शरीयत बड़ी या भारतीय संविधान!

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कोलकाता उच्च न्यायालय के एक विवादास्पद फैसले से खड़ा हुआ संवैधानिक  संकट 

कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक अजीबोगरीब फैसले में एक नाबालिग हिंदू लड़की के मतांतरण और निकाह को मुस्लिम शरीयाई कानून की तुला पर तौलते हुए विधिमन्य करार दिया है। निर्णय पर विवाद खड़ा हो गया है। जानकारों के अनुसार, निर्णय ने भारतीय संविधान को शरीयत के सामने एक बार फिर ताक पर रख दिया है।

मामला कुछ यूं है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बहरामपुर की रहने वाली ज्योत्सना ने विगत साल 14 अक्तूबर को बहरामपुर पुलिसथाने में अपनी 15 वर्षीय बेटी अनीता रॉय की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था। बाद में उन्हें पता चला कि बहरामपुर का ही 27 वर्षीय सईरूल शेख अनीता को भगा ले गया है और उसने अनीता का मतांतरण कर उसके साथ निकाह रचा लिया गया है।

पुलिस ने इस सूचना पर अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू की। अभियुक्त सईरूल हसन ने इसके खिलाफ कोलकाता उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने मुस्लिम शरीयाई कानून के अनुसार निकाह को वैध ठहराते हुए सईरूल के अग्रिम जमानत को मंजूरी दे दी। इसके बाद ही इस मामले पर विधि विशेषज्ञों समेत देश के बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान गया। बंगाल समेत देश के अनेक प्रांतों में इस निर्णय के संभावित दुष्परिणामों और संवैधानिक पहलुओं बहस होने लगी है।

यह निर्णय विगत 16 दिसंबर, 2009 को आया। इस पर मीडिया ने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया जबकि अपनी प्रकृति में यह मामला असाधारण श्रेणी का था। इस संदर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा कुछ वर्ष पूर्व दिए गए निर्णयों का उल्लेख जरूरी है। अपने एक निर्णय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों को अल्पसंख्यक श्रेणी से निकाल बाहर किया था, इसी न्यायालय ने गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा देने का भी एक फैसले में दिशानिर्देश कर दिया था।

तब देश भर की मीडिया में मानो हंगामा बरस पड़ा था। चूंकि निर्णय कई मामलों में भारतीय संविधान के सेकुलर ताने-बाने और मुस्लिम हितों के विपरीत था इसलिए न्यायालय के निर्णय की जमकर लानत-मलालत की गई। लेकिन कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा सईरूल-अनीता रॉय प्रकरण में दिए फैसले पर सब ने खामोशी ओढ़ रखी है।

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि एक ओर केरल उच्च न्यायलय ने राज्य में लव जिहाद की जांच के लिए बाकायदा आदेश पारित कर रखा है, केरल पुलिस ने अपनी प्राथमिक छानबीन में इस बात को सच माना है कि राज्य में मुस्लिम युवाओं का समूह अपनी हवस-पूर्ति के लिए हिंदू लड़कियों को अपने जाल में योजनाबद्ध तरीके से येनकेनप्रकारेण फांसने में जुटा हुआ है। जाहिर तौर पर एक राज्य में जब इस प्रकार से हिंदू लड़कियों का अपहरण कर, भगाकर निकाह रचाने की वर्ग विशेष की प्रवृत्ति और सुनियोजित षड्यंत्रों पर जांच चल रही हो तथा इसी प्रकार की घटनाएं देश के अन्य राज्यों में भी तेजी से घट रही हों, तब कोलकाता उच्च न्यायालय का इस प्रकार का निर्णय निश्चय ही साधारण नहीं कहा जाएगा। और यहां तो मामला नाबालिग हिंदू लड़की के मतांतरण और विवाह से जुड़ा हुआ है जो कि भारतीय संविधान की दृष्टि में अवैध है।

