शशि-धरा का लुका-छिपी महोत्सव

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moonशशि- धरा की लुक्का छिपी का महोत्सव है आज . महोत्सव का श्रीगणेश सांय 3.45 पर होगा और सांय ७. १५ तक चलेगा . विश्व के प्राचीनतम प्रेमी इस
महोत्सव के मुख्य पात्र हैं. अबकी शशि छिपेंगे और धरा सदैव की भांति ढूँढेंगी .... रवि ने मंच सञ्चालन का जिम्मा सम्हाल लिया है. पिछले कई
दिनों से 'विधु' छिपने की रिहर्सल में मशगूल हैं .. जब देखो धुंध में लुका-छिपी के खेल में व्यस्त हैं और धरा भी धुंध में धुंधलाई आँखों से
निशा में दूर तक अपने सखा'इंदु' को देखती है ...मानो जांच रही हो ..अबकी कहाँ छिपेगा ? फिर भूल गई की उसका यह सदियों पुराना अनुज -सखा तो सदैव
उसके आँचल में ही आ छिपता . लो ' निशापति' छिप गए और धरा दबे पाँव अपने नन्हे चिर-सखा को ढूँढने निकल पड़ी. अपनी प्रियसी और उसके सखा के बीच के
इस लुकाछिपी के खेल को 'रवि' चुपचाप निहार रहे हैं.
सदियों से शशि , धरा-दिनकर के सृष्टि सम्भोग के प्रत्यक्ष -द्रष्टा रहे हैं. निशापति के जाते ही दिनकर अपनी प्रियतमा को अपने आगोश में ले कर
'चिर सौभाग्यवती' भव का आशीर्वाद देते हुए ,अपनी प्रचंड किरणों से काम-क्रीडा में मस्त हो जाते हैं. रात होते ही निशापति थकी- हारी धरा को
अपनी शीतल किरणों की चादर ओढा कर , अपने सखा धर्म का निर्वाह कर, मात्र ठंडी आहें भरने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं. अपने मित्रवत प्रेम के
इज़हार का इस साल 'इंदु' के पास आज यह प्रथम अवसर है. आज तो बस बता ही देंगे धरा को की वह किस कदर उसे बे-इन्तेहा प्यार करते हैं. लो शशि
पूर्णतय छिप गए और धरा ढूंढ रही है ...शशि ने धरा को 'हीरे की अंगूठी ' दिखाई ..…… महज़ ४. ४३ क्षण के लिए …धरा अचरज में पड़ गई और शशि झेंप गए
और शर्म से मुंह लाल हो गया . धरा ने आनन फानन में 'फ्रेंडशिप बैंड' भेंट किया और शशि ने अपनी चिर-सखा की यह भेंट स्वीकार कर राहत की सांस ली. रवि
अपनी प्रियतमा के पतिव्रता आचरण पर भाव विभोर हो गए . इसके साथ ही लुका छिपी का विश्व समारोह सम्पूर्ण हुआ .
विज्ञानिक अपनी खुर्दबीने लिए इस महोत्सव से पृथ्वीलोक पर होने वाले
'अच्छे-बुरे प्रभावों की समीक्षा में व्यस्त हैं और धर्म भीरु हिन्दू ग्रहण से होने वाले दुष्प्रभावो को सोच का त्रस्त हैं. हमारी धर्म परायण
श्रीमती जी ने सभी खाद्य- वस्तुओं में 'खुशा' का तिनका टिका दिया है. इसे कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा . मंदिर के पंडित जी ने श्रीमती जी को
आगाह कर दिया था कि आज शाम को मंदिरों के किवाड़ बंद रहेंगे . इसलिए देवीजी आज के देव दर्शन ग्रहण से पूर्व ही कर आयीं. ज्योतिविद धर्मभीरु
आस्तिकों को चन्द्र ग्रहण से होने वाले दुश परिणामों से जागरूक करते हुए 'दान-पुन्य' के अमोघ अस्त्रों से अवगत करवा कर 'चांदी' कूटने में व्यस्त
हैं . हम तो भई सोमरस की चुस्कियों संग , सृष्टि के प्राचीनतम प्रेमियों के इस लुकाछिपी महोत्सव को निहारने में मस्त हैं. निशापति का यह शर्म से
लाल हुआ मुखारविंद सिर्फ और सिर्फ आज के इस महोत्सव में ही देखने को मिलता है , जब 'निशापति ' अपनी ही इज़हार ए मुहब्ब्त से शर्मसार हुए शवेत
से सुर्ख हो जाते हैं.
यथार्थ के पक्षधर खगोलविद या फिर ईष्ट अनीष्ट की शंकाओं में डूबे ज्योतिषशास्त्री इस महोत्सव के प्रेम प्रसंग को क्या समझें ?

--एल. आर. गाँधी
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एल. आर गान्धी
अर्से से पत्रकारिता से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में जुड़ा रहा हूँ … हिंदी व् पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है । सरकारी सेवा से अवकाश के बाद अनेक वेबसाईट्स के लिए विभिन्न विषयों पर ब्लॉग लेखन … मुख्यत व्यंग ,राजनीतिक ,समाजिक , धार्मिक व् पौराणिक . बेबाक ! … जो है सो है … सत्य -तथ्य से इतर कुछ भी नहीं .... अंतर्मन की आवाज़ को निर्भीक अभिव्यक्ति सत्य पर निजी विचारों और पारम्परिक सामाजिक कुंठाओं के लिए कोई स्थान नहीं .... उस सुदूर आकाश में उड़ रहे … बाज़ … की मानिंद जो एक निश्चित ऊंचाई पर बिना पंख हिलाए … उस बुलंदी पर है …स्थितप्रज्ञ … उतिष्ठकौन्तेय

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