर करने के लिए नवरात्रि में कुंवारी लड़कियाँ अवश्य ” कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि, नन्दगोपसुतं देवि पतिं में कुरु ते वरम्” इस मंत्र का जप एवं षष्ठ रूप कात्यायनी देवी का पूजन करें
दुर्गा जी का आगमन एवं गमन: आगमन अश्व पर होगा जो कि अनेक प्रकार के राज्यभय जनहानि का सूचक है, तथा गमन हाथी पर होगा जिसका अत्यन्त सुख समृद्धि और सुवृष्टि का सूचक है।
कलश स्थापना का शुभमुहूर्त: अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना अत्यन्त फलदायी होता है जो कि इस वर्ष मध्याह्न में 11.17 से 12.23 के बीच होगा।