शर्म भी अपने आप से शर्मसार हो जाये

jnnuडा. अरविन्द कुमार सिंह
इस क्षमायाचना के साथ, लेख का आगाज कर रहा हूॅ कि आज मेरे अल्फाज किसी को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पायेगें। खासकर उन्हे तो हरगिज नहीं जो देश के नाम पर भी राजनीत की रोटियाॅ सेकने से बाज नहीं आते है।
याद रख्खे किसी भी राजनीतिक पाॅर्टी,  धर्म, सम्प्रदाय या जाति का व्यक्ति जो देश के बरखिलाफ काम करता है, या बोलता है तो उसके लिये मात्र एक ही शब्द है ‘‘ गद्दार ’’ और उसकी एक ही सजा है, सजाये मौत या फिर उम्र कैद।
अभी नौ फरवरी को दिल्ली के जेएनयू में जो घटना घटित हुयी , वह निन्दनीय ही नहीं वरन दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की माॅग करता है। ऐसा नहीं है कि इसके पूर्व विश्वविद्यालय में ऐसी घटना पहले नहीं हुयी है। हाॅ मीडिया द्वारा समाचारों में प्रमुखता पहली बार मिली है।
कोई भी भारत का नागरिक इस घटना को किसी भी एंगिल से सही नहीं ठहरा सकता है। और अगर ठहराता है तो उसकी नियत पर शक होना लाजीम है। स्वतंत्रता और स्वछन्दता के बीच एक बारीक रेखा है। आत्म अनुशासन, संविधान और उसके द्वारा प्रदत्त अधिकारो के अंर्तगत किया गया कार्य स्वतंत्रता की परिधि में आता है। पर इनके बरखिलाफ, नियम कानून की परिधि से बाहर जाकर अपने अभिव्यक्ति को करना स्वछन्दता और कानून का उल्लघन्न कहलाता है।
एक विश्वविद्यालय शिक्षा का वो केन्द्र है जहाॅ से देश को अच्छे नागरिको की दरकार है। देश द्रोहियों या भारत के टुकडे करने का नारा देने वाले या कश्मीर की आजादी चाहॅने वाले या फिर पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाने वालो के लिये नहीं।
किसी भी विश्वविद्यालय और वहाॅ पढने वाले छात्रो को यह एक खुली चुनौती है जहाॅ मुट्ठी भर लोग देश के बरखिलाफ नारे लगाते है और छाती ठोक कर रहते है साथ ही पाकिस्तान जिन्दाबाद के साथ के अपनी प्रतिबद्धता का पाकिस्तान के साथ ऐलान करते है।ऐसा करके वो देशद्रोही – कुलपति, वहाॅ के छात्रो तथा अध्यापको को खुली चुनौती ही नहीं दे रहे है वरन उनकी देशभक्ति की भावना की धज्जीयाॅ भी उडा रहे हैं।
सरहद के पार बैठा हमारा दुश्मन इस घटनाक्रम से खुश हो रहा होगा कि जिस देश में देश के नाम पर भी एकजुटता नहीं है, वह देश बिखरने और टूटने के कागार पर होगा। यही तो वह चाहता है।
दुखद बात तो यह है कि एक तरफ दिल्ली में सियाचीन के हिमयोद्धा ने आखिरी साॅस ली और दूसरी तरफ जेएनयू में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लग रहे थे। इससे भी दुखद पहलू तो यह रहा कि राजनीतिक पार्टिया इस घटना की भत्र्सना करने की बजाय घटना को ही झूठलाने का प्रयास करने लगी।
जरा सीता राम येचुरी का बयान देखिये – विश्वविद्यालय में सीसी कैमरा तो लगा ही नही है तो फिर विडीयो कहाॅ से आ गया ? यानि दूसरे शब्दो में घटना हुयी ही नहीं। उसकी प्रमाणिकता पर भी आप को संदेह है। येचुरी साहब जाईये जेेएनयू में और पूछिए उन लोगो से जिनके सामने ये नारे लगे है। पहले भी नारे लगते रहे है। आपकी पार्टी के द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया यह भी गलत है? यदि सब गलत ही है तो फिर आप पैरवी किस की कर रहे है। इतने भोले तो मत बनिए आप।
थोडा केजरीवाल साहब का भी बयान देख ले – किसी निर्देाष छात्र पर कार्यवाही होगा तो यह बहुत महॅगा पडेगा। कितना क्रोध है केजरीवाल साहब को निर्देाष छात्रेंा पर कार्यवाही का ? केजरीवाल साहब थोडा क्रोध देशद्रोहियों के प्रति भी दिखाईये। आपकी सरकार है, खाईये कसम, जबतक देशद्रोही पकडे नहीं जायेगें, तबतक मैं चैन से नहीं बैठूगा। आपने देशद्रेहियों के लिये तो कुछ नहीं बोला पर येचुरी साहब तथा डी राजा के साथ मीटिंग जरूर की । चलिए यही बता दीजिए देशद्रोहियो के सन्दर्भ में आप लोगो ने क्या बात की?