सईरूल शेख और अनीता रॉय का मामला अब केवल जबर्दस्ती अपहरण, बलात् मतांतरण और जबरन विवाह तक सीमित नहीं रह गया है, वरन् विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकरण पर उच्च न्यायालय के रूख ने यह भी साबित कर दिया है कि भारतीय संविधान मुस्लिम शरीयाई कानून के सामने बिल्कुल बौना है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता पवन शर्मा के अनुसार, आखिर कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशद्वय न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष एवं न्यायमूर्ति एस.पी.तालूकदार ने एक 15 साल की हिंदू किशोर लड़की को जबरन मुसलमान बनाकर एक मुसलमान के साथ उसके विवाह को मंजूरी कैसे दे दी? आखिर किस आधार पर एक अभियुक्त जो एक अवयस्क बालिका के अपहरण, मतांतरण करने का मुजरिम है, उसे गिरफ्तार करने की बजाए अग्रिम जमानत दे दी गई?

कोलकाता उच्च न्यायालय ने इस निर्णय के लिए मुस्लिम शरीयाई कानून का सहारा लिया। अभियुक्त के पैरोकार वकीलों ने न्यायालय के सम्मुख तर्क प्रस्तुत किया कि चूंकि लड़की ने स्वेच्छया से इस्लाम कुबूल कर लिया इसलिए 15 वर्ष की नाबालिग होते हुए भी शरीयाई कानून के अनुसार उसका निकाह मान्य है। सईरूल शेख ने उससे बाकायदा निकाह रचाया है और इसलिए उसके ऊपर अपहरण आदि का कोई मामला नहीं बनता है।

और इस तर्क को उच्च न्यायालय ने स्वीकार करते हुए अभियुक्त सईरूल शेख को अग्रिम जमानत दे दी। एक बार भी उच्च न्यायालय ने इस बात पर गौर नहीं किया कि भारतीय संविधान इस मामले के संदर्भ में क्या कह रहा है। भारतीय संविधान ने 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को नाबालिग माना है, उसके विवाह को आपराधिक कार्य की श्रेणी में रखा है। इस कानून के उल्लंघन में किसी को भी जेल की सजा का प्रावधान है। लेकिन इसके विपरीत कोलकाता उच्च न्यायालय ने अभियुक्त सईरूल शेख को पुलिस कार्रवाई से बचाए रख अपह्त 15 वर्षीया नाबालिग हिंदू लड़की अनीता रॉय के साथ मनमानी की छूट दे दी।

दो वर्ष पूर्व कोलकाता के रिजवानुर-प्रियंका के केस की चर्चा कोलकाता सहित समूचे देश में हर जुबां पर थी। रिजवानुर ने एक उद्योगपति परिवार की लड़की प्रियंका को भगाकर उससे निकाह कर लिया था। तब भी निकाहनामा न्यायालय में प्रस्तुत कर रिजवानुर को अपराधमुक्त करने का प्रयास हुआ था। बाद में रिजवानुर की छत-विछत लाश एक रेलपटरी के किनारे पड़ी मिली थी। मीडिया ने रिजवानुर की मौत को हत्या का मामला माना और अपने तौर पर गहरी छानबीन भी की थी लेकिन इस बार नाबालिग अनीता रॉय की मां ज्योत्सना की सुनने वाला कोई नहीं है जिसकी 15 साल की अबोध किशोरी को उससे उम्र में 11 साल बड़ा एक कामांध मुस्लिम पुरूष भगा ले गया।

ज्योत्सना पर तो मानो वज्राघात टूट पड़ा है। जिस न्यायपालिका से उन्हें न्याय की उम्मीद थी उसने ही उनके आंसू पोंछने से इनकार कर दिया है। उन्होंने सईरूल पर नाबालिग बेटी के अपहरण, मतांतरण और जबरन निकाह के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। उनका मुकदमा ज़ायज था। कानूनन नाबालिग लड़की का विवाह तो नाजायज हो ही जाता है, इस कार्य में संलिप्त लोग भी जुर्म में बराबर के साझीदार माने गए हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि नाबालिग को धर्मांतरण का अधिकार भी संविधान ने नहीं दिया है। लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी एक न सुनी।

