ममता के भक्त क्यों हैं नव्यउदार अमीर

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

ममता बनर्जी की पिछले दिनों हुई दमदम की जनसभा में खूब भीड़ थी। वहां ममता बनर्जी ने वाम के पिछले विधानसभा चुनाव के नारे ‘उन्नततर वामफ्रंट’ के विकल्प के रूप में ‘ उन्नततर मानुष’ का नारा दिया है। उनका मानना है वे यदि आगामी विधानसभा चुनाव जीतती हैं तो पश्चिम बंगाल में ‘उन्नततर मानुष’ के उत्थान के लिए काम करेंगी। ममता के दमदम भाषण में सबसे आकर्षित करने वाली बात थी उनका आत्मविश्वास कि मैं अब आगामी विधानसभा चुनाव जीतने जा रही हूँ। असल में यह मीडिया निर्मित कारपोरेट इमेज है। नकली इमेज है। ममता के आत्मविश्वास का बड़ा कारण है कारपोरेट घरानों और नव्य उदार अमीरों का उन्हें अंध समर्थन। सवाल यह है नव्य उदार अमीर ममता के पीछे गोलबंद क्यों हैं ?

यह सच है कि पश्चिम बंगाल में नव्य उदार नीतियों को लागू करने की प्रक्रिया को बुद्धदेव पूर्व की वाम सरकारों ने धीमी गति से लागू किया था। इससे राज्य काफी पिछड़ गया। लेकिन विगत पांच सालों में बुद्धदेव सरकार ने नव्य उदार नीतियों के प्रति नरम रूख अपनाया है और उन्हें पहले की तुलना में तेज गति से लागू करने की कोशिश की है। इसका उन्हें विगत विधानसभा चुनाव में लाभ भी मिला था। विगत पांच सालों में अनेक बड़े कारखानों और प्रकल्पों पर काम आरंभ हुआ है। इसके बावजूद नव्यउदार पूंजीपतियों को वे अपने साथ एकजुट रखने में असमर्थ रहे हैं। इस मामले में ममता बनर्जी ने उनसे बढ़त हासिल कर ली है।

खासकर सिंगूर आंदोलन ने ममता को नव्यउदार कारपोरेट लॉबी के एक बड़े अंश को अपनी ओर खींचने में मदद की है। ममता बनर्जी ने कारपोरेट जगत में यह उम्मीद पैदा की है वह बुद्धदेव की तुलना में उनके हितों की बेहतर रक्षक है। इस आशा को ममता बनर्जी ने रेलवे मंत्रालय में ‘सरकारी-निजी साझेदारी’की योजना को लागू करके पुख्ता बनाया है। आज भी कारपोरेट घरानों का एक बड़ा हिस्सा वामपंथी दलों और खासकर माकपा को नव्य उदार नीतियों के मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। ममता इस धारणा का कारपोरेट लॉबी में दोहन कर रही है।