राहुल गाॅधी जी दो दिन तक चुप्पी साधे रहे। देशद्रोहियो के सन्दर्भ में बोलने से कतराते रहे। आखिरकार छात्रों के हित के प्रति ममता जागी और पहुॅच गये जेएनयू। सरकार को ही देशद्रोही घोषित कर दिया। प्रधानमंत्री का हिटलर से तुलना कर दिया। अब यह समझ से परे है अगर बीना इमरजेंसी लगाये प्रधानमंत्री हिटलर की श्रेणी में खडे है तो राहुल गाॅधी जी आपको पूरे देश को बतलाना चाहिये, श्रीमती इंदिरा गाधी जिन्होने अपने निहित स्वार्थ के लिये देश में आपात काल लगाया था, उनके लिये कौन सा शब्द उपयुक्त होगा? इस घटिया राजनित से राजनित भी शरमा जाय।
पूरा विपक्ष डी राजा के साथ बेटी बचाओं अभियान में शामिल हो गया। कौन कहता है विपक्ष प्रधानमंत्री का साथ नहीं देता? कम से कम इस कार्यक्रम में तो ऐसी बात नहीं है। कमाल की बात है विपक्ष देशद्रोहियों पर नरम और सरकार पर गरम है। क्योंकि सरकार देशद्रोहियों के खिलाफ कार्यवाही करने की बात कर रही है। क्यों न विपक्ष की नियत पर शक किया जाय?
कहने की गुंजाईश तो सरकार ने भी छोड रखी है। जिनकी निष्ठा देश के प्रति संदिग्ध हो, क्या  उनके साथ सरकार बनाना जरूरी है? कश्मीर का भला राष्ट्रपति शासन के द्वारा भी हो सकता है। सरकार बनाने से बेहतर देशद्रोहियों की मुश्के कसना जरूरी है। सत्ता का लोभ – देशहित से उपर नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा होगा तो देश में अलगाववाद के सुर सुनायी पडेगें।
देश के नाम पर पूरे देश में एक स्वर सुनायी देना चाहिये। अलग सुरो के कारण हमने काफी गुलामी झेल ली। चाहे मुगलों की, चाहे अंग्रेजो की या फिर अन्य विदेशी आक्रांताओ की।
आज जरूरत है पूरे जेएनयू और देश से देशद्रोहियों के सफाये की। इनकी गहरी जाॅच की जाए, इनके तार किससे जुडे है? अमल में लाया जाय  संविधान की उस धारा को जिसके अंर्तगत देशद्रोहियों को सजा -ए – मौत या उम्र कैद की सजा मिले। देश के खिलाफ बोलने की किमत चुकाये।
याद रख्खे, देश जिन्दा रहेगा तभी हमारा वजूद जिन्दा रहेगा और यह तभी होगा, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक और बगांल से गुजरात तक पूरा देश एक स्वर में बोलेगा – भारत माता की जय।
अंत में सियाचीन के उन हिमयोद्धाओं को नमन, जिनके चलते देश की सरहदे सुरक्षित है। हमे यह भी याद रखना चाहिये –
जिन बेटो ने पर्वत काटे है, अपने नाखूनो से
उनकी कोई माॅग नहीं है, दिल्ली के कानूनो से

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here