उच्च न्यायालय ने यह कह कर कि मुस्लिम शरीयाई कानून के अन्तर्गत नाबालिग अनीता रॉय का विवाह मान्य है, पूरे मामले को विचित्र मोड़ दे दिया है। मामला अब संविधान बनाम शरीयत का हो गया है। भारतीय संविधान तो न नाबालिग के निकाह को मान्य कर रहा है और न ही उसके धर्मांतरण को। जहां तक शरीयत का सवाल है तो मुस्लिम वर्ग के निजी मामलों में इसका प्रयोग किया जाता है। जहां सवाल एक हिंदू परिवार के हितों से जुड़ जाता है तो फिर वहां शरीयत का दखल कितना जायज अथवा नाजायज है, यह सवाल सहज ही खड़ा हो जाता है। किसी हिंदू परिवार और मुस्लिम परिवार के मध्य के विवाद में फैसला देने के लिए शरीयत को किस संविधान ने स्वीकृत किया है? जाने अथवा अनजाने उच्च न्यायालय ने खुद ही शरीयत के सामने संविधान को नकारा है।

लेखक-डॉ. राकेश उपाध्याय।

8 COMMENTS

  1. भाई ये सेकुलर देश है. सेकुलरवाद पहले प्रो-मुस्लिम हुआ और अब प्रो-टेरेरिज्म हुआ है. हिन्दू-विरोध की बुनियाद पर खडा यह सेकुलरवाद कोंग्रेस-कम्युनिस्टो और पास्वानो का हथियार बना, उसके बाद तत्थाकथित मानवाधिकार, बुद्धीविलास के दुकानदारों की रोजी-रोटी का जरिया बना फिर बेदिमाग मीडिया इसकी रखैल बन गयी. अब यही सेकुलरवाद न्यायपालिका को अपना शिकार बना रहा है. इस देश में हिन्दू प्रजा के लिए एक ही रास्ता बचा है…हिंद महासागर में डूब मरो..(क्योंकि अब तो हिन्दू देश नेपाल भी कम्युनिस्ट हो गया है, और माओवादियों की सरपरस्ती में नया वेटिकन बनाने की तैयारी में है.सो वहां भी शरण मिलाने से रही)

  2. Kidnapping and then marrying an underage Hindu girl is ‘legal’ because the sharia says so? Since when have Hindu victims been judged by muslim law? And where are our pulpit thumping Arnabs and Sagarikas and the Hashmis and Roys and Pandeys and azmis? What, no bellowing, no thundering, no haranguing? Give me my dose of self-righteous anger Arnnab and co. I am sure all your channels will send your investigating journos who will find evidence that the girl was a major after all and turned 18 the exact minute when the as….married her. RR

    https://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata-/Youth-gets-bail-in-elopement-caseKolkata/articleshow/5345745.cms
    Breaking News:

    Youth gets bail in elopement case Kolkata:
    TNN 17 December 2009, 07:04am IST

    KOLKATA: Calcutta High Court on Wednesday granted the anticipatory bail plea of a 26-year-old youth from Murshidabad who had been accused of kidnapping and marrying a 15-year-old girl.

    Sairul Sheikh, a resident of Bakultala in Behrampore, had been accused of kidnapping and forcibly marrying Anita Roy.

    A division bench of Justice Pinaki Chandra Ghosh and Justice S P Talukdar allowed Sheikh’s plea after his lawyers Joymalya Bagchi and Rajib Lochan Chakraborty submitted that the marriage was legal under Muslim Personal Law. Holding the marriage legal, the court granted Sheikh’s anticipatory bail application.

    Anita’s mother Jyotsna had lodged a complaint with Behrampore PS that her daughter had been missing since October 14. On October 15, she came to know that son Sairul had “kidnapped and married” her minor daughter. tnn

  3. गत दिनों दिल्ली हाई कोर्ट के एक आदरणीय जज साहेब ने एक टिपण्णी की ‘कि यदि कोई हिन्दू अपनी पत्नी के होते किसी दूसरी औरत के बारे में सोचता भी है तो यह उसके द्वारा अपनी पत्नी के प्रति अत्यंत ही क्रूरता का व्यवहार माना जायेगा। …..यदि वाही इंसान धर्मांतरण के बाद ४-४ पत्निओं से निकाह करे -३ तलाक कहे और छोड़ दे -या पत्नी का हलाला करवा कर फिर निकाह कर ले …..तो कोई क्रूरता नहीं। …..क्या bharat आज भी इस्लामिक देश है।

  4. शरियत के सामने हिन्दुस्तानी कानून तो हमेशा बौना ही साबित हुआ है, खासकर जब मामला औरतों का हो. हां लेकिन अगर चोरी जैसा अपराध हो तो मुसलमान भी शरियत को ताक पर रख कर हाथ कटवाने की जगह कुछ महीने जेल में बिताना पसंद करते हैं.