आज कारपोरेट घरानों का मानना है ममता यदि चुनाव जीतती है तो पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा की खुली लूट का उन्हें विशेष अवसर मिलेगा। इसके लिए कारपोरेट लॉबी दो स्तरों पर काम करने के लिए ममता बनर्जी पर दबाब डाल रही है। वे चाहते हैं ममता अपने आक्रामक तेवरों और सांगठनिक हमलों से हिंसा का ऐसा वातावरण तैयार करे जिससे वाम संगठनों की स्थानीय कैडर संरचना टूट जाए। माकपा की एक राजनीतिक दल के रूप में साख नष्ट करके उसे गुण्डादल बनाकर प्रचारित किया जाए। ममता इस काम को बड़े सुनियोजित ढ़ंग से कर रही है। कारपोरेट लॉबी जानती है ममता बनर्जी आगामी विधानसभा चुनाव जीत भी जाती है तो उनको पश्चिम बंगाल की सार्वजनिक संपदा को लूटने में तबतक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा जब तक माकपा सांगठनिक तौर पर मजबूत है। यही बुनियादी वजह है कि माकपा पर विभिन्न ग्रुपों, संगठनों,आंदोलनों आदि के नाम से संगठित हमले कराए जा रहे हैं। उन इलाकों में हिंसाचार ज्यादा हो रहा है जहां माकपा मजबूत है। यह नंदीग्राम मॉडल है। आज नंदीग्राम में माकपा को खदेड़ दिया गया है। माकपा के सदस्यों के सामने जीवन-मरण का संकट पैदा कर दिया है। नंदीग्राम मॉडल को राज्य के अन्य इलाकों में सुनियोजित ढ़ंग से लागू किया जा रहा है। इस काम में माओवादियों ,अपराधी गिरोहों और सभी विचारधारा के लोगों को माकपा के खिलाफ हमलावर कार्रवाईयों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन इलाकों में यह सब हो रहा है वहां असाधारण सामाजिक तनाव है। अनेक स्थानों पर माकपा के लोग भी हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए हैं। सामान्य सी बात पर हिंसा भड़क उठती है.बम चलने लगते हैं। विभिन्न दलों के नेताओं में कोई सामान्य संवाद और शिष्टाचार तक नहीं बचा है। दलों में संवादहीनता बढ़ी है। हिंसा बढ़ी है। तनाव में शांति की बजाय बम चलते हैं। यह नंदीग्राम मॉडल है। प्रचार के लिए अब भाषण नहीं होते हिंसा हो रही है। इससे ममता बनर्जी को राजनीतिक लाभ मिला है। यह रणनीति लैटिन अमेरिका में वाम संगठनों के खिलाफ कारपोरेट घराने सफलता के साथ लागू कर चुके हैं। इससे व्यापक जनहानि हुई है।

यह सच हैं कि वाम मोर्चे ने सैंकडों-हजारों एकड़ के ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र ’ यानी ‘सेज’ बनाने की केन्द्र की योजना को अस्वीकार कर दिया है और छोटे एरिया के ‘सेज’ बनाने पर जोर दिया है। नव्य उदार अमीर फलतः वाम से खफा हैं। ममता बनर्जी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह बड़े ‘सेज’ बनाने देगी। इसके अलावा राज्य में भवन निर्माण और नए शहर बसाने की अपार संभावनाएं है इसके कारण भवन -शहर निर्माता कारपोरेट घराने ममता के पीछे गोलबंद हो गए हैं और बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस की आर्थिक मदद कर रहे हैं। यही वह आर्थिक स्रोत है जिसके सहारे ममता ने संसद के चुनाव में बेशुमार पैसा खर्च किया था और यही वह स्रोत है जो आज भी ममता एंड कंपनी की विभिन्न रैलियों और प्रचार सामग्री पर करोड़ों रूपये खर्च कर रहा है। इसी स्रोत के आधार पर ममता ने कई हजार सदस्यों की एक टीम तैयार की है जिन्हें मासिक पगार मिलती है। ये लोग लड़ने से लेकर नारे लगाने तक के हर काम में दक्ष हैं। इनमें लेखकों-कलाकारों से लेकर अपराधी चरित्र के लोग तक शामिल हैं। इसके अलावा अनेक अमेरिकी विदेशी घरानों की भी इस राज्य में दिलचस्पी बढ़ी है। वे चाहते हैं पश्चिम बंगाल में वामदल हारें। वे पहले भी कई बार कोशिश कर चुके हैं लेकिन असफल रहे हैं। लेकिन वामदलों का मजबूत सांगठनिक आधार उन्हें सशंकित किए है। वामदलों का जनसंपर्क आज भी कारपोरेट मीडिया पर भारी पड़ रहा है। वामदलों को इसबार दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है पहला,उन्हें अपराधी गिरोहों के हमलों से अपने कैडरों को बचाने के लिए लड़ना पड़ रहा है तो दूसरी ओर जनता के साथ पुख्ता संबंध बनाने पर ध्यान देना पड़ रहा है। ये दोनों बेहद मुश्किल काम हैं।

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