    भाई शरियत भी उन्हीं के लिये होती है जो मजलूम हों.

  5. राकेश जी ये मामला सीधे -२ भारतीय संविधान को चुनौती देता है लेकिन मीडिया इसे कतई नहीं उठाएगा क्योंकि वो भी सेकुलर बनने के फैशन में शामिल है ! एक दो छुटपुट खबरों के आलावा कही भी इस मामले की चर्चा नहीं मिलती , हा अगर स्थिति इसके उलटी होती यानि की लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम और यही फैसला रहता ( वैसे कोई सम्भावना तो नहीं है ) तो अब तक भारत में भूकंप आ गया होता !

  6. कलकत्ता हाईकोर्ट का यह विवादास्पद निर्णय या आदेश कहीं मूल प्राप्त हो सकता है या फिर टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर ही इस विषय की तमाम चर्चाओं का आधार है। मुझे लगता है कि एफ आई आर में लड़की को नाबालिग बताया गया है लेकिन सबूतों के आधार पर वह बालिग साबित हुई है। आप के आलेख में लड़की की आयु १५ वर्ष बताई गई है। उस का आधार क्या है। यदि लड़की की आयु धर्मपरिवर्तन के दिन १८ वर्ष से अधिक है तो कलकत्ता हाईकोर्ट का जमानत देने का निर्णय गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन यदि लड़की की आयु १८ वर्ष से कम की है तो वह निर्णय एकदम गलत है और उस की आलोचना सही है। लेकिन आलोचना के पहले इस तथ्य की जाँच अवश्य ही कर लेनी चाहिए।

  7. कलकत्ता हाईकोर्ट का यह विवादास्पद निर्णय या आदेश कहीं मूल प्राप्त हो सकता है या फिर टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर ही इस विषय की तमाम चर्चाओं का आधार है। मुझे लगता है कि एफ आई आर में लड़की को नाबालिग बताया गया है लेकिन सबूतों के आधार पर वह बालिग साबित हुई है। आप के आलेख में लड़की की आयु १५ वर्ष बताई गई है। उस का आधार क्या है। यदि लड़की की आयु धर्मपरिवर्तन के दिन १८ वर्ष से अधिक है तो कलकत्ता हाईकोर्ट का जमानत देने का निर्णय गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन यदि लड़की की आयु १८ वर्ष से कम की है तो वह निर्णय एकदम गलत है और उस की आलोचना सही है। लेकिन आलोचना के पहले इस तथ्य की जाँच अवश्य ही कर लेनी चाहिए।

  8. एक ही देश व समाज में दो तरह की लड़कियाँ पाई जाती हैं क्या? एक वे जो रजस्वला होते ही विवाह योग्य,अपने निर्णय करने योग्य हो जाती हैं और एक वे जो १८ वर्ष की आयु तक यह योग्यता नहीं पाती! यदि किसी धर्म विशेष में जन्म लेने से ऐसा होता भी हो तो क्या यह जादू धर्मपरिवर्तन की बात सोचने भर से अन्य धर्म वालों पर भी प्रभाव डाल देता है? एक १५ वर्ष की बच्ची में धर्मों को समझने व परखने की अक्ल कहाँ से आ गई? हो सकता हो वह अपनी इच्छा से पुरुष के साथ गई हो। किन्तु सही गलत का निर्णय करने, फिर निर्णय लेकर धर्म बदलने और अचानक विवाह योग्य हो जाना यह सब किसी की भी समझ से परे है।
    यदि संविधान के रक्षक ही संविधान से ऊपर अन्य चीजों को रखेंगे तो हमें कोई नहीं बचा सकता।
    घुघूती बासूती